मंडी: जिला मंडी के पंडोह बाजार में बना 100 साल पुराना लाल पुल किसी भी दिन किसी बड़े हादसे को अंजाम देकर लहु के लाल रंग से रंगा हुआ नजर आएगा. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि 100 साल पुराने इस पुल की हालत बेहद खस्ता है और मरम्मत के नाम पर यहां विभाग द्वारा सिर्फ लीपापोती हो रही है. पुल की नींव से लेकर इसकी तारें और बिछाई गई लोहे की चादरें और पुल में लगे गाडर सरेआम अपनी बदहाली की गवाही दे रही हैं. हादसों को न्यौता देते इस ऐतिहासिक पुल की ओर न सरकार न लोक निर्माण विभाग, किसी का भी ध्यान नहीं है. ब्रिटिश राज में बना ये 100 साल पुराना पुल किसी भी धराशायी होने को तैयार है. क्या ये जरूरी है कि किसी बड़े हादसे के बाद ही सराकर अपनी नींद से जागे या फिर इस पुल की मरम्मत कर या वैकल्पिक समाधान निकाल कर आने वाले हादसों को रोका जा सकता है.
बड़े हादसों को न्योता दे रहा पंडोह का पुल: पंडोह पंचायत के पूर्व उप प्रधान राधा कृष्ण वर्मा, स्थानीय निवासी देवी सिंह ठाकुर ओर रोहित कुमार ने बताया कि लोक निर्माण विभाग इस पुल की मरम्मत के नाम पर लीपापोती करने में लगा हुआ है, जबकि वास्तविकता से किनारा किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि ये पुल कई पंचायतों को जोड़ता है. रोजाना यहां लोगों की आवाजाही लगी रहती है. ये पुल इस कदर खस्ता हालत में है कि कभी भी यहां बड़ा हादसा हो सकता है. इन लोगों ने सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू और लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह से एक साल पहले हुई पुल की मरम्मत पर जांच करने की मांग उठाई है. इन्होंने मांग की है की पुल की सही से मरम्मत करवाई जाए और अगर ऐसा नहीं होता तो यहां के स्थानीय ग्रामीण सरकार और विभाग के खिलाफ जन आंदोलन करेंगे.
स्थानीय लोगों ने की पुल मरम्मत की मांग: बता दें कि द्रंग विधानसभा क्षेत्र के इलाका बदार की एक दर्जनों पंचायतों के लोग इसी पुल से होकर पंडोह बाजर पहुंचते हैं. स्थानीय निवासी लीलाधर, महेंद्र पाल सिंह और नीतू ने बताया कि पुल से गुजरने में अब डर लगता है. बावजूद इसके यहां से वाहन गुजारना और खुद लोगों का गुजरना उनकी मजबूरी बन गई है. नीतू बताती हैं कि वह बच्चपन से इस पुल को देखती आ रही हैं. इस पुल की दशा सुधारने का कभी किसी द्वारा प्रयास नहीं किया गया है. लोग अपनी जान हथेली पर रख इस पुल को पार करने को मजबूर हैं. हालांकि इस पुल से 5 टन वजन ले जाने की अनुमति है, लेकिन इससे अधिक भारी वाहन भी इस पर बेरोक-टोक गुजारे जा रहे हैं. जिससे कभी भी ये पुल टूट कर गिर सकता है. यहां के स्थानीय लोगों की मांग है कि यह पुल ऐतिहासिक है, इसलिए सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए और इस 100 साल पुराने पुल की मरम्मत करवानी चाहिए.
एग्जीक्यूटिव इंजीनियर झाड़ रहे अपनी जिम्मेदारी से पल्ला: जब इस बारे में अधिशाषी अभियंता सुरेश कौशल से बात की गई तो वे अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए नजर आए. उन्होंने कहा कि पुल की देखरेख का जिम्मा मैकेनिकल विंग कुल्लू के पास है और वही इसकी मरम्मत कर रहे हैं. गत एक वर्ष पहले मरम्मत का कार्य उनके द्वारा ही किया गया था. पुल काफी पुराना हो चुका है, इसलिए इसपर अधिक भार ले जाने की मनाही है. वहीं, जब अधिशाषी अभियंता मैकेनिकल विंग शमशी जिला कुल्लू जीएल ठाकुर से बात की गई तो उन्होंने बताया कि पुल की देखरेख का जिम्मा उनके पास नहीं है. मरम्मत के लिए 35 लाख के करीब पैसा जारी हुआ था, उससे पुल की मरम्मत करवा दी गई है.
1923 में हुआ था पुल का निर्माण: पंडोह का लाल पुल साल 1923 में बनकर तैयार हुआ था. इसे अंग्रेजों द्वारा बनाया गया था. जब पंडोह डैम नहीं था तो कुल्लू-मनाली के लिए इसी पुल से होकर गाड़ियां जाती थी. मंडी शहर में विक्टोरिया पुल के पास एक और पुल बनाकर उसे धरोहर के रूप में तो सहेज लिया गया है, लेकिन इस पुल को धरोहर के रूप में सहेजने का सरकार का कोई इरादा नजर नहीं आ रहा है. 100 साल बाद यह पुल अब अपनी रिटायरमेंट के इंतजार में है.
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