कुल्लूः पंडित सुखराम के कांग्रेस में जाते ही अब लोकसभा चुनाव में राजनीतिक समीकरण भी बदलते नजर आ रहे हैं. पंडित सुखराम को जहां राजनीति का एक लंबा अनुभव है. वहीं, कई नेता भी उन्हीं के द्वारा तैयार की गई पौध हैं जो प्रदेश में मंत्री भी रह चुके हैं.
ऐसे में लोकसभा चुनाव में सुखराम फैक्टर भाजपा को कितना नुकसान करता है, इस बारे में यह तस्वीर आने वाले लोकसभा चुनाव में साफ हो जाएगी, हालांकि भाजपा के नेताओं द्वारा उन्हें दलबदलू भी करार दिया जा रहा है.
गौर रहे कि पंडित सुखराम ने जब-जब दल बदला है तब-तब वो हमेशा ही सत्ता पक्ष में विजय हुए हैं. अब देखना यह है कि इस लोकसभा चुनाव में आश्रय को अपने दादा सुखराम की राजनीति का कितना लाभ मिलेगा. वहीं, पूर्व सांसद महेश्वर सिंह का भी कहना है कि पंडित सुखराम को राजनीति का एक लंबा अनुभव है, लेकिन इस अनुभव का आधार लोकसभा चुनाव में जनता ही उन्हें बताएगी. पंडित सुखराम ने जब भी दल बदला है तो उनके शिष्यों ने भी हमेशा उनका ही साथ दिया है, तो ऐसे में आने वाले लोकसभा चुनाव में जनता किसका साथ देती है. ये अभी भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है.