कुल्लू: सनातन धर्म में भगवान शिव के कहे जाने वाले काल भैरव का जन्मदिन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था. वहीं, इस साल भी मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काला अष्टमी मनाई जाएगी. कालाष्टमी को भगवान भैरव की जयंती के रूप में भी जाना जाता है. वहीं, इस दिन भगवान भैरव की पूजा अर्चना करने से जहां व्यक्ति को ग्रह जनित पीड़ा से मुक्ति मिलती है. वहीं, व्यक्ति को किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता है.
हिंदू पंचांग के अनुसार 5 दिसंबर मंगलवार को काल भैरव जयंती मनाई जाएगी. हालांकि, अष्टमी तिथि 4 दिसंबर रात 9: 59 मिनट पर शुरू हो गई है, जो 5 दिसंबर रात 12:37 तक रहेगी. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार इस 5 दिसंबर को मनाया जाएगा. अष्टमी का दिन बाबा काल भैरव को समर्पित है और जिस दिन यह अष्टमी मंगलवार या रविवार को मनाई जाती है तो, इसे और अधिक शुभ माना जाता है. क्योंकि भैरव की पूजा के लिए मंगलवार और रविवार का दिन काफी शुभ माना गया है.
आचार्य विजय कुमार शर्मा का कहना है कि काला अष्टमी के दिन भगवान शिव के स्वरूप काल भैरव की पूजा करनी चाहिए और भगवान शिव या फिर भैरव के मंदिर में जाकर उनकी विशेष रूप से आराधना की जानी चाहिए. इसके अलावा शाम के समय भगवान शिव-पार्वती और भैरव की पूजा करने का भी विधान है. भगवान काल भैरव की पूजा में दीपक, काले तिल, उड़द और सरसों के तेल को अवश्य शामिल करें और व्रत पूरा करने के बाद काले कुत्ते को मीठी रोटियां भी खिलानी चाहिए. इसके अलावा भक्त को सात्विक रूप से भगवान काल भैरव की आराधना करनी चाहिए और भगवान भैरव को घर का बना ही बना हुआ प्रसाद ही चढ़ाना चाहिए.
आचार्य विजय कुमार का कहना है कि अगर जीवन में कष्ट अधिक हो रहे हैं और जीवन में मुश्किलें बढ़ रही हो तो, ऐसे लोगों को काला अष्टमी के दिन बाबा भैरव की पूजा अवश्य करनी चाहिए. भगवान भैरव की पूजा करने से जहां सभी प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है तो, वही सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती है.
उनका कहना है कि सनातन धर्म के अनुसार भगवान शिव ने अंधकासुर का वध करने के लिए काल भैरव का अवतार लिया था. ऐसे में मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान शिव ने काल भैरव का रूप धारण किया था. भगवान शिव के इस रूप की पूजा करने से सभी भय और संकट दूर हो जाते हैं. वहीं इस दिन भगवान शिव का रुद्राभिषेक करने का भी विशेष मुहूर्त है.
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