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कुल्लू के देवसदन में दिया जा रहा टांकरी लिपि का प्रशिक्षण, दर्जनों लेखक ले रहे भाग - देवसदन में टांकरी लिपि प्रशिक्षण

हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी शिमला और भाषा एवं संस्कृति विभाग द्वारा देवसदन कुल्लू में पांच दिवसीय टांकरी लिपि का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इसमें टांकरी लिपि के ज्ञाता कांगड़ा हरि कृष्ण मुरारी, डॉ. किशोरी प्रशिक्षुओं को टांकरी लिपि को लिखने की विधि सिखा रहे हैं.

Training of tankri script given in Devsadan
देवसदन में दी जा रही टांकरी लिपि का प्रशिक्षण
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Published : Dec 13, 2019, 10:49 AM IST

कुल्लू: हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी शिमला और भाषा एवं संस्कृति विभाग द्वारा देवसदन कुल्लू में पांच दिवसीय टांकरी लिपि का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इसमें टांकरी लिपि के ज्ञाता कांगड़ा हरि कृष्ण मुरारी, डॉ. किशोरी प्रशिक्षुओं को टांकरी लिपि को लिखने की विधि सिखा रहे हैं.

अकादमी के सदस्य डॉ. सूरत ठाकुर ने कहा कि रियासती काल में हिमाचल प्रदेश में टांकरी में ही लेखन होता था. उस समय का इतिहास, संस्कृति, ज्योतिष, आयुर्वेद, तंत्र-मंत्र और राजाओं द्वारा दिए गए पट्टे और दस्तावेज टांकरी में ही लिखे जाते थे. उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी को जो पुरातन इतिहास एवं परंपराओं पर शोध करना चाहते हैं उन्हें यह लिपि जरूर सीखनी चाहिए.

वीडियो रिपोर्ट

टांकरी के शिक्षक हरि कृष्ण मुरारी ने कहा कि कुल्लू, मंडी, कांगड़ा, चंबा और ऊपरी हिमाचल में टांकरी के स्वर और व्यजनों में थोड़ा-थोड़ा अंतर है. इस शिविर में हिमाचल प्रदेश में टांकरी के जितने भी रूप हैं, उन्हें बताने का प्रयास किया जा रहा है.

वहीं जिला भाषा अधिकारी कुल्लू सुनीला ठाकुर ने कहा कि विभाग समय-समय पर कुल्लू में और भी प्रशिक्षण शिविर लगाता रहेगा. इस प्रशिक्षण शिविर में दो दर्जन लेखक भाग ले रहे हैं.

ये भी पढ़ें: कुल्लू में जिला स्तरीय सार्वजनिक वितरण प्रणाली की त्रैमासिक बैठक हुई, DC ने दिए ये निर्देश

कुल्लू: हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी शिमला और भाषा एवं संस्कृति विभाग द्वारा देवसदन कुल्लू में पांच दिवसीय टांकरी लिपि का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इसमें टांकरी लिपि के ज्ञाता कांगड़ा हरि कृष्ण मुरारी, डॉ. किशोरी प्रशिक्षुओं को टांकरी लिपि को लिखने की विधि सिखा रहे हैं.

अकादमी के सदस्य डॉ. सूरत ठाकुर ने कहा कि रियासती काल में हिमाचल प्रदेश में टांकरी में ही लेखन होता था. उस समय का इतिहास, संस्कृति, ज्योतिष, आयुर्वेद, तंत्र-मंत्र और राजाओं द्वारा दिए गए पट्टे और दस्तावेज टांकरी में ही लिखे जाते थे. उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी को जो पुरातन इतिहास एवं परंपराओं पर शोध करना चाहते हैं उन्हें यह लिपि जरूर सीखनी चाहिए.

वीडियो रिपोर्ट

टांकरी के शिक्षक हरि कृष्ण मुरारी ने कहा कि कुल्लू, मंडी, कांगड़ा, चंबा और ऊपरी हिमाचल में टांकरी के स्वर और व्यजनों में थोड़ा-थोड़ा अंतर है. इस शिविर में हिमाचल प्रदेश में टांकरी के जितने भी रूप हैं, उन्हें बताने का प्रयास किया जा रहा है.

वहीं जिला भाषा अधिकारी कुल्लू सुनीला ठाकुर ने कहा कि विभाग समय-समय पर कुल्लू में और भी प्रशिक्षण शिविर लगाता रहेगा. इस प्रशिक्षण शिविर में दो दर्जन लेखक भाग ले रहे हैं.

ये भी पढ़ें: कुल्लू में जिला स्तरीय सार्वजनिक वितरण प्रणाली की त्रैमासिक बैठक हुई, DC ने दिए ये निर्देश

Intro:कुल्लू के देवसदन में दिया जा रहा टांकरी लिपि का प्रशिक्षणBody:


हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी शिमला तथा भाषा एवं संस्कृति विभाग द्वारा देवसदन कुल्लू में पांच दिवसीय टांकरी लिपि का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसमें टांकरी लिपि के ज्ञाता कांगड़ा हरि कृष्ण मुरारी, डॉ किशोरी प्रशिक्षुओं को टांकरी लिपि को लिखने की विधि सिखा रहे है । अकादमी के सदस्य डा. सूरत ठाकुर ने कहा कि रियासती काल में हिमाचल प्रदेश में टांकरी में ही लेखन होता था। उस समय का इतिहास, संस्कृति, ज्योतिष, आयुर्वेद, तंत्र-मंत्र तथा राजाओं द्वारा दिए गए पट्टे और दस्तावेज टांकरी में ही लिखे जाते थे। उन्होंने बताया कि नई पीढ़ी को जो पुरातन इतिहास एवं परंपराओं पर शोध करना चाहते हैं उन्हें यह लिपि अवश्य सीखनी चाहिए। टांकरी के शिक्षक हरि कृष्ण मुरारी ने कहा कि कुल्लू, मंडी, कांगड़ा, चंबा और ऊपरी हिमाचल में टांकरी के स्वर और व्यजनों में थोड़ा-थोड़ा अंतर है। वह इस शिविर हिमाचल प्रदेश में टांकरी के जितने भी रूप हैं। उन्हें बताने का प्रयास किया जा रहा है। Conclusion:



वही, जिला भाषा अधिकारी कुल्लू सुनीला ठाकुर ने कहा कि विभाग समय-समय पर कुल्लू में और भी प्रशिक्षण शिविर लगाता रहेगा। इस प्रशिक्षण शिविर में दो दर्जन लेखक भाग ले रहे हैं।
बाइट: डॉ सूरत ठाकुर
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