किन्नौर: जनजातीय जिला किन्नौर की सबसे शुद्ध व दैवीय आस्था की प्रतीक मानी जाने वाली नाको झील का रंग इन दिनों पूरी तरह साफ हो गया है. लॉकडाउन के चलते इस झील में आसमान की तस्वीर व पूरा गांव शीशे की प्रतिमा की तरह दिख रहा
नाको झील के आसपास बौद्ध धर्म के कई बड़े लामाओं ने तपस्या की है. यहां पर गुरु पद्मसंभव ने भी कुछ समय रुककर तपस्या की थी. इस झील को गांव की जीवनदायिनी झील भी माना जाता है. इस झील की गहराई आज तक कोई नहीं बता पाया है. पिछले कई वर्षो से प्रदूषण की मार झेल रही नाको झील ने लॉकडाउन के लगभग डेढ़ महीने बाद अद्भुत स्वरूप धारण कर लिया है.
नाको गांव के स्थानीय निवासी शांता का कहना है कि लॉकडाउन के बाद नाको स्थित प्राकृतिक झील ने अपना रंग बदल दिया है, जिसे देख नाको के सभी लोग गदगद है. उन्होंने कहा कि ग्रामीणों ने इससे पहले नाको का इतना साफ नजारा कभी नहीं देखा था. वहीं, नाको गांव में 100 वर्ष से ज्यादा की उम्र के बुजुर्ग बताते हैं की करीब 90 वर्ष पहले नाको का रंग इतना साफा हुआ करता था.
शांता ने कहा कि इस झील की वजह से नाको गांव का अस्तित्व जुड़ा हुआ है. पूरा नाको गांव इस झील के आसपास बसा हुआ है और इस झील की ठंडक से यहां की फसल और वातावरण हमेशा साफ रहता है. झील के साफ पानी में आसमान की नीली परत के साथ गांव का प्रतिबिंब भी देखने को मिल रहा है.
शांता ने बताया कि इस झील का निर्माण आज भी एक रहस्य है. जबकि मान्यताओं के अनुसार झील का निर्माण तपस्वी गुरु पद्मसंभव देवता पुर्ग्युल से जुड़ा हुआ है. शांता ने कहा कि लॉकडाउन ने नाको झील की खूबसूरती व असली अस्तित्व को वापिस लाकर नई पीढ़ी को इस झील के असली रंग के साथ वातावरण को साफ रखने का सन्देश दिया है.