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इतिहास: मुगल सम्राट ने चढ़ाया था सोने का छत्र, मां ज्वाला ने ऐसे तोड़ा था अभिमान

यह तीर्थ स्थल देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ को ज्वालामुखी मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर को प्रमुख शक्ति पीठों में एक माना जाता है.

jawalamukhi temple
मुगल सम्राट ने चढ़ाया था सोने का छत्र, मां ज्वाला ने ऐसे तोड़ा था अभिमान
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Published : Nov 30, 2019, 8:12 PM IST

कांगड़ा: देश के शक्तिपीठों में शामिल ज्वालामुखी का मंदिर अपने आप में अनोखा है. प्रदेश के इस शक्तिपीठ की मान्यता 52 शक्तिपीठों में सर्वोपरि मानी गई है. ज्वालामुखी मंदिर को जोता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है.

मान्यता है कि यहां देवी सती की जीभ गिरी थी. यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है, क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है, बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है.

यहां पर धरती से नौ अलग-अलग जगह से ज्वालाएं निकल रहीं है, जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया है. इन नौ ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है.

यहां टूटा था अकबर का अहंकार
मां के इस मंदिर को लेकर एक कथा काफी प्रचिलत है. कहा जाता है कि सम्राट अकबर जब इस जगह पर आए तो उन्हें यहां पर ध्यानू नाम का व्यक्ति मिला. ध्यानू देवी का परम भक्त था. ध्यानू ने अकबर को ज्योतियों की महिमा के बारे में बताया, लेकिन अकबर उसकी बात न मान कर उस पर हंसने लगा.

अहंकार में आकर अकबर ने अपने सैनिकों को यहां जल रही नौ ज्योतियों पर पानी डालकर उन्हें बुझाने को कहा. पानी डालने पर भी ज्योतियों पर कोई असर नहीं हुआ. यह देखकर ध्यानू ने अकबर से कहा कि देवी मां तो मृत मनुष्य को भी जीवित कर देती हैं.

ऐसा कहते हुए ध्यानू ने अपना सिर काट कर देवी मां को भेंट कर दिया, तभी अचानक वहां मौजूद ज्वालाओं का प्रकाश बढ़ा और ध्यानू का कटा हुआ सिर अपने आप जुड़ गया और वह फिर से जीवित हो गया.
यह देखकर अकबर भी देवी की शक्तियों को पहचान गया और उसने देवी को सोने का छत्र भी चढ़ाया. कहा जाता है कि मां ने अकबर का चढ़ाया हुआ छत्र स्वीकार नहीं किया था. अकबर के चढ़ाने पर वह छत्र गिर गया और वह सोने का न रह कर किसी अज्ञात धातु में बदल गया था. वह छत्र आज भी मंदिर में सुरक्षित रखा हुआ है.

छत्र किस धातु का है किसी को नहीं पता
बादशाह अकबर की ओर से चढ़ाया गया छत्र आखिर किस धातु में बदल गया. इसकी जांच के लिए साठ के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की पहल पर यहां वैज्ञानिकों का एक दल पहुंचा. इसके बाद छत्र के एक हिस्से का वैज्ञानिक परीक्षण किया गया. वैज्ञानिक परीक्षण के आधार पर इसे किसी भी धातु की श्रेणी में नहीं माना गया है.

दोबारा परीक्षण नहीं कराएगा मंदिर प्रशासन
मंदिर अधिकारी विशन दास शर्मा कहते हैं कि मंदिर प्रशासन इसका दोबारा परीक्षण नहीं करा सकता. मान्यता है कि अकबर के घमंड को तोड़ने के लिए ही देवी ने अपनी शक्ति से सोने के छत्र को अज्ञात धातु में बदल दिया था.

बहरहाल आज भी यह छत्र यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए रहस्य का विषय बना हुआ है. जो भी श्रद्धालु देवी मां के इस शक्तिपीठ में आता है वो अकबर के छत्र देखे बगैर अपनी यात्रा को अधूरा ही मानता है. आज भी छत्र मंदिर परिसर के साथ लगते मोदी भवन में रखा हुआ है.

वीडियो रिपोर्ट

कांगड़ा: देश के शक्तिपीठों में शामिल ज्वालामुखी का मंदिर अपने आप में अनोखा है. प्रदेश के इस शक्तिपीठ की मान्यता 52 शक्तिपीठों में सर्वोपरि मानी गई है. ज्वालामुखी मंदिर को जोता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है.

मान्यता है कि यहां देवी सती की जीभ गिरी थी. यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है, क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है, बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है.

यहां पर धरती से नौ अलग-अलग जगह से ज्वालाएं निकल रहीं है, जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया है. इन नौ ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है.

यहां टूटा था अकबर का अहंकार
मां के इस मंदिर को लेकर एक कथा काफी प्रचिलत है. कहा जाता है कि सम्राट अकबर जब इस जगह पर आए तो उन्हें यहां पर ध्यानू नाम का व्यक्ति मिला. ध्यानू देवी का परम भक्त था. ध्यानू ने अकबर को ज्योतियों की महिमा के बारे में बताया, लेकिन अकबर उसकी बात न मान कर उस पर हंसने लगा.

अहंकार में आकर अकबर ने अपने सैनिकों को यहां जल रही नौ ज्योतियों पर पानी डालकर उन्हें बुझाने को कहा. पानी डालने पर भी ज्योतियों पर कोई असर नहीं हुआ. यह देखकर ध्यानू ने अकबर से कहा कि देवी मां तो मृत मनुष्य को भी जीवित कर देती हैं.

ऐसा कहते हुए ध्यानू ने अपना सिर काट कर देवी मां को भेंट कर दिया, तभी अचानक वहां मौजूद ज्वालाओं का प्रकाश बढ़ा और ध्यानू का कटा हुआ सिर अपने आप जुड़ गया और वह फिर से जीवित हो गया.
यह देखकर अकबर भी देवी की शक्तियों को पहचान गया और उसने देवी को सोने का छत्र भी चढ़ाया. कहा जाता है कि मां ने अकबर का चढ़ाया हुआ छत्र स्वीकार नहीं किया था. अकबर के चढ़ाने पर वह छत्र गिर गया और वह सोने का न रह कर किसी अज्ञात धातु में बदल गया था. वह छत्र आज भी मंदिर में सुरक्षित रखा हुआ है.

छत्र किस धातु का है किसी को नहीं पता
बादशाह अकबर की ओर से चढ़ाया गया छत्र आखिर किस धातु में बदल गया. इसकी जांच के लिए साठ के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की पहल पर यहां वैज्ञानिकों का एक दल पहुंचा. इसके बाद छत्र के एक हिस्से का वैज्ञानिक परीक्षण किया गया. वैज्ञानिक परीक्षण के आधार पर इसे किसी भी धातु की श्रेणी में नहीं माना गया है.

दोबारा परीक्षण नहीं कराएगा मंदिर प्रशासन
मंदिर अधिकारी विशन दास शर्मा कहते हैं कि मंदिर प्रशासन इसका दोबारा परीक्षण नहीं करा सकता. मान्यता है कि अकबर के घमंड को तोड़ने के लिए ही देवी ने अपनी शक्ति से सोने के छत्र को अज्ञात धातु में बदल दिया था.

बहरहाल आज भी यह छत्र यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए रहस्य का विषय बना हुआ है. जो भी श्रद्धालु देवी मां के इस शक्तिपीठ में आता है वो अकबर के छत्र देखे बगैर अपनी यात्रा को अधूरा ही मानता है. आज भी छत्र मंदिर परिसर के साथ लगते मोदी भवन में रखा हुआ है.

वीडियो रिपोर्ट
Intro:शक्तिपीठ ज्वालामुखी में आज भी बरकरार है अकबर के छत्र का रहस्य

पौराणिक कथा का है हिस्सा , आज भी पहेली बना हुआ है अकबर का छत्र
आज भी भक्त देखने आते है अकबर के छत्र कोBody:स्पेशल स्टोरी


ज्वालामुखी। (नितेश कुमार)

विश्व में एक ऐसा स्थान जोकि प्राकृतिक ही नहीं अपितु चमत्कारी भी है, ज्वालामुखी का अद्भुत मंदिर । इस देवी स्थान के बारे में कहा जाता है कि यहां के चमत्कार देख मुगल बादशाह हैरान रह गया था। मंदिर में होने वाले चमत्कारों को सुन अकबर सेना समेत यहां आया था। यहां जल रही ज्योति को उसने बुझाने के लिए नहर का निर्माण किया और सेना से पानी डलवाना शुरू कर दिया। पानी डलने के बाद भी मां की ज्योतियां जलती रहीं। यह देख अकबर ने मां ज्वालादेवी से माफी मांगी और पूजा कर सोने का सवा मन का छत्र चढ़ाया था। लेकिन, ज्वालादेवी ने उसका छत्र स्वीकार नहीं किया था। आज भी यह छत्र मंदिर में मौजूद है। पर वो छत्र अब किसी भी धातु का नहीं है।


पौराणिक कथा के अनुसार
पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि यहां की कथा अकबर और माता के भक्त ध्यानू भगत से जुडी है।ध्यानू भगत की ज्वालामुखी में अपार श्रद्धा और गुणगान के कारण राजा अकबर ने ध्यानू भगत की परीक्षा ली थी और मां की जलती हुई ज्योतियों के बारे में बताया था।
ध्यानू द्वारा किये गए चमत्कारों से हैरान होकर अकबर ने अपनी सेना बुलाई और खुद मंदिर की तरफ चल पड़ा, वहां पहुंच कर उसने अपनी सेना से मंदिर में नहर का निर्माण कर पानी डलवाया, लेकिन माता की ज्योति नहीं बुझी। यह सब देख उसे मां की महिमा का यकीन हुआ और घुटने के बल मां के सामने बैठ कर क्षमा मांगने लगा। उसने मां की पूजा कर सवा मन (पचास किलो) सोने का छत्र चढ़ाया, लेकिन माता ने वह छत्र कबूल नहीं किया और वह छत्र गिर गया और मां ज्वाला ने अपनी शक्ति से उस छत्र को परिवर्तित कर दिया।

अकबर का घमंड हुआ चूर-चूर।
अकबर की भेंट माता ने अस्वीकार कर दी थी। इसके बाद कई दिन तक मंदिर में रहकर उनसे क्षमा मांगता रहा। बड़े दुखी मन से वह वापस आया। कहते हैं कि इस घटना के बाद से ही अकबर के जीवन में अहम बदलाव आए। और उसके मन में हिंदू देवी-देवताओं के लिए श्रद्धा पैदा हुई।


छत्र किस धातु का है किसी को नहीं पता
बादशाह अकबर की ओर से चढ़ाया गया छत्र आखिर किस धातु में बदल गया। इसकी जांच के लिए साठ के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की पहल पर यहां वैज्ञानिकों का एक दल पहुंचा। इसके बाद छत्र के एक हिस्से का वैज्ञानिक परीक्षण किया गया तो चैंकाने वाले नतीजे सामने आए। वैज्ञानिक परीक्षण के आधार पर इसे किसी भी धातु की श्रेणी में नहीं माना गया।

पुजारी मधुसूदन, राहुल, प्रत्युष, सन्दीप, परीक्षत आदि का कहना है कि बर्षो से यह छत्र मंदिर में सुरक्षित है और यहाँ आने वाले श्रद्धालु ज्योतियों के दर्शन करने के बाद अकबर का छत्र जरूर देखने जाते हैं।



दोबारा परीक्षण नहीं कराएगा मंदिर प्रशासन
मंदिर अधिकारी विशन दास शर्मा कहते हैं कि हाल-फिलहाल में तो इस छत्र का परीक्षण नए सिरे से नहीं किया गया है। चूंकि यह आस्था से भी जुड़ा मामला है। लिहाजा मंदिर प्रशासन इसका दुबारा परीक्षण नहीं करा सकता। लोकमान्यता है कि अकबर के घमंड को तोड़ने के लिए ही देवी ने अपनी शक्ति से सोने के छत्र को अज्ञात धातु में बदल दिया। बहरहाल आज भी यह छत्र यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए कौतुहल और विज्ञान के लिए रहस्य का विषय बना हुआ। जो भी श्रद्धालु देवी मां के इस शक्तिपीठ में आता है वो अकबर के छत्र देखे बगैर अपनी यात्रा को अधूरा ही मानता है। आज भी छत्र ज्वाला मंदिर के साथ लगते मोदी भवन में रखा हुआ है।Conclusion:बाइट
मन्दिर के पुजारी अनिवेन्द्र ने कहा कि सभी शक्तिपीठों में ज्वालामुखी शक्तिपीठ सर्वोपरी है। उन्होंने कहा कि यहां अकबर का घमंड टूटा था और उसके द्वारा चढ़ाए गए चढ़ावे को मां ज्वाला ने नकारा था और आज भी अकबर द्वारा चढ़ाया गया सोने का छत्र यहां मौजूद है जो अब किसी मे धातु में नही है।
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