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370 साल पुराना है अयोध्या और कुल्लू का रिश्ता, मंदिर निर्माण के लिए दिया जाएगा शगुन

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Published : Aug 4, 2020, 12:39 PM IST

अयोध्या और कुल्लू का 370 साल पुराना अटूट रिश्ता है. सन् 1650 ई. में तत्कालीन कुल्लू के राजा जगत सिंह के आदेश पर भगवान रघुनाथ, सीता और हनुमान की मूर्तियां अयोध्या से दामोदर दास नामक व्यक्ति लाया था. भगवान रघुनाथ की ओर से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को शगुन दिया जाएगा. यह शगुन मंदिर निर्माण में काम आएगा.

भगवान राम
भगवान राम

कुल्लू: अयोध्या और कुल्लू का 370 साल पुराना अटूट रिश्ता है. अयोध्या में मंदिर निर्माण को लेकर कुल्लू के लोगों में भारी उत्साह है. 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या में भूमि पूजन करेंगे. सन् 1650 ई. में भगवान रघुनाथ की मूर्ति अयोध्या से कुल्लू लाई गई थी.

1660 में रघुनाथपुर में मूर्ती की स्थापना की गई थी. 10 साल तक रघुनाथ को मकराहड़ और धार्मिक स्थली मणिकर्ण में रखा गया. इसके चलते मणिकर्ण को राम की नगरी भी कहा जाता है. यहां राम मंदिर का निर्माण किया गया है.

क्या है कुल्लू में स्थापित मूर्तियों का इतिहास:

कुल्लू में करीब 500 देवी-देवताओं के अधिष्ठाता भगवान रघुनाथ का अयोध्या से गहरा नाता रहा है. सन् 1650 ई. में तत्कालीन कुल्लू के राजा जगत सिंह के आदेश पर भगवान रघुनाथ, सीता और हनुमान की मूर्तियां अयोध्या से दामोदर दास नामक व्यक्ति लाया था.

राजा जगत सिंह ने अपनी राजधानी को नग्गर से स्थानांतरित कर सुल्तानपुर में बसा लिया था. एक दिन राजा को दरबारी ने सूचना दी कि मड़ोली (टिप्परी) के ब्राह्मण दुर्गादत्त के पास सुच्चे मोती हैं, जब राजा ने मोती मांगे तो राजा के भय से दुर्गादत्त ने खुद को अग्नि में जलाकर समाप्त कर दिया, लेकिन उसके पास मोती नहीं थे. इससे राजा को ब्रह्म हत्या का रोग लग गया. ब्रह्म हत्या के निवारण को राजा जगत सिंह के राजगुरु तारानाथ ने सिद्धगुरु कृष्णदास पथहारी से मिलने को कहा.

कैसा पहुंची मूर्तियां मणिकर्ण:

पथहारी बाबा ने सुझाव दिया कि अगर अयोध्या से त्रेतानाथ मंदिर में अश्वमेध यज्ञ के समय की निर्मित राम-सीता की मूर्तियों को कुल्लू में स्थापित किया जाए तो राजा रोग मुक्त हो सकता है. पथहारी बाबा ने यह काम अपने शिष्य दामोदर दास को दिया.

उन्हें अयोध्या से राम-सीता की मूर्तियां लाने को कहा. दामोदर दास अयोध्या पहुंचा और त्रेतानाथ मंदिर में 1 साल तक पुजारियों की सेवा करता रहा. एक दिन राम-सीता की मूर्ति को उठाकर हरिद्वार होकर मकडाहड़ और मणिकर्ण पहुंचा. मूर्ति लाने के बाद राजा ने रघुनाथ के चरण धोकर पानी पिया. इससे राजा का रोग खत्म हो गया.

क्या कहते है रघुनाथ के मुख्य छड़ी बरदार:

कुल्लू देवी-देवता कारदार संघ के पूर्व अध्यक्ष दोतराम ठाकुर बताते है कि इसके बाद राजा ने अपना सारा राजपाठ भगवान रघुनाथ को सौंप दिया और भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबरदार बन गए. अब छड़ीबरदार का दायित्व पूर्व सांसद महेश्वर सिंह संभाल रहे हैं.

भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ी बरदार महेश्वर सिंह ने कहा कि भगवान रघुनाथ की ओर से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को शगुन दिया जाएगा. यह शगुन मंदिर निर्माण में काम आएगा. कोरोना के चलते 5 अगस्त को अयोध्या जाना संभव नहीं है, ऐसे में यह शगुन बाद में दिया जाएगा.

ये भी पढ़ें: शिक्षा के व्यापारीकरण पर रोक लगाने के लिए बदलाव की जरूरत

ये भी पढ़ें: हमीरपुर के ये चार गांव बने कंटेनमेंट जोन

कुल्लू: अयोध्या और कुल्लू का 370 साल पुराना अटूट रिश्ता है. अयोध्या में मंदिर निर्माण को लेकर कुल्लू के लोगों में भारी उत्साह है. 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या में भूमि पूजन करेंगे. सन् 1650 ई. में भगवान रघुनाथ की मूर्ति अयोध्या से कुल्लू लाई गई थी.

1660 में रघुनाथपुर में मूर्ती की स्थापना की गई थी. 10 साल तक रघुनाथ को मकराहड़ और धार्मिक स्थली मणिकर्ण में रखा गया. इसके चलते मणिकर्ण को राम की नगरी भी कहा जाता है. यहां राम मंदिर का निर्माण किया गया है.

क्या है कुल्लू में स्थापित मूर्तियों का इतिहास:

कुल्लू में करीब 500 देवी-देवताओं के अधिष्ठाता भगवान रघुनाथ का अयोध्या से गहरा नाता रहा है. सन् 1650 ई. में तत्कालीन कुल्लू के राजा जगत सिंह के आदेश पर भगवान रघुनाथ, सीता और हनुमान की मूर्तियां अयोध्या से दामोदर दास नामक व्यक्ति लाया था.

राजा जगत सिंह ने अपनी राजधानी को नग्गर से स्थानांतरित कर सुल्तानपुर में बसा लिया था. एक दिन राजा को दरबारी ने सूचना दी कि मड़ोली (टिप्परी) के ब्राह्मण दुर्गादत्त के पास सुच्चे मोती हैं, जब राजा ने मोती मांगे तो राजा के भय से दुर्गादत्त ने खुद को अग्नि में जलाकर समाप्त कर दिया, लेकिन उसके पास मोती नहीं थे. इससे राजा को ब्रह्म हत्या का रोग लग गया. ब्रह्म हत्या के निवारण को राजा जगत सिंह के राजगुरु तारानाथ ने सिद्धगुरु कृष्णदास पथहारी से मिलने को कहा.

कैसा पहुंची मूर्तियां मणिकर्ण:

पथहारी बाबा ने सुझाव दिया कि अगर अयोध्या से त्रेतानाथ मंदिर में अश्वमेध यज्ञ के समय की निर्मित राम-सीता की मूर्तियों को कुल्लू में स्थापित किया जाए तो राजा रोग मुक्त हो सकता है. पथहारी बाबा ने यह काम अपने शिष्य दामोदर दास को दिया.

उन्हें अयोध्या से राम-सीता की मूर्तियां लाने को कहा. दामोदर दास अयोध्या पहुंचा और त्रेतानाथ मंदिर में 1 साल तक पुजारियों की सेवा करता रहा. एक दिन राम-सीता की मूर्ति को उठाकर हरिद्वार होकर मकडाहड़ और मणिकर्ण पहुंचा. मूर्ति लाने के बाद राजा ने रघुनाथ के चरण धोकर पानी पिया. इससे राजा का रोग खत्म हो गया.

क्या कहते है रघुनाथ के मुख्य छड़ी बरदार:

कुल्लू देवी-देवता कारदार संघ के पूर्व अध्यक्ष दोतराम ठाकुर बताते है कि इसके बाद राजा ने अपना सारा राजपाठ भगवान रघुनाथ को सौंप दिया और भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबरदार बन गए. अब छड़ीबरदार का दायित्व पूर्व सांसद महेश्वर सिंह संभाल रहे हैं.

भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ी बरदार महेश्वर सिंह ने कहा कि भगवान रघुनाथ की ओर से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को शगुन दिया जाएगा. यह शगुन मंदिर निर्माण में काम आएगा. कोरोना के चलते 5 अगस्त को अयोध्या जाना संभव नहीं है, ऐसे में यह शगुन बाद में दिया जाएगा.

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