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बेहद रोचक है फुलाइच मेले की परंपरा, इष्ट देव को अर्पित किया जाता है 13 हजार फीट की ऊंचाई में खिलने वाला ब्रह्म कमल

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Published : Sep 7, 2019, 3:37 PM IST

Updated : Sep 7, 2019, 7:25 PM IST

हिमालय की गोद में बसा हिमाचल अपनी प्राकृतिक सुंदरता, भव्य मंदिरों और परंपराओं की वजह से विश्वभर में विख्यात है. बर्फीली वादियों में बसा हिमाचल का जिला किन्नौर यहां की भौगोलिक परिस्थितियों और अनूठी संस्कृति के लिए प्रदेश में एक अलग पहचान रखता है. किन्नौर में कई ऐसे त्यौहार और मेले लगते हैं, जिनसे जुड़ी प्रथाएं बेहद रोचक हैं.

डिजाइन फोटो.

किन्नौर: इन दिनों किन्नौर में फुलाइच मेले की खूब धूम है. फुलाइच मेला फूलों का मेला है. इस मेले में 13 हजार फीट की ऊंचाई से ब्रह्म कमल नाम के फूल लाए जाते हैं. स्थानीय ग्रामीण पहाड़ों से ब्रह्म कमल के फूल लाकर इष्ट देव को अर्पित करते हैं.

ग्रामीण नंगे पांव चलकर पहाड़ों से ब्रह्म कमल का फूल लाते हैं. ब्रह्म कमल का फूल लाने के लिए ग्रामीणों को दो से तीन दिनों का पैदल सफर तय करना पड़ता है. इस फूल को देवी-देवताओं को अर्पित करने से पहले अश्लील गालियां दी जाती है, ताकि ब्रह्म कमल फूल के साथ आई गुप्त देवियों को वापस पहाड़ों पर भेजा जा सके. फूल देवताओं को अर्पित करने के बाद ब्रह्म कमल फूल को सभी ग्रामीणों में बांटा जाता है. मेले में गांव की महिलाएं व पुरुष सुंदर पारंपरिक वेशभूषाओं में मंदिर आकर कायनग यानि मेले में शामिल होते हैं.

phulaich fair of kinnaur
डिजाइन फोटो.

बता दें कि ब्रह्म कमल का फूल बेहद दुर्लभ माना जाता है. 13 हजार फीट की ऊंचाई पर उगने वाला ये फूल साल में एक बार ही खिलता है. फुलाइच मेला सितंबर से अक्टूबर महीने (भाद्रपद) में मनाया जाता है. मान्यता है कि देवी-देवताओं द्वारा चुने गए कुछ लोग ही ब्रह्म कमल को लाने पहाड़ पर जाते हैं और इसे अपने इष्ट देव को अर्पित करते हैं. ये मेला जिला के हर गांव में अगल-अलग दिन लगता है और आजकल सापनी, शोंग व रोपा गांव में मनाया जा रहा है.

मेले के दौरान बड़ी संख्‍या में पर्यटक किन्नौर पहुंचते हैं. स्थानीय देवी-देवता भी इस मेले में नृत्य करते हैं. ग्रामीण मेले के दौरान ग्रामीण अपने घर व बाग-बगीचों में काम नहीं करते. पूरे पांच दिन मंदिर प्रांगण में पूजा-पाठ करते हैं और मेला करते है. इस दौरान ग्रामीण देवता से सर्दियों में बर्फबारी व दूसरे वर्ष के अच्छे फसल की कामना भी करते हैं.

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किन्नौर: इन दिनों किन्नौर में फुलाइच मेले की खूब धूम है. फुलाइच मेला फूलों का मेला है. इस मेले में 13 हजार फीट की ऊंचाई से ब्रह्म कमल नाम के फूल लाए जाते हैं. स्थानीय ग्रामीण पहाड़ों से ब्रह्म कमल के फूल लाकर इष्ट देव को अर्पित करते हैं.

ग्रामीण नंगे पांव चलकर पहाड़ों से ब्रह्म कमल का फूल लाते हैं. ब्रह्म कमल का फूल लाने के लिए ग्रामीणों को दो से तीन दिनों का पैदल सफर तय करना पड़ता है. इस फूल को देवी-देवताओं को अर्पित करने से पहले अश्लील गालियां दी जाती है, ताकि ब्रह्म कमल फूल के साथ आई गुप्त देवियों को वापस पहाड़ों पर भेजा जा सके. फूल देवताओं को अर्पित करने के बाद ब्रह्म कमल फूल को सभी ग्रामीणों में बांटा जाता है. मेले में गांव की महिलाएं व पुरुष सुंदर पारंपरिक वेशभूषाओं में मंदिर आकर कायनग यानि मेले में शामिल होते हैं.

phulaich fair of kinnaur
डिजाइन फोटो.

बता दें कि ब्रह्म कमल का फूल बेहद दुर्लभ माना जाता है. 13 हजार फीट की ऊंचाई पर उगने वाला ये फूल साल में एक बार ही खिलता है. फुलाइच मेला सितंबर से अक्टूबर महीने (भाद्रपद) में मनाया जाता है. मान्यता है कि देवी-देवताओं द्वारा चुने गए कुछ लोग ही ब्रह्म कमल को लाने पहाड़ पर जाते हैं और इसे अपने इष्ट देव को अर्पित करते हैं. ये मेला जिला के हर गांव में अगल-अलग दिन लगता है और आजकल सापनी, शोंग व रोपा गांव में मनाया जा रहा है.

मेले के दौरान बड़ी संख्‍या में पर्यटक किन्नौर पहुंचते हैं. स्थानीय देवी-देवता भी इस मेले में नृत्य करते हैं. ग्रामीण मेले के दौरान ग्रामीण अपने घर व बाग-बगीचों में काम नहीं करते. पूरे पांच दिन मंदिर प्रांगण में पूजा-पाठ करते हैं और मेला करते है. इस दौरान ग्रामीण देवता से सर्दियों में बर्फबारी व दूसरे वर्ष के अच्छे फसल की कामना भी करते हैं.

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Intro:किन्नौर में शुरू हुआ फुलाइच मेला,सापनी,शोंग,व रोपा गाँव मे फुलाइच मेले की धूम।


जिला किन्नौर में इन दिनों फुलाइच मेला शुरू हुआ है किन्नौर के रोपा,सापनी,व शोंग गाँव मे सभी ग्रामीण पारम्परिक वेशभूषा में मंदिर में मेला करने जाते है।

Body:फुलाइच मेले का पूरा भाव फूलों से है जो तेरह हज़ार फिट की ऊंचाई से लाया जाता है किन्नौर के फुलाइच मेले में ब्रम्हा कमल नामक फूल जिसे स्थानीय ग्रामीण पहाड़ो से उठाकर गाँव के इष्ट देवो को अर्पित करते है इन फूलों को जब पहाड़ो में ग्रामीण उठाने के लिए जाते है तो उन्हें नंगे पैर ही इस फूल को उठाना पड़ता है जिसमे घण्टो का समय लगता है फूल उठाते समय पहाड़ो के गुप्त देवी देवताओं को खुश किया जाता है ताकि फूल उठाते हुए कोई अप्रिय घटना न हो,ब्रम्हा कमल नामक फूल को उठाने के बाद ग्रामीणों द्वारा उसे गाँव लाया जाता है और इस फूल को इष्ट देवी देवताओं को अर्पित करते है बता दे कि इस फूल को देवी देवताओं को अर्पित करने से पहले अश्लील गालियां दी जाती है ताकि ब्रम्हा कमल फूल के साथ आई गुप्त देवियों को वापिस पहाड़ो पर भेजा जा सके फूल देवताओं को अर्पित करने के बाद ब्रम्हा कमल फूल को सभी ग्रामीणों में बांटा जाता है लगातार पांच दिन चलने वाले इस मेले में महिलाएं व पुरुष पारम्परिक वेशभूषाओ में मंदिर आकर कायनग यानी मेला करते है Conclusion:और स्थानीय देवी देवता भी इस मेले में नृत्य करते है बता दे कि इन पांच दिनों में ग्रामीण अपने घर व बाग बगीचों में काम नही करते पूरे पांच दिन मंदिर प्रांगण में पूजा पाठ करते है तथा मेला करते है और आने वाले सर्दियों में बर्फबारी व दूसरे वर्ष के अच्छे फसल की कामना भी करते है।
Last Updated : Sep 7, 2019, 7:25 PM IST
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