करसोग: हिमाचल के जिला मंडी के तहत करसोग में हजारों किसानों पर मौसम की बेरुखी भारी पड़ गई है. यहां सूखे की वजह से करीब 210 हेक्टेयर पर गेहूं और मटर की बुआई नहीं हो सकी हैं. वहीं, दोनों की प्रमुख फसलों की बुआई का समय अब निकलता जा रहा है. जहां समय पर बुआई का कार्य पूरा हो गया है, ऐसे क्षेत्रों में भी सूखे के कारण फसल जमीन से नहीं निकल पाई है. जिससे करसोग में 15 हजार से अधिक किसान परिवारों की मुश्किलें बढ़ गई हैं. मौसम विभाग ने भी अब 12 और 13 जनवरी को बारिश और बर्फबारी की संभावना जताई है. इसके बाद सामान्य तौर पर प्रदेश भर में मौसम साफ रहेगा. (Farmers facing problem due to no rain in karsog)
रबी सीजन में 720 हेक्टेयर में बुआई का लक्ष्य- करसोग में रबी सीजन के लिए कृषि विभाग ने 720 हेक्टेयर में बुआई का लक्ष्य निर्धारित किया है. इसमें 600 हेक्टेयर में गेहूं और करीब 100 हेक्टेयर में मटर की बुआई होनी है. इसके अतिरिक्त 20 हेक्टेयर में अन्य फसलों की बुआई का लक्ष्य तय किया गया है, लेकिन लंबे समय से चल रहे सूखे की वजह से किसान करीब 180 हेक्टेयर में गेहूं और करीब 30 हेक्टेयर पर मटर की बुआई नहीं कर पाए हैं. जिन क्षेत्रों में किसानों ने 380 हेक्टेयर में गेहूं और 70 हेक्टेयर में मटर की बुआई का कार्य पूरा कर लिया है. यहां की सूखे की स्थिति से फसलों को नुकसान हुआ है.
लोन लेकर खरीदा है बीज: करसोग में किसानों की आजीविका गेहूं और मटर की फसल पर भी निर्भर है. किसानों ने बाजार से 260 रुपए प्रति किलो के हिसाब से मटर का बीज खरीदा है. वहीं, कृषि विक्रय केंद्रों से किसानों ने 130 रुपए प्रति किलो मटर का बीज खरीदा है. इसी तरह से कृषि विक्रय केंद्रों में किसानों ने सब्सिडी में 707 रुपए में 40 किलो गेहूं की बोरी खरीदी है. वहीं, कृषि विक्रय केंद्रों से सब्सिडी पर 37.70 रुपए प्रति किलो के हिसाब से आलू का बीज खरीदा है.
इसके अतिरिक्त किसानों की खेती पर आना वाला अन्य खर्च अलग से है. जिसके लिए किसानों ने बैकों से ऋण लिया है. करसोग में किसानों ने कृषि विभाग के विभिन्न विक्रय केंद्रों से सब्सिडी पर 570 क्विंटल बीज खरीदा है. इसी तरह से विक्रय केंद्रों से 140 क्विंटल मटर का बीज खरीदा है. इसके अतिरिक्त सब्सिडी पर 100 क्विंटल आलू का बीच की खरीद की है. इसके अलावा किसानों ने बाजार से अलग बीज भी खरीदे हैं. (Farmers facing problem in karsog) (Rabi season in Karsog)
ये भी पढ़ें: कुल्लू में बढ़ी विदेशी सेब के पौधों की मांग, 2 साल में ही मिलना शुरू हो जाती है फसल