कुल्लू: प्रदेश में गर्मियों के सीजन के दौरान बाहरी राज्यों से रसीले फलों का आना शुरू हो जाता है. आजकल ये रसीले फल मानों दुकानों की शोभा ही बढ़ा रहे हैं. क्योंकि खरीदार मिल नहीं रहा और यही वजह है कि कारोबारियों को फलों के सीजन से फायदा कम और नुकसान ज्यादा हो रहा है.
फल कारोबारियों पर कोरोना की मार कुछ ऐसी पड़ी की इस बार 50 से 80 फीसदी तक का कारोबार कोरोना की भेंट चढ़ गया. कारोबारियों का कहना है कि हर साल की तरह इस साल भी अच्छी मात्रा में निचले राज्यों से फलों की सप्लाई हो रही है और इनके दाम भी ज्यादा नहीं है, लेकिन ग्राहकों के अभाव में 30 फीसदी माल रोजाना जानवरों को खिलाना पड़ता है.
कोरोना संक्रमण के दौर में मुनाफा तो छोड़िये लागत भी नहीं निकल रही. यहां तक कि लागत पर भी कोई फल नहीं खरीद रहा. ऐसे में नुकसान होना लाजमी है. सोचा था लॉकडाउन में हुए नुकसान की भरपाई अनलॉक में हो जाएगी, लेकिन सब धरा का धरा रह गया. ऐसे में अब सरकार से ही राहत की आस है.
प्रदेश में दूसरे राज्यों से फल पहुंच रहे हैं और फल विक्रेताओं ने लाख मुसीबतें झेलने के बाद करीब तीन महीने बाद अपना कारोबार शुरू किया है. इक्का-दुक्का ग्राहक बाजार से पहुंचने से बाहरी राज्यों से हिमाचल पहुंचने के बाद फल कूड़ेदान में जा रहे हैं.
कोरोना का डर इतना हावी हो रहा है कि लोग बाजार नहीं पहुंच रहे और सीजन में मिलने वाले फलों को भी ग्राहक नहीं मिल रहे. कहते हैं सब्र का फल मीठा होता है, लेकिन फल विक्रेताओं को कितना सब्र करना होगा और कब इन्हें इसका फल मीठा मिलेगा, फल विक्रेताओं को इसका इंतजार है.