किन्नौर: हिमाचल की दुर्गम पहाड़ियों के बीच बसा छोटा सा जिला किन्नौर अपनी संस्कृति और पौराणिक कथाओं के लिए देश दुनिया में मशहूर हैं. यहां महाभारत काल से लेकर रामपुर रियासत के राजा महाराजाओं की गाथाएं सुनने और देखने को मिलती है. जिले में ऐसी ही एक धरोहर हैं जिसे मूरंग किले के नाम से जाना जाता हैं.
गांव में रहने वाले बुजुर्ग इस किले को महाभारत काल से जोड़कर देखते हैं तो वहीं, युवा पीढ़ी इसे राजाओं का किला मानती है. साल 1975 में आए भयंकर भूकंप ने भी हजारों साल पुराने इस किले को कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाया. लेकिन अब यही किला सरकार और प्रशासन की अनदेखी का शिकार हो गया है. मूरंग किला अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए जद्दोजहद करता हुआ नजर आ रहा है.
समुंद्र तल से 3591 मीटर ऊंचाई पर बसा है मूरंग गांव
मूरंग गांव समुंदर तल से 3591 मीटर ऊंचाई पर स्थित है. मूरंग गांव जिला किन्नौर के मुख्यालय रिकांगपिओ से करीब 40 किलोमीटर दूर स्थित है, यहां की भौगोलिक परिस्थिति कठिन है. लेकिन इस क्षेत्र के लोग काफी मेहनतकश और देव आस्था में यकीन रखते हैं. इस गांव मे कई ऐसी ऐतिहासिक चीजे हैं. किले में मूरंग गांव के देवता ओरमिक शू का मंदिर है. मूरंग किला इतनी ऊंचाई पर मौजूद है, यहां से पूरा गांव देखा जा सकता है. इस किले की ऊंचाई करीब 40 फिट है जो राष्ट्रीय उच्च मार्ग-5 से सीधे नजर आता है.
मूरंग किले का इतिहास
गांव के बुजुर्गों का कहना है कि यह किला 5 हजार साल पूराना है, जिसे महाभारत काल में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान एक ही रात में बनवाया था. वहीं युवा पीढ़ी का मानना है कि सैकड़ों साल पहले राजाओं ने दुश्मनों ने अपनी सुरक्षा के लिए इस किले का निर्माण कराया था. किले को इतनी ऊंचाई पर बनवाया गया है कि यहां से राजा पूरे क्षेत्र को देख सकते थे. किले में चारों ओर छोटी-छोटी खिड़कियां बनी है, जहां से दुश्मनों पर हमला किया जाता था.
ओमरिक शू को माना जाता है पूरे क्षेत्र का मालिक
मूरंग किले में एक और जनश्रुति भी है कि यहां के स्थानीय देवता ओरमिक शू इस किले में समय-समय पर आते जाते रहते हैं. क्योंकि वे इस क्षेत्र के मालिक माने जाते हैं और इस किले के अंदर की शक्तियों की वे खुद ही देखरेख करते हैं. इस किले में जिला स्तरीय ओरमिक शू मेला भी मनाया जाता है. इस दिन किले में देवता ओरमिक शू आकर पूजा पाठ करते हैं. इस मेले में कुछ लोग पांडवों का रूप भी धारण करते हैं. यह भी कहा जाता है कि मूरंग किला एक नहीं बल्कि दो है. एक किला बड़ा है जिसे किंग किला यानी राजा किला और दूसरा उसी के साथ निचली तरफ है जिसे क्वीन यानी रानी किला कहा जाता है.
लकड़ी और पत्थरों से हुआ है किले का निर्माण
मूरंग गांव में बड़े टापू पर यह किला निर्मित है. किले का निर्माण मोटी-मोटी लकड़ी और बड़े-बड़े नक्काशी वाले पत्थरों से कराया गया है. जिसे आज के समय में बनाना नामुमकिन है. इस किले का निर्माण इस तरह हुआ है कि सतलुज नदी में यदि बाढ़ आये या पहाड़ों से ग्लेशियर, तब भी इसे किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचता है. इस किले के चारो ओर पौराणिक काल के निर्मित छोटे-छोटे ठहराव स्थल भी देखे जा सकते हैं.
किले पर नहीं हुआ था भूकंप का असर
इस किले की खासियत यह है कि जिले में साल 1975 में जब भयंकर भूकंप आया तो जिले में काफी नुकसान हुआ था. लेकिन इस किले पर कोई असर नहीं पड़ा. किले के चारों ओर लकड़ी के जोड़ होते हैं जो भूकंप के दौरान भवन को मजबूती प्रदान करते हैं. मान्यताओं के अनुसार किसी वक्त सतलुज का बहाव इस किले के आसपास था और किला सतलुज के बिल्कुल समीप था लेकिन धीरे-धीरे सतलुज का बहाव भी नीचे चला गया और किले के आसपास गांव बस गए.
दयनीय स्थिति में है ऐतिहासिक किला
ऐतिहासिक किला एक धार यानी टापू पर निर्मित है. ऐसे में यहां काफी तेज हवाओं का बहाव रहता है. इसके अलावा बारिश और बर्फबारी के दौरान भी इसकी छत और दीवारों पर लगी लकड़ी भी खराब हो रही है. किले के आसपास कुछ पत्थर व लकड़ी से निर्मित छोटे किले भी हैं जो वक्त के साथ खंडहर में तब्दील होता जा रहा है.
किले के अस्तित्व को बचाने की हो रही कोशिश
मूरंग किले की हालत अब जर्जर हो रही है जिससे न केवल इसका अस्तित्व खतरे में है बल्कि इतिहास पर भी प्रभाव पड़ सकता है. ऐसे में इस किले के जीर्णोद्धार के लिए ओरमिक शू मंदिर कारदार और मूरंग किले के कमेटी प्रबंधन काम कर रहे हैं. केंद्र सरकार की ओर से किले के जीर्णोद्धार के लिए तीन करोड़ का बजट दिया गया है. ताकि इस हजारों साल पुराने किले के अस्तित्व को बचाया जा सके है.