कुल्लू: सनातन धर्म के अनुसार चैत्र माह से नए साल की शुरुआत की जाएगी. चैत्र माह की संक्रांति 14 मार्च को मनाई जाएगी. इसके अलावा चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा 22 मार्च को नवसंवत मनाया जाएगा और नवसंवत से ही नए साल की शुरुआत भी हो जाएगी. हालांकि फाल्गुन मास की पूर्णिमा के समापन होने के बाद ही कृष्ण पक्ष शुरू हो जाएगा और चैत्र माह की शुरुआत भी हो जाती है. लेकिन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नवसंवत मनाया जाएगा.
इन दिनों धार्मिक कार्यों का आयोजन करना काफी शुभ माना जाता है. अमावस्या के बाद चंद्रमा जब मेष राशि और अश्वनी नक्षत्र में प्रकट होकर रोजाना एक-एक कला बढ़ता हुआ 15 दिन चित्रा नक्षत्र में पूर्णता को प्राप्त करता है तब वह मास चित्रा नक्षत्र के कारण चैत्र कहलाता है. इसे संवत्सर भी कहते हैं जिसका अर्थ विशेषकर 12 मार्च होता है. ज्योतिषाचार्य पुष्पराज शर्मा का कहना है कि पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि की रचना शुरू की थी और इसी दिन भगवान विष्णु ने पहले मत्स्य अवतार के रूप में जल राशि से मनु ऋषि की नौका को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया था. प्रलय काल खत्म होने के बाद मनु ऋषि ने सृष्टि की शुरुआत की थी. वहीं, चैत्र माह की शुरुआत शुक्ल प्रतिपदा से होती है. इस दिन लोग नवसंवत यानी नववर्ष की भी बधाई देते हैं और धार्मिक कार्यों के लिए चैत्र माह काफी महत्वपूर्ण माना गया है.
सनातन धर्म के अनुसार एक माह के 15 दिन शुक्ल पक्ष और दूसरा पक्ष कृष्ण पक्ष होता है. चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मां दुर्गा, द्वितीया को लक्ष्मी, तृतीया को भगवान शिव पार्वती और अग्नि देवता का पूजन करना चाहिए. वहीं, चतुर्थी को गणेश जी का पूजन करना चाहिए. पंचमी को लक्ष्मी पूजन तथा नागों का पूजन किया जाता है. और षष्ठी तिथि को स्वामी कार्तिकेय की पूजा का विधान है. सप्तमी को सूर्य पूजन करना चाहिए और अष्टमी को मां दुर्गा का पूजन और पवित्र नदी में स्नान करने का भी महत्व है. नवमी को मां भद्रकाली की पूजा और दशमी को धर्मराज की पूजा करनी चाहिए. एकादशी को कृष्ण भगवान तथा द्वादशी को दमन कोत्सव का उत्सव मनाया जाता है. फिर त्रयोदशी को कामदेव की पूजा का विधान है और चतुर्दशी को भैरव की पूजा की जाती है. इसके अलावा पूर्णिमा को हनुमान की पूजा करने का भी विधान शास्त्रों में लिखा गया है.
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