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अद्भुत हिमाचल: यहां विवाह में नहीं होते सात फेरे, अंगूरी शराब से होती दुल्हन की विदाई

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Published : Nov 8, 2019, 12:53 PM IST

Updated : Nov 8, 2019, 2:11 PM IST

ईटीवी भारत की खास सीरीज 'अद्भुत हिमाचल' में अब तक आपने देवभूमि में निभाए जाने वाले कई रोचक रीति-रिवाजों के बारे में जाना. हमारी कोशिश है कि आप को यहां की अद्भुत परंपराओं के बारे में बताना. इस सीरीज में आज हम आपको जिला किन्नौर की शादी में निभाई जाने वाली अलग-अलग परंपराओं के बारे में बताएंगे.

अद्भुत हिमाचल: यहां विवाह में नहीं होते सात फेरे, अंगूरी शराब से होती दूल्हन की विदाई

किन्नौर: देशभर में शादी से जुड़ी अनेकों परंपराएं हैं, लेकिन जिला किन्नौर में वैवाहिक परंपराएं अलग तरीके से निभाई जाती हैं. यहा विवाह को रानेकांग कहा जाता है. यहां शादी के दौरान सात फेरे नहीं लिए जाते और न ही विवाह के लिए परिवार की सहमति. किन्नौर में देवी-देवताओं की मर्जी के बाद ही शादी की तारीख निकाली जाती है. शादी की तैयारियां शुरू होते ही भव्य तरीके से देवता को घर पर बुलाया जाता है. बारात में दूल्हे की तरह ही वेशभूषा पहनकर एक साथी को भी तैयार किया जाता है. देवता का आदेश मिलते ही दूल्हे की बारात को दुल्हन के घर जाने को कहा जाता है. दुल्हन के घर जाते समय रास्ते में नदी,नालों के पास पुजारी बुरी शक्तियों को भगाने के लिए पूजा करते हैं.

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बारात पहुंचते ही ग्रामीण महिलाएं हाथ में शुर धूप,अंगूरी शराब लेकर दूल्हे का भव्य स्वागत करती हैं. सभी बारातियों को गले मे सूखे मेवों की माला दी जाती है. सूखे मेवों में चिलगोजा,अखरोट,बादाम,काले अंगूर,खुमानी के गिरी होते है. दुल्हन का परंपरागत परिधान और गहनों से श्रृंगार किया गया जाता है. सिर से पांव तक गहनों से लदी दुल्हन का श्रृंगार देखते ही बनता है. सिर पर प्रठेपण (टोपी) जो तीन-चार फूलों के रंग से सजी होती है. माथे पर बंधा होता है सुंदर डिजाइन का चांदी सोने का जिससे पूरा चेहरा ही ढक जाता है. यह पट्टा पूरे सोने या पूरे चांदी या फिर दोनों धातुओं के संयोग से मिलकर भी बना हो सकता है. नाक पर लौंग, बलाक, बालु (नथ) सोने के बने होते हैं.

गले में लाल व हरे पत्थर के मिश्रण से बनी माला पहनी जाती है जिसे तिंग शुलिक कहा जाता है. हाथ में चूड़ियों के साथ सोने और चांदी के कड़े पहने जाते हैं. सोने के कड़े को सुनंगो और चांदी के कड़े को धागलो कहा जाता है. इसमें दोनों हाथों के कड़ों का भार कम से कम 40 तोला तो रहता ही है. पैरों की अंगुलियों में चांदी का गहना पहना जाता है जिसे बांगपोल कहा जाता है.

किन्नौर के विवाह में सात फेरे नहीं होते यहां दूल्हा दुल्हन को सोने से बने तरमोल नाम के आभूषण को गले में पहनाकर उसे अपनी अर्धांगिनी बनाता है. इस समय न ही कोई फेरे होते है न ही कोई मन्त्र जाप बस जनजातीय जिला की महिलाएं पारम्परिक गीत गाकर और देवता व लामागन के समक्ष उन्हें आशीर्वाद देकर शादी के बंधन में बांधवा दिया जाता है.

दूल्हे की तरफ से आए मजोमी दुल्हन को हाथ से पकड़कर दुल्हन के घर से बाहर निकालकर घर के द्वार तक लाते है. विदाई के दौरान परिवार का बड़ा सदय अंगूरी शराब लेकर आते है और माजोमी के हाथ में सौप देते है. इस परंपरां के साथ दुल्हन की विदाई कर दी जाती है.

किन्नौर: देशभर में शादी से जुड़ी अनेकों परंपराएं हैं, लेकिन जिला किन्नौर में वैवाहिक परंपराएं अलग तरीके से निभाई जाती हैं. यहा विवाह को रानेकांग कहा जाता है. यहां शादी के दौरान सात फेरे नहीं लिए जाते और न ही विवाह के लिए परिवार की सहमति. किन्नौर में देवी-देवताओं की मर्जी के बाद ही शादी की तारीख निकाली जाती है. शादी की तैयारियां शुरू होते ही भव्य तरीके से देवता को घर पर बुलाया जाता है. बारात में दूल्हे की तरह ही वेशभूषा पहनकर एक साथी को भी तैयार किया जाता है. देवता का आदेश मिलते ही दूल्हे की बारात को दुल्हन के घर जाने को कहा जाता है. दुल्हन के घर जाते समय रास्ते में नदी,नालों के पास पुजारी बुरी शक्तियों को भगाने के लिए पूजा करते हैं.

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बारात पहुंचते ही ग्रामीण महिलाएं हाथ में शुर धूप,अंगूरी शराब लेकर दूल्हे का भव्य स्वागत करती हैं. सभी बारातियों को गले मे सूखे मेवों की माला दी जाती है. सूखे मेवों में चिलगोजा,अखरोट,बादाम,काले अंगूर,खुमानी के गिरी होते है. दुल्हन का परंपरागत परिधान और गहनों से श्रृंगार किया गया जाता है. सिर से पांव तक गहनों से लदी दुल्हन का श्रृंगार देखते ही बनता है. सिर पर प्रठेपण (टोपी) जो तीन-चार फूलों के रंग से सजी होती है. माथे पर बंधा होता है सुंदर डिजाइन का चांदी सोने का जिससे पूरा चेहरा ही ढक जाता है. यह पट्टा पूरे सोने या पूरे चांदी या फिर दोनों धातुओं के संयोग से मिलकर भी बना हो सकता है. नाक पर लौंग, बलाक, बालु (नथ) सोने के बने होते हैं.

गले में लाल व हरे पत्थर के मिश्रण से बनी माला पहनी जाती है जिसे तिंग शुलिक कहा जाता है. हाथ में चूड़ियों के साथ सोने और चांदी के कड़े पहने जाते हैं. सोने के कड़े को सुनंगो और चांदी के कड़े को धागलो कहा जाता है. इसमें दोनों हाथों के कड़ों का भार कम से कम 40 तोला तो रहता ही है. पैरों की अंगुलियों में चांदी का गहना पहना जाता है जिसे बांगपोल कहा जाता है.

किन्नौर के विवाह में सात फेरे नहीं होते यहां दूल्हा दुल्हन को सोने से बने तरमोल नाम के आभूषण को गले में पहनाकर उसे अपनी अर्धांगिनी बनाता है. इस समय न ही कोई फेरे होते है न ही कोई मन्त्र जाप बस जनजातीय जिला की महिलाएं पारम्परिक गीत गाकर और देवता व लामागन के समक्ष उन्हें आशीर्वाद देकर शादी के बंधन में बांधवा दिया जाता है.

दूल्हे की तरफ से आए मजोमी दुल्हन को हाथ से पकड़कर दुल्हन के घर से बाहर निकालकर घर के द्वार तक लाते है. विदाई के दौरान परिवार का बड़ा सदय अंगूरी शराब लेकर आते है और माजोमी के हाथ में सौप देते है. इस परंपरां के साथ दुल्हन की विदाई कर दी जाती है.

Intro:किन्नौर के विवाह में होती है अनोखी परम्परा नही होते सात फेरे,विवाह को किन्नौर में रानेकांग कहते है,अलग पारम्परिक तरीके से होती है शादी,देवी देवतों की मान्यताओं को ध्यान में रखकर व लामाओं के निकाले हुए दिन में होती है शादी,दुल्हन को पहनाया जाता कई किलो के सोने चांदी के आभूषण व वेशभूषा, विवाह में होता है पारम्परिक खानपान,विवाह में सभी का स्वागत होता है सूखे मेवों से,बिना ऊनी टोपी,कोट व मफलर के बिना नही जाते बाराती,शादी की ऐसी परम्परा नही है पूरे विश्व मे,यहां नही होता हिन्दू एक्ट लागू,लड़की से नही लिया जाता दहेज उल्टा लड़के के घर मे दिया जाता है धन दौलत,सोना चांदी और भूमि नाम पर,विवाह के समय की जाती है दसो दिशाओ की पूजा,मार्ग में न हो कोई बुरी शक्तियों का प्रभाव इसलिए पहना जाता है चामका नामक फूल।




जनजातीय जिला किन्नौर अपने परम्पराओ व रीति रिवाजों के लिए पूरी दुनियां में जाना जाता है,जिला किन्नौर हिमाचल के ऊपरी जिला है जो ठीक चाइना व तिब्बत बॉर्डर से सटा हुआ है,जहाँ की जनसँख्या 2011 के जनगणना अनुसार केवल 84 हज़ार के आसपास थी।




किन्नौर के विवाह की परम्परा------- जनजातीय जिला किन्नौर में कइयो वर्ष पूर्व से ही अपनी परम्परा व खानपान के लिए यहां के लोग मशहूर है यहां की रीति रिवाज जहां पूरे विश्व से अलग है वही जिला किन्नौर में हिन्दू एक्ट लागू नही होता आज जिला किन्नौर के विवाह के बारे में बताते चलेंगे,जिला किन्नौर में एक अनोखी परपरागत विवाह का अपना अलग तौर तरीका है जो किन्नौर को सबसे अलग बनाता है यहां पर दूल्हा शादी से पूर्व अपने रिश्ते के लिए अपने मामागन को दुल्हन के घर भेजते है और दूल्हे के मामागन उसके रिश्ते की बात करने के लिए पूरी तरह ऊन के टोपी,कोट,मफलर,सूखे मेवों की मालाएं, खातकच,लेकर दुल्हन के घर जाते है और दुल्हन के परिवार से उसके रिश्ते की बात करते है और जब दुल्हन के परिवार रिश्ते को राजी होते है तो उस घर मे दूल्हे के मामागन लोकल अंगूरी,राशि के लोकल शराब की बोतल को दुल्हन के घर पर रखकर रिश्ता कबूली मानकर दुल्हन के पूरे खानदान से मिलकर उनको भी इसी तरह का रिवाज पूराकर वापिस अपने घर आते है और स्थानीय देवी देवताओं से शादी की तारीख निकालते है जैसे ही देवता आदेश करते है और तिथि तय होती है वैसे ही शादी के लिए तैयारिया चलती है जो कुछ इस प्रकार होती है।


दूल्हे के घर की सजावट व बारात की तैयारियां------किन्नौर में शादी से एक दिन पूर्व पूरे गाँव को घर पर बुलाया जाता है और दूल्हे के मामागन का खूब स्वागत होता है और इस दिन सारे रिश्तेदार पूरी रात अगले दिन दूल्हे को दुल्हन को घर लेकर आने के बारे में योजना बनाते है और रात को ग्रामीण खाने पीने के पूरे पुख्ता इंतजाम देख लेते है और दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर सबसे पूर्व मन्दिर जाकर देवता को पूजापाठ कर उन्हें दूल्हे के घर के लिए निमंत्रण नज़राना देकर दूल्हे के घर लाया जाता है और देवता का घर पर भव्य स्वागत होता है जिसके बाद देवता घर की छत पर बैठते है और दूल्हे को इसके बाद पूरे पारम्परिक वेशभूषा जिसमे ऊन से बनी किन्नौरी टोपी,अच्छगोंन कोट,पट्टटू,टोपरू गासा से तैयार किया जाता है और उसके साथ एक साथी भी होता है जो दूल्हे की तरह ही वेशभूषा पहनकर दूल्हे के साथ होता है जिसे दूल्हे के साथी के रूप में साथ रहना होता है,इसके बाद देवता समयानुसार आदेश कर दूल्हे की बारात को दुल्हन के घर जाने को कहते है जिसके बाद दूल्हा व आधे ग्रामीण,मित्रगण,मामागन दूल्हे को ढोल नगाड़ों के साथ बजाते हुए घर से बाहर निकालकर दुल्हन के घर की तरफ लेजाते है इस दौरान दूल्हे के साथ सात से आठ मजोमी होते है जिसे हिंदी में दरम्यान कहते है जिनका काम पूरे बारातियो व दुल्हन की तरफ से आये बारातियो के खानपान का ध्यान रखना होता है,बता दे कि जब दूल्हा दुल्हन को लेने जाता है तो जहां भी जिला के मुख्य नदी,नाले,पुल, आते है वहां दूल्हे के साथ आए पुजारी,लामा दूल्हे के साथ आये बुरी शक्तियों को भगाने के लिए पूजा करता है।



दुल्हन के घर पहुचने से पूर्व-------दूल्हा और बाराती जब दुल्हन के घर पहुचते है तो पूरी बारात को दुल्हन के गाँव मे स्थानीय महिलाओं द्वारा जो दुल्हन के गाँव की होती है वो पारम्परिक वेशभूषा व सोने चांदी के आभूषण पहनकर हाथ मे शुर धूप,अंगूरी शराब लेकर दूल्हे के बारात का भव्य स्वागत करते है स्वागत में काफी समय लगता है और स्वागत करने आई महिलाएं पूरे बारात को दुल्हन के घर तक मार्गदर्शन करवाते हुए ले जाती है,जैसे ही दूल्हा व बाराती दुल्हन के घर पहुँचते है वैसे ही स्वागत करने वाली महिलाएं एक तरफ खड़ी हो जाती है और दुल्हन के घर के गेट पर ग्रामीण फूल,शुर,आदि से बारातियो के स्वागत करती है लेकिन उससे पूर्व दूल्हे को दुल्हन के सगे सम्बधी दुल्हन के घर मे अंदर आने से रोकते है और दूल्हे के साथी दूल्हे को धकेलकर दुल्हन के घर द्वार की ओर धकेलते है और जबरजस्ती दूल्हे को दुल्हन के घर प्रवेश करने की अनोखी परम्परा है जिसके बाद ही बारातियो को भी दुल्हन के घर मे अंदर भेजा जाता है और ऐसा स्वागत होता है कि सभी बारातियो को गले मे सूखे मेवों की माला दी जाती है सूखे मेवों में चिलगोजा,अखरोट,बादाम,काले अंगूर,खुमानी के गिरी के मालाओ से स्वागत कर अपना रिवाज पूरा किया जाता है।



दुल्हन के घर की परम्पराए निभाना----------स्वागत के बाद सभी बाराती नाचते गाते रहते है और दूल्हे को दुल्हन के घर प्रवेश कर एक बार फिर से दूल्हे को उसके ससुराल की तरफ से एक ओर वेशभूषा देकर तैयार किया जाता है और दुल्हन के कमरे में लेजाकर आपस मे मिलाया जाता है,जिसके बाद दुल्हन को दुल्हन के गाव की महिलाएं तैयार करते है दुल्हन को दोरी,चोली,खेर ठेपिंग,तरमोल,शांगलांनग,गाछनग,दागलो, स्तो टाना,बालू,अंगूठियां,बांगो टाना,दोरी टाँनग,कांटे,काकचो टाना,छल्ली,आदि आभूषण पहनाकर तैयार करते है जिसका वजन करीब पचास किलो के आसपास हो जाता है जिसमे दुल्हन का चहरा पूरी तरह ढक जाता है और दुल्हन की चाल भी काफी धीमी हो जाती है बता दे कि यह सारे आभूषण दुल्हन के घर की तरफ से होते है और जब दूल्हे के घर पहुचते है तो और सोना चांदी व अन्य आभूषण दूल्हे की तरफ से अलग ही होता है। दुल्हन के घर मे दूल्हा पूरे परिवार को माला पहनाकर अपने रिश्ते भी कबूल करता है।



दुल्हन का उधानग----- दुल्हन के घर मे शादी के कार्यक्रम
के दौरान लोग टिका यानी शगुन के रूप में धनराशि या सोना चांदी के रूप में भी तौफा के रूप में देकर जाते है जिसे किन्नौरी बोली में उदानग कहते है जो बाद में दुल्हन को दिया जाता है ताकि उसके सुखदुख में वह इस राशि व सोना चांदी का उपयोग कर सके।





दूल्हा दुल्हन को अपने घर ले जाने की परंपरा------- दुल्हन को तैयार करने के बाद पूरे ग्रामीण दुल्हन को घर से बाहर निकालते है और दूल्हे की तरफ से आए मजोमी जो पूरे बारात व शादी के कार्यक्रम का ध्यान रखते है उनमे से सबसे प्रमुख माजोमी दुल्हन को हाथ से पकड़कर दुल्हन के घर से बाहर निकालकर घर के द्वार तक लाता है और दुल्हन के परिवार दुल्हन को विदाई देते है विदाई के दौरान भी परिवार का बड़ा सदय अंगूरी शराब व दुल्हन को मेला करते हुए घर से बाहर लेकर आते है और माजोमी के हाथ सौप देते है और विदाई हो जाती है।


दूल्हे के घर मे प्रवेश------------इसके बाद पूरे रास्ते मे दुल्हन व दूल्हे को अलग अलग वाहनों में लाया जाता है दूल्हा और उसका साथी एक वाहन में और दुल्हन उसकी सहेली के साथ दूसरे वाहन में आती है दुल्हन की वापिसी में भी दूल्हे की परंपरा की तरह पूरे मार्ग के बड़े मान्यताओं वाले स्थानों पर पूजा किया जाता है और दूल्हे के घर मे भी दुल्हन के स्वागत की खूब तैयारियां होती है और दूल्हे की माँ अपने बहु यानी दुल्हन के स्वागत के लिए हाथ मे छाटो मतलब टोकरी में अनाज व दिया लेकर खड़ी रहती है और जब दुल्हन दूल्हे के घर और अपने ससुराल पहुचती है तो दूल्हे के गाँव वाले दुल्हन और दुल्हन की तरफ से आये बारातियो का खूब स्वागत करते है इस दौरान खूब हंसी मजाक भी किया जाता है इस दौरान दुल्हन की सास उसे अपने पुराने रसोई घर मे लेकर जाती है और देवता व कारदारों से मिलवाकर घर के बारे में बताती है और चूल्हे के समक्ष घूमकर सारा घर का बागडोर दे देती है इसके बाद पूरे गाँव व रिश्तेदारों को दुल्हन सूखे मेवों के माला पहनाती है और अपने रिश्तों को कबूल करती है और फिर दुल्हन के जेवर उतारे जाते है जिसके बाद सभी बारती खाना खाते है और पूरी रात नाचगाना होता है।

अगले दिन का कार्य्रकम-विदाई दुल्हन के मायके वालों का -------अगले दिन सुबह होते ही सबसे पहले दुल्हन के साथ आए बारातियो व मेहमानो को नमकीन चाय,चिलटे,दुकती,पोले,आदि खिलाया जाता है और शुदुंग भी पिलाया जाता है और इसके बाद अन्य रस्मो रिवाज निभाने के बाद दुल्हन के रिश्तेदार व परिवार को दुल्हन विदाई देती है इस वक्त स्थानीय महिलाएं विदाई गीत गाते है उस वक्त दुल्हन का बहुत भावुक होने का वक्त होता है और इस वक्त माजोमी दुल्हन को घर से बाहर लेकर आते है और गीतों से दुल्हन के परिवार को विदाई देते है और इस वक्त भी सूखे मेवे के मालाओ को पहनाकर विदाई दी जाती है।



इसके बाद दूल्हा दुल्हन के घर के कार्यक्रम------विदाई के बाद अब सभी ग्रामीण दुल्हन को कुछ देर अपने मध्य बैठाकर उसकी सेवा करते है और एक बार फिर से दुल्हन को दूल्हे के घर के सदस्य बनने के लिए दूल्हे की तरफ से दिए सोने चांदी व अन्य आभूषण के साथ वेशभूषा पहनाकर तैयार करते है और अब दूल्हे के गाँव व रिश्तदार फिर से दुल्हन व दूल्हे को सोना चांदी,टोपी,माला,दोरी,चोली,आदि उपहार के रूप में देते है जिसमे कम से कम चार से पांच घण्टे का समय लगता है इस दौरान पहले दूल्हे के मामागन को व रिश्तदारों को दूल्हे की माँ उनके घर आने पर सभी को किन्नौरी टोपी और मालाओं से स्वागत करती है और इसके बाद मामागन दूल्हे को पाग यानी किन्नौरी टोपी के बाहर पगड़ी पहनाकर अपने भांजे को विवाह की बधाई देते है और फिर पूरे गाँव व रिश्तेदार दूल्हा दुल्हन व दूल्हे के परिवार व दुल्हन के साथ कुछ रुके रिश्तेदारों को बैठाकर फूल मालाओं व किन्नौरी टोपियां पहनाती है दूल्हे की तरफ से इस कार्यक्रम को बैलड़्यांग कहा जाता है।


बैलड़्यांग-------जिस तरह दुल्हन की तरफ से उदानग होता है उसी तरह दूल्हे की तरफ से भी जसके घर मे बैल्ड्यांग कार्यक्रम होता है जिसमे दूल्हे के रिश्तेदार व अन्य धनराशि ( शगुन) सोना चांदी,या अन्य आभूषण जैसे मफलर,टोपी,आदि उपहार में देते है।






Body:पूरे शादी में खानपान का काम-------बता दे कि दुल्हन व दूल्हे के घर मे जब विवाह का कार्यक्रम होता है तो पूरे ग्रामीण ही खाने पीने का सामान तैयार कर मेहमानों की सेवापानी करते है,किन्नौर की शादियों में खानपान में मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा ओगला,फाफड़ा,कोदरो,होदा यानी चिलटे,ब्रास्कान,नमकीन चाय बनाया जाता है जिसे यहां की शादियों में मुख्य रूप से बनाया जाता है और किन्नौर की शादियों में जितने भी मेहमान आते है उन सबको चामका नामक फूल लगाकर किन्नौरी टोपी व सूखे मेवों की मालाओ से स्वागत व विदाई देने का रिवाज है।





Conclusion:विवाह में अर्धागिनी बनाने की अनोखी परम्परा-------किन्नौर के विवाह में नही होते सात फेरे यहां हिन्दुओ के रिवाज़ अनुसार नही होता है विवाह किन्नौर में दूल्हा दुल्हन को तरमोल नामक सोने से बनी गले के आभूषण पहनाकर उसे अपनी अर्धांगिनी बनाता है इस समय न ही कोई फेरे होते है न ही कोई मन्त्र जाप बस जनजातीय जिला की महिलाएं पारम्परिक गीत गाकर और देवता व लमागन के समक्ष उन्हें आशीर्वाद प्राप्त कर शादी के बंधन में बांधा जाता है यहां के आभूषण से लेकर वेशभूषा देश से बिल्कुल अलग है।


दहेज प्रथा नही चलती है किन्नौर में-------किन्नौर में दुल्हन और लड़कियों के परिवार से नही मागा जाता दहेज उल्टा लड़के को लड़की या दुल्हन के लिए धनराशि, जेवर,जमीन नाम पर मांगा जाता है तब जाकर विवाह की शर्तें मानी जाती है,यदि दुल्हन को कोई भी पीड़ा हो तो शुरुआती रिश्ते में जब बौतल पूजा देवता के समक्ष हुई होती है उस वक्त दूल्हे से देवता द्वारा प्रण लिया गया होता है कि वह दुल्हन को कभी भी तंग या दुख नही देगा यदि दुख दिया तो उस पर देवता और देव समाज कार्यवाही भी कर सकता है।


बाईट-1-----बंटी नेगी ( निवासी रिब्बा किन्नौर )

बाईट-2----ललिता नेगी ( निवासी ख्वांगी रिकांगपिओ )

बाईट-3------संजीव कांत ( निवासी कल्पा )






Last Updated : Nov 8, 2019, 2:11 PM IST
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