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लाबरंग गांव में स्थित है किन्नौर का सबसे ऊंचा किला, अनोखी शैली में बने किले का इतिहास आज भी राज

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Published : Nov 2, 2019, 3:15 PM IST

अपनी अमीरी और इतिहास के लिए प्रसिद्ध जिला किन्नौर में राजा-महाराजाओं और यहां के पूर्वजों ने यहां अटूट छाप छोड़ी है. पश्चिमी सभ्यता के दौर में जहां भारत का युवा अपनी पूरानी संस्कृति को भूलता जा रहा है. वहीं, किन्नौर के लोग आज भी हजारों सालों से निभाए जाने वाले रीति-रिवाज और संस्कृति का सहेजे हुए हैं.

लाबरंग किला.

किन्नौर: हिमाचल के किले सीरिज की इस कड़ी में हम इस बार सैर करेंगे किन्नौर के सबसे ऊंचे किले की. अद्भुत और अनोखी शैली में बने लाबरंग गांव के खूबसूरत किले के चारों तरफ बौद्ध धर्म के लहराते झंडों को देख एक सकारात्मक एहसास होता है. यह किला लाबरंग गांव के मध्य ऊंचे टापू पर स्थित है, जहां से दूर-दूर के इलाके दिखाई देते हैं.

किले की नक्काशी व आकार
तीन हजार फीट की ऊंचाई पर बने इस किले को पुराने पत्थर व लकड़ियों से बनाया गया है. लाबरंग के लोगों का कहना है कि इस किले का निर्माण एक ही रात में हुआ था. किले को बड़े-बड़े लकड़ी के जोड़ व पत्थरों की चिनाई कर बनाया गया है. बताया जाता है कि पहले ये किला सात मंजिल का था, लेकिन कई वर्ष पूर्व किले के पास रहने वाले जमीनदार के मकान में आग लगते देख स्थानीय लोगों ने किले को बचाने के लिए ऊपर की दो मंजिलों की मिट्टी निकालकर इस आग पर काबू पाया था, जिसके बाद किला पांच मंजिला रह गया. किले में सरकार द्वारा मिट्टी की जगह स्लेट की छत का नवनिर्माण किया गया. किले के मुख्य द्वार पर लोहे के मोटे जंजीर लगा हुआ है, जो ऊपर के अंतिम कक्ष तक जुड़ा होता था और जब मुख्य द्वार को खोला जाता था तो ऊपरी कक्ष में इसका पता चल जाता था. किले के दरवाजे में अंदर से भी एक पौराणिक कला की लकड़ी का छह फीट लंबा ताला बना है.

किन्नौर के लाबरंग गाँव के स्थित है किन्नौर के सबसे ऊंचा किला,

लाबरंग किले का आकार देखने में चौखट है, जो चारों तरफ से देखने पर बराबर नजर आता है. इसका छत पत्थरों के स्लेट से बना है. किले की सबसे निचली मंजिल से एक गुप्त मार्ग है, जो करीब 100 मीटर लंबा है और सीधे लाबरंग गांव के जमीन के अंदर से होते हुए एक प्राकृतिक जल स्त्रोत व वस्त्र धोने के घाट पर निकलता है. बताया जाता है कि ठाकुरों के समय में उनके नौकर इस गुप्त मार्ग से ठाकुरों के लिए जल लाने व वस्त्रों को धोने के लिए घाट तक जाते थे.

किले का इतिहास व किवदन्ती
किन्नौर के लाबरंग में स्थित इस किले का इतिहास आज तक कोई इतिहासकार नहीं बता पाया है. स्थानीय बुजुर्ग कहते हैं कि यह किला पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान बनाया था. जबकि किन्नौर का कुछ पढ़ा-लिखा तबका इस बात का कटाक्ष कर कहते हैं कि किले के अंदर बने कक्ष बहुत छोटे हैं, जिनमें पांडवों जैसे बड़े शरीर वाले लोग नहीं रह सकते और अज्ञातवास के दौरान पांडव गुप्त इलाकों में रहते थे, जबकि किला चारों ओर से दिखता है.

वहीं, स्थानीय लोगों का कहना है कि हजारों साल पूर्व लाबरंग गांव में ठाकुरों का राज था और ठाकुरों ने इस किले का निर्माण किया था. किले से ठाकुर अपने इलाके से चारों तरफ दुश्मनों पर नजर रख सकते थे. लाबरंग के लोग बताते हैं कि इस किले के साथ और भी किले थे जिन्हें बाद में ग्रामीणों ने ध्वस्त कर दिया.

लाबरंग शासित ठाकुरों के पास काफी सोना-चांदी होता था, जिसके साक्ष्य आज भी किले के अंदर हैं. किले के आसपास ठाकुरों के पुराने लकड़ी के मकान व राशन भंडारण के छोटे-छोटे घर आज भी देखने को मिलते है, जिससे ये साबित होता है कि ठाकुर शासन लाबरंग गांव में भरपूर फूल रहा था. ठाकुरों का राज पहले लाबरंग से लेकर कई अन्य ग्रामीण क्षेत्रों तक होता था.

किले में की गई कलाकृतियां
लाबरंग किले के अंदर आज भी हजारों वर्ष पुरानी तलवारें दिखती है, जिसे ग्रामीणों ने संभाल कर रखा है. लाबरंग किले के पुजारी का कहना है कि हजारों वर्ष पूर्व जब ठाकुरों का शासन हुआ करता था. ठाकुर इस किले से अपने इलाकों की तपतिश किया करते थे और दुश्मनों पर नजर रखते थे. इस किले के अंदर से दुश्मनों को देखने के लिए खुफिया खिड़कियां है. इन गुप्त खिड़कियों से तीर से हमला कर ठाकुर दुश्मनों को किले की ओर आने से रोकते थे. खिड़कियों की खासियत यही है कि किले के अंदर से तीर बाहर मारा जा सकता है, लेकिन बाहर से अंदर की ओर दुश्मन तीर व हथियारों से हमला नहीं कर पाते थे, जिसके कारण ठाकुर हमेशा युद्ध जीत जाते थे. किले के अंदर कुछ पत्थर व अन्य धातुओं की मूर्तियां भी हैं जो ठाकुरों के इष्ट देवता माने जाते हैं. माना जाता है कि ठाकुरों के देवता आज भी किले की रक्षा कर रहे हैं.

लाबरंग के लोगों ने बताया कि किले पर जब ठाकुरों का शासन लगभग खत्म हो गया था और ठाकुरों की विरासत खत्म हो गयी थी तो रामपुर रियासत के राजाओं ने इस किले पर आधिपत्य जमा लिया. किले का इतिहास बाद में राजा कहर सिंह व पदम सिंह से भी जोड़ा गया. बताया जाता है कि कहर सिंह व पदम सिंह ने इस किले को अपने अधीन कर लाबरंग के बिष्ट परिवार को किले का पुजारी निर्धारित कर पूजा करने का अधिकार दिया था.

बता दें कि जब इस किले में ठाकुरों का शासन खत्म हुआ था तो लाबरंग के ग्रामीणों ने किले के समक्ष ठाकुरों के पुराने मकान राशन भंडारण पर भी बोली लगाकर दे दिया था और मुख्य किले को सुरक्षित रखा गया. इस किले को देखने व शोध के लिए आज भी हजारों लोग लाबरंग गांव आते हैं. लाबरंग किले का इतिहास आज भी शोध का विषय बना हुआ है, किले का निर्माण पांडवों ने किया था या ठाकुरों ने, अभी तक इस बात का खुलासा नहीं हो पाया है.

किन्नौर: हिमाचल के किले सीरिज की इस कड़ी में हम इस बार सैर करेंगे किन्नौर के सबसे ऊंचे किले की. अद्भुत और अनोखी शैली में बने लाबरंग गांव के खूबसूरत किले के चारों तरफ बौद्ध धर्म के लहराते झंडों को देख एक सकारात्मक एहसास होता है. यह किला लाबरंग गांव के मध्य ऊंचे टापू पर स्थित है, जहां से दूर-दूर के इलाके दिखाई देते हैं.

किले की नक्काशी व आकार
तीन हजार फीट की ऊंचाई पर बने इस किले को पुराने पत्थर व लकड़ियों से बनाया गया है. लाबरंग के लोगों का कहना है कि इस किले का निर्माण एक ही रात में हुआ था. किले को बड़े-बड़े लकड़ी के जोड़ व पत्थरों की चिनाई कर बनाया गया है. बताया जाता है कि पहले ये किला सात मंजिल का था, लेकिन कई वर्ष पूर्व किले के पास रहने वाले जमीनदार के मकान में आग लगते देख स्थानीय लोगों ने किले को बचाने के लिए ऊपर की दो मंजिलों की मिट्टी निकालकर इस आग पर काबू पाया था, जिसके बाद किला पांच मंजिला रह गया. किले में सरकार द्वारा मिट्टी की जगह स्लेट की छत का नवनिर्माण किया गया. किले के मुख्य द्वार पर लोहे के मोटे जंजीर लगा हुआ है, जो ऊपर के अंतिम कक्ष तक जुड़ा होता था और जब मुख्य द्वार को खोला जाता था तो ऊपरी कक्ष में इसका पता चल जाता था. किले के दरवाजे में अंदर से भी एक पौराणिक कला की लकड़ी का छह फीट लंबा ताला बना है.

किन्नौर के लाबरंग गाँव के स्थित है किन्नौर के सबसे ऊंचा किला,

लाबरंग किले का आकार देखने में चौखट है, जो चारों तरफ से देखने पर बराबर नजर आता है. इसका छत पत्थरों के स्लेट से बना है. किले की सबसे निचली मंजिल से एक गुप्त मार्ग है, जो करीब 100 मीटर लंबा है और सीधे लाबरंग गांव के जमीन के अंदर से होते हुए एक प्राकृतिक जल स्त्रोत व वस्त्र धोने के घाट पर निकलता है. बताया जाता है कि ठाकुरों के समय में उनके नौकर इस गुप्त मार्ग से ठाकुरों के लिए जल लाने व वस्त्रों को धोने के लिए घाट तक जाते थे.

किले का इतिहास व किवदन्ती
किन्नौर के लाबरंग में स्थित इस किले का इतिहास आज तक कोई इतिहासकार नहीं बता पाया है. स्थानीय बुजुर्ग कहते हैं कि यह किला पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान बनाया था. जबकि किन्नौर का कुछ पढ़ा-लिखा तबका इस बात का कटाक्ष कर कहते हैं कि किले के अंदर बने कक्ष बहुत छोटे हैं, जिनमें पांडवों जैसे बड़े शरीर वाले लोग नहीं रह सकते और अज्ञातवास के दौरान पांडव गुप्त इलाकों में रहते थे, जबकि किला चारों ओर से दिखता है.

वहीं, स्थानीय लोगों का कहना है कि हजारों साल पूर्व लाबरंग गांव में ठाकुरों का राज था और ठाकुरों ने इस किले का निर्माण किया था. किले से ठाकुर अपने इलाके से चारों तरफ दुश्मनों पर नजर रख सकते थे. लाबरंग के लोग बताते हैं कि इस किले के साथ और भी किले थे जिन्हें बाद में ग्रामीणों ने ध्वस्त कर दिया.

लाबरंग शासित ठाकुरों के पास काफी सोना-चांदी होता था, जिसके साक्ष्य आज भी किले के अंदर हैं. किले के आसपास ठाकुरों के पुराने लकड़ी के मकान व राशन भंडारण के छोटे-छोटे घर आज भी देखने को मिलते है, जिससे ये साबित होता है कि ठाकुर शासन लाबरंग गांव में भरपूर फूल रहा था. ठाकुरों का राज पहले लाबरंग से लेकर कई अन्य ग्रामीण क्षेत्रों तक होता था.

किले में की गई कलाकृतियां
लाबरंग किले के अंदर आज भी हजारों वर्ष पुरानी तलवारें दिखती है, जिसे ग्रामीणों ने संभाल कर रखा है. लाबरंग किले के पुजारी का कहना है कि हजारों वर्ष पूर्व जब ठाकुरों का शासन हुआ करता था. ठाकुर इस किले से अपने इलाकों की तपतिश किया करते थे और दुश्मनों पर नजर रखते थे. इस किले के अंदर से दुश्मनों को देखने के लिए खुफिया खिड़कियां है. इन गुप्त खिड़कियों से तीर से हमला कर ठाकुर दुश्मनों को किले की ओर आने से रोकते थे. खिड़कियों की खासियत यही है कि किले के अंदर से तीर बाहर मारा जा सकता है, लेकिन बाहर से अंदर की ओर दुश्मन तीर व हथियारों से हमला नहीं कर पाते थे, जिसके कारण ठाकुर हमेशा युद्ध जीत जाते थे. किले के अंदर कुछ पत्थर व अन्य धातुओं की मूर्तियां भी हैं जो ठाकुरों के इष्ट देवता माने जाते हैं. माना जाता है कि ठाकुरों के देवता आज भी किले की रक्षा कर रहे हैं.

लाबरंग के लोगों ने बताया कि किले पर जब ठाकुरों का शासन लगभग खत्म हो गया था और ठाकुरों की विरासत खत्म हो गयी थी तो रामपुर रियासत के राजाओं ने इस किले पर आधिपत्य जमा लिया. किले का इतिहास बाद में राजा कहर सिंह व पदम सिंह से भी जोड़ा गया. बताया जाता है कि कहर सिंह व पदम सिंह ने इस किले को अपने अधीन कर लाबरंग के बिष्ट परिवार को किले का पुजारी निर्धारित कर पूजा करने का अधिकार दिया था.

बता दें कि जब इस किले में ठाकुरों का शासन खत्म हुआ था तो लाबरंग के ग्रामीणों ने किले के समक्ष ठाकुरों के पुराने मकान राशन भंडारण पर भी बोली लगाकर दे दिया था और मुख्य किले को सुरक्षित रखा गया. इस किले को देखने व शोध के लिए आज भी हजारों लोग लाबरंग गांव आते हैं. लाबरंग किले का इतिहास आज भी शोध का विषय बना हुआ है, किले का निर्माण पांडवों ने किया था या ठाकुरों ने, अभी तक इस बात का खुलासा नहीं हो पाया है.

Intro:किन्नौर के लाबरंग गाँव के स्थित है किन्नौर के सबसे ऊंचा किला,आज तक कोई नही बता पाया इस किले का इतिहास व इसके निर्माण के बारे में,आज भी इस किले के बारे में किया जा रहा शोध,कुछ लोग इस किले को पांडवो के द्वारा निर्मित बताते है तो कुछ ठाकुरो का घर कहते है।


जनजातीय जिला किन्नौर अपने अमीरी इतिहास के लिए जाना जाता है इसी तरह किन्नौर में आज भी कई इतिहास किलो के रूप में देखने को मिलते है।
आइए आज लाबरंग गॉव में स्थित किन्नौर के सबसे ऊंचे किले के बारे में बताते है।


किले के निर्माण व ऊंचाई------जिला किन्नौर के पूह खण्ड के तहत तीन हज़ार फिट पर बसा खूबसूरत लाबरंग गाँव चारो तरफ बौद्ध धर्म के लहराते झण्डों को देख एक सकारात्मक एहसास होने लगता है,बता दे कि लाबरंग गाँव अपने आप मे एक ऐतिहासिक गाँव है क्यों कि यहाँ पर स्थित एक बहुत ऊंचा किला है जिसकी बनावट बहुत ही पुराने तरीके के पत्थर व लकड़ियों से बनी हुई है। यह किला लाबरंग गाँव के मध्य ऊंची टापू पर स्थित है जहां से चारो ओर के दूर दूर के इलाके भी देखे जा सकते है लाबरंग गाँव का यह किला तीन हज़ार फिट की ऊंचाई पर स्थित है।



इसकी नक्काशी व आकार------लाबरंग किले की नक्काशी पत्थर व लकड़ियों द्वारा बनाया गया है लाबरंग के लोगो का कहना है कि इस किले का निर्माण एक ही रात में हुआ है जिसमे बड़े बड़े लकड़ी के जोड़ व पत्थरो की चिनाई से इस किले को बनाया गया है यह किला में कुल पांच मंजिल का है वैसे तो यह किला सात मंजिल का था लेकिन इसके दो मंजिल कई वर्ष पूर्व किले के समीप वाले ज़मीदार के मकान में आग लगते देख लोगो ने इस किले को बचाने के लिए किले के छत से मिट्टी निकालकर ज़मीदार के घर को बुझाने का काम किया था जिसके बाद अब इसमें पांच मंजिल भवन ही बच गया है इस किले की नकाशी में पूरी तरह लकड़ी व पत्थर के साथ मुख्य द्वार पर लोहे के मोटे मोटे ज़ंज़ीर लगे हुए है जो ऊपर के अंतिम कक्ष के बाहर तक उड़ा होता था जो नीचे से ऊपर जब द्वार खोला जाता था तो ऊपरी कक्ष में पता चल जाता था कि कोई मुख्य द्वार से अंदर आ रहा है,किले के दरवाजे में अंदर से भी एक पौराणिक कला के लकडी का 6 फिट लम्बा ताला बना है जिसे खोलना नामुमकिन है,लाबरंग किले का आकार देखने मे चौखट है जिसे चारो तरफ से देखने पर बराबर नज़र आता है इसके छत पर पत्थरो के स्लेट का छत बना है। इस किले के सबसे निचले मंजिल से एक गुप्त मार्ग भी है जो करीब सौ मीटर लबा रास्ता है जो सीधे लाबरंग गाँव के ज़मीन के अंदर से होते हुए एक प्राकृतिक जल स्त्रोत व वस्त्र धोने के घाट पर निकलता है बताया जाता है कि उस वक्त ठाकुरो के नौकर इस गुप्त मार्ग से ठाकुरो के लिए जल लाने व वस्त्रो को धोने के लिए घाट तक जाते थे।



किले का इतिहास व किवदन्ती------किन्नौर के लाबरंग में स्थित इस किले का इतिहास आज तक कोई इतिहासकार नही बता पाया की इसका क्या इतिहास है लेकिन किन्नौर में कई बुजुर्ग कहते है कि यह किला पांडवो ने अपने अज्ञातवास के दौरान बनाया था और किन्नौर के कुछ पढा लिखा तपका इस बात का कटाक्ष कर कहते है कि पांडव अज्ञातवास में आए थे और इस किले के अंदर बने कक्ष बहुत छोटे है जिसमे पांडव जैसे बड़े शरीर वाले लोग नही रह सकते और अज्ञातवास में पांडव गुप्त इलाको में रहते थे न कि किसी की नज़र में आते थे जबकि किला चारो ओर से दिखता है वहीं लोगो का कहना है कि हज़ारो साल पूर्व लाबरंग गाँव मे ठाकुरो का राज था और ठाकुरो ने इस किले का निर्माण किया था जहां से वे अपने इलाके को चारों तरफ से देख सकते थे और दुश्मनों पर नज़र रखते थे और इस किले से ठाकुर अपना शासन चलाते थे लाबरंग कि लोग बताते है कि इस किले के साथ और भी किले थे जिसे बाद में ग्रामीणों ने ध्वस्त कर दिया ठाकुर जब लाबरंग में शासित थे तो उनके पास सोने चाँदी के समान होते थे जिसके साक्ष्य आज भी किले के अंदर देखने को मिलते है और किले के आसपास ठाकुरो के कुछ पुराने लकड़ी के मकान व राशन भंडारण के छोटे छोटे घर देखने को मिलते है जिससे साबित होता है कि ठाकुर शासन पहले लाबरंग गाँव मे भरपूर फूल रहा था बताते चले कि ठाकुरो का राज पहले लाबरंग से लेकर कई अन्य ग्रामीण क्षेत्रो तक होता था क्यों को किले से कई गांव दिखते थे और जहां तक किले से गाँव देखे जा सकते थे वे सब ठाकुरो के अधीन हुआ करते थे जिसपर ठाकुरो का राज होता था।


किले के अंदर की कलाएं---------लाबरंग किले के अंदर आज भी कुछ हज़ारो वर्ष पुरानी तलवारे दिखती है जिसे ग्रामीणों ने संभाल कर रखा है लाबरंग किले के पुजारी का कहना है कि हज़ारो वर्ष पूर्व जब ठाकुरो का शासन हुआ करता था तब ठाकुर इस किले से अपने इलाको की तपतिश किया करते थे और दुश्मनों पर नज़र रखते थे इस किले के अंदर से दुश्मनों को देखने के लिए खुफिया खिड़कियां है जहां से ठाकुर जब दुश्मन किले की तरफ हमला करने आते थे तो उन गुप्त खिड़कियों से तीर से हमला कर दुश्मनों को किले की ओर आने से रोकते थे इन गुप्त खिड़कियों की खासियत यही है कि किले के अंदर से तीर बाहर मारा जा सकता है लेकिन बाहर से अंदर की ओर दुश्मन तीर व हथियारों से हमला नही कर पाते थे जिसके कारण ठाकुर हमेशा युद्ध जीतते आए,किले के अंदर कुछ पत्थर व अन्य धातुओं की मूर्तियां भी है जो इस किले के शासकों के इष्ट देवता माने जाते है जो आज भी किले की रक्षा कर रहे है।





Body:रामपुर रियासत के राजा व लाबरंग किले का इतिहास------इस किले के बारे में अनेक किवदंतिया सुनने को मिलते रहे है लेकिन सच्चाई और इतिहास आज तक नही मिल पाया लेकिन लाबरंग के लोगो ने बताया कि हज़ारो वर्ष पुराने इस किले पर जब ठाकुरो का शासन लगभग खत्म हो गया था और ठाकुरों की विरासत खत्म हो गयी थी तो रामपुर रियासत के राजाओं ने इस किले पर आधिपत्य जमा दिया और राजा कहर सिंह व पदम् सिंह का इतिहास भी बादमे इससे जुड़ जाता है जब कहर सिंह व पदम् सिंह ने इस किले को अपने अधीन कर लाबरंग के बिष्ट परिवार को किले का पुजारी निर्धारित कर उनको पूजा करने का अधिकार दे दिया और किले पर अपना राज करना शुरू किया था।



बता दे कि जब इस किले में ठाकुरो का लगभग शासन खत्म हुआ था तो लाबरंग के ग्रामीणों ने किले के समक्ष ठाकुरो के पुराने मकान व ठाकुरो के राशन भंडारण पर भी बोली लगाकर कुछ लोगो को दे दिये और मुख्य किले को सुरक्षित रखकर इसे इतिहास की झलक देखने के लिए आज भी ग्रामीणों द्वारा बचाया गया है और इस किले को देखने व शोध के लिए आज भी हज़ारो लोग लाबरंग गाँव आते है।






Conclusion:लाबरंग किले का इतिहास आज भी शोध का विषय बना हुआ है लेकिन इस किले का निर्माण पांडवो ने किया था या ठाकुरो ने इस बात का किसी को पता नही है,इसलिए आज भी लेखकों व किवधन्तिकारियो में इस किले की सच्चाई जानने को बेताब है।


इस किले में सरकार द्वारा स्लेट की छत का नवनिर्माण किया गया है जो पहले मिट्टी का छत हुआ करता था।


बाईट--1---- टाशि ज्ञाछो बिष्ट---पुजारी लाबरंग किला

बाईट--2---धर्मपाल नेगी ----लाबरंग निवासी।
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