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कुल्लू: 6 दिनों तक प्रतिदिन 4 बार होगा भगवान रघुनाथ का श्रृंगार

भगवान रघुनाथ का श्रृंगार एक दिन में 4 बार किया जा रहा है. रघुनाथ जी दशहरा उत्सव के अधिष्ठाता देव माने जाते हैं. रघुनाथ जी रोज सीता माता के साथ सज-धज कर अपने अस्थाई शिविर में अपने सिंहासन पर विराजमान होते हैं. दशहरा पर्व में हर रोज रघुनाथ का श्रृंगार सुंदर वस्त्रों और कीमती आभूषणों से किया जाता है.

Lord Raghunath will be adorned 4 times a day for 6 days in kullu
फोटो.
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Published : Oct 26, 2020, 3:01 PM IST

कुल्लू: देवी-देवताओं के महाकुंभ दशहरा उत्सव में भगवान रघुनाथ का अस्थाई कैंप जहां आकर्षण का केंद्र बना हुआ है वहीं, रघुनाथ का श्रृंगार एक दिन में 4 बार किया जा रहा है. रघुनाथ जी दशहरा उत्सव के अधिष्ठाता देव माने जाते हैं.

रघुनाथ जी रोज सीता माता के साथ सज-धज कर अपने अस्थाई शिविर में अपने सिंहासन पर विराजमान होते हैं. दशहरा पर्व में हर रोज रघुनाथ का श्रृंगार सुंदर वस्त्रों और कीमती आभूषणों से किया जाता है. यहीं नहीं ढालपुर मैदान के बीचों-बीच बने भगवान रघुनाथ जी के अस्थाई शिविर में वेशक इस बार सैंकड़ों देवी-देवता रोजाना हाजरी नहीं भर पा रहे हैं, लेकिन रघुनाथ जी की सभी परंपराओं का निर्वाह हो रहा है.

वीडियो.

यहां देव मिलन का क्षण लोगों के लिए एक आकर्षण का केंद्र बनता था, लेकिन इस बार कोरोना करके जो सख्ती बरती गई है. उसके कारण देवी-देवताओं को नहीं बुलाया गया बल्कि सिर्फ सात देवी-देवता ही बुलाए हैं. फिर भी कुछ देवी-देवता दशहरा कमेटी के आदेशों को दुत्कारते हुए यहां पहुंचे हैं. दशहरा में रघुनाथ जी का शाहीस्नान श्रद्धालुओं सहित देश-विदेश से आए लोगों के लिए भी आषर्कण का केंद्र रहता है.

संध्या के समय रघुनाथ की आरती से पहले अस्थाई शिविर में चंद्राउली नृत्य दशहरा देव समागम की शोभा को दो गुणा बढ़ा देता था, लेकिन इस बार इस पर भी कोरोना का ग्रहण लग गया है. प्रतिमा जो एक अंगुष्ठ मात्र है, का रोज शाही स्नान होता है और इनका कीमती आभूषणों और सुंदर वस्त्रों से श्रृंगार किया जाता है. शाम को भगवान रघुनाथ की आरती के बाद रघुनाथ, सीता माता और हनुमान जी के दर्शन सभी श्रद्धालुओं को करवाएं जाते हैं. भगवान की एक झलक पाने के लिए लोगों की भीड़ लग रही है.

Lord Raghunath will be adorned 4 times a day for 6 days in kullu
फोटो.

रघुनाथ को हर दिन के हिसाब से वस्त्र पहनाए जाते हैं. जैसे रविवार को लाल रंग और सोमवार को सफेद रंग के वस्त्र पहनाए जाते हैं. गौर रहे कि अयोध्या से रघुनाथ जी मूर्ति लाने के बाद ही दशहरा उत्सव शुरू हुआ था. अपने आप में अनूठी देव संस्कृति के लिए प्रसिद्ध कुल्लू केंद्र शहरी उत्सव में रघुनाथ जी विशेष महत्व है और दशहरा उत्सव में रघुनाथ जी को मुख्य देवता के रूप में पूजा जाता है. रघुनाथ जी के बिना दशहरा उत्सव का कोई अस्तित्व नहीं है.

कुल्लू: देवी-देवताओं के महाकुंभ दशहरा उत्सव में भगवान रघुनाथ का अस्थाई कैंप जहां आकर्षण का केंद्र बना हुआ है वहीं, रघुनाथ का श्रृंगार एक दिन में 4 बार किया जा रहा है. रघुनाथ जी दशहरा उत्सव के अधिष्ठाता देव माने जाते हैं.

रघुनाथ जी रोज सीता माता के साथ सज-धज कर अपने अस्थाई शिविर में अपने सिंहासन पर विराजमान होते हैं. दशहरा पर्व में हर रोज रघुनाथ का श्रृंगार सुंदर वस्त्रों और कीमती आभूषणों से किया जाता है. यहीं नहीं ढालपुर मैदान के बीचों-बीच बने भगवान रघुनाथ जी के अस्थाई शिविर में वेशक इस बार सैंकड़ों देवी-देवता रोजाना हाजरी नहीं भर पा रहे हैं, लेकिन रघुनाथ जी की सभी परंपराओं का निर्वाह हो रहा है.

वीडियो.

यहां देव मिलन का क्षण लोगों के लिए एक आकर्षण का केंद्र बनता था, लेकिन इस बार कोरोना करके जो सख्ती बरती गई है. उसके कारण देवी-देवताओं को नहीं बुलाया गया बल्कि सिर्फ सात देवी-देवता ही बुलाए हैं. फिर भी कुछ देवी-देवता दशहरा कमेटी के आदेशों को दुत्कारते हुए यहां पहुंचे हैं. दशहरा में रघुनाथ जी का शाहीस्नान श्रद्धालुओं सहित देश-विदेश से आए लोगों के लिए भी आषर्कण का केंद्र रहता है.

संध्या के समय रघुनाथ की आरती से पहले अस्थाई शिविर में चंद्राउली नृत्य दशहरा देव समागम की शोभा को दो गुणा बढ़ा देता था, लेकिन इस बार इस पर भी कोरोना का ग्रहण लग गया है. प्रतिमा जो एक अंगुष्ठ मात्र है, का रोज शाही स्नान होता है और इनका कीमती आभूषणों और सुंदर वस्त्रों से श्रृंगार किया जाता है. शाम को भगवान रघुनाथ की आरती के बाद रघुनाथ, सीता माता और हनुमान जी के दर्शन सभी श्रद्धालुओं को करवाएं जाते हैं. भगवान की एक झलक पाने के लिए लोगों की भीड़ लग रही है.

Lord Raghunath will be adorned 4 times a day for 6 days in kullu
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रघुनाथ को हर दिन के हिसाब से वस्त्र पहनाए जाते हैं. जैसे रविवार को लाल रंग और सोमवार को सफेद रंग के वस्त्र पहनाए जाते हैं. गौर रहे कि अयोध्या से रघुनाथ जी मूर्ति लाने के बाद ही दशहरा उत्सव शुरू हुआ था. अपने आप में अनूठी देव संस्कृति के लिए प्रसिद्ध कुल्लू केंद्र शहरी उत्सव में रघुनाथ जी विशेष महत्व है और दशहरा उत्सव में रघुनाथ जी को मुख्य देवता के रूप में पूजा जाता है. रघुनाथ जी के बिना दशहरा उत्सव का कोई अस्तित्व नहीं है.

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