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धर्मशाला: मुख्यमंत्री ग्राम कौशल योजना से निखर रही पारम्परिक शिल्प कलाएं

हिमाचल में पारम्परिक शिल्प और कलाएं पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होती आ रही हैं. इनके संवर्धन और संरक्षण के लिए इनके निरन्तर पोषण और समर्थन की आवश्यकता है. मुख्यमंत्री ग्राम कौशल योजना से विलुप्त हो रही कलाओं और विधाओं को सहेजने में मदद मिलेगी.

मुख्यमंत्री ग्राम कौशल योजना से निखर रही पारम्परिक शिल्प कलाएं
Traditional craft arts flourished with Chief Minister Gram Kaushal Yojana
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Published : Jan 31, 2021, 2:48 PM IST

धर्मशाला: हिमाचल प्रदेश में सदियों से अनेक पारम्परिक शिल्प और कलाएं पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होती आ रही हैं, लेकिन बदलते समय के साथ इनके संवर्धन और संरक्षण की चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं. इसकी वजह है इनके जानने और सिखाने वाले कारीगरों का दिन-प्रतिदिन कम होना. अगली पीढ़ियों का अपनी विरासत से विमुख होना.

संरक्षण और संवर्धन है उद्देश्य

स्पष्ट है कि इनके संवर्धन और संरक्षण के लिए इनके निरन्तर पोषण और समर्थन की आवश्यकता है. ऐसे में हिमाचल प्रदेश सरकार पारम्परिक आर्ट एवं क्रॉफ्ट के संरक्षण व संवर्धन के उद्देश्य से मुख्यमंत्री ग्राम कौशल योजना लेकर आई है. इससे राज्य में विलुप्त हो रही कलाओं और विधाओं को सहेजने में मदद मिलेगी.

बाजार से सम्पर्क स्थापित करवाने का प्रयास

कांगड़ा के अतिरिक्त उपायुक्त और डीआरडीए परियोजना के निदेशक राहुल कुमार का कहना है कि इस योजना का उद्देश्य पारम्परिक शिल्पकारों और दस्तकारों को चिन्हित करना, क्षमता निर्माण, पारम्परिक कौशल को आधुनिक एवं सामयिक बनाना, युवाओं को इन कलाओं और कौशल को सीखने के लिए प्रेरित करने के साथ प्रशिक्षण उपलब्ध करवाना है. साथ ही उत्पादों के विपणन के लिए विभिन्न माध्यमों से बाजार से सम्पर्क स्थापित करवाना है.

विकास खंड में करना होगा आवेदन

इस योजना का लाभ उठाने के लिए मुख्यमंत्री ग्राम कौशल योजना में प्रशिक्षक और प्रशिक्षु दोनों को सम्बन्धित विकास खंड में आवेदन करना होता है. योजना के तहत प्रदेश सरकार द्वारा जिन निर्धारित कला-कार्यों में प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है. इनमें लकड़ी से बने खिलौने, फुलकारी कढ़ाई, बांस शिल्प, चीड़ पत्ती शिल्प, पेपर बैग, कांगड़ा पेटिंग, ब्लैक पॉटरी, थंका पेटिंग आदि शामिल हैं.

प्रशिक्षण की अवधि

इस योजना के तहत प्रशिक्षण की अवधि तीन माह से एक वर्ष तक की हो सकती है. प्रशिक्षण शिल्प-कला सिखाने वाले के कार्य स्थल पर ही दिया जाएगा. निर्धारित अवधि के दौरान प्रदेश सरकार द्वारा प्रशिक्षक को 1 हजार 500 रुपये प्रति प्रशिक्षु प्रतिमाह तथा हर प्रशिक्षु को 3 हजार रुपए प्रतिमाह मानदेय के रूप में प्रदान किए जाएंगे.

100 लोगों को दिया जा रहा प्रशिक्षण

जो प्रशिक्षु कांगड़ा पेंटिंग सीख रहे हैं, वे पूरी तनमन्यता के साथ इसमें दिलचस्पी ले रहे हैं. उपायुक्त, कांगड़ा राकेश कुमार प्रजापति बताते हैं कि वर्तमान में मुख्यमंत्री ग्राम कौशल योजना ज़िला के 11 विकास खण्डों में चलाई जा रही है.

योजना के तहत एक प्रशिक्षक अधिकतम पांच लोगों को ट्रेनिंग प्रदान कर सकता है. जिला में इस समय 20 प्रशिक्षक विभिन्न विधाओं में 100 लोगों को प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं.

ये भी पढ़ेंः- बर्ड फ्लू से ही हुई थी कौवों की मौत, भोपाल से आई सैंपल रिपोर्ट में हुआ खुलासा

धर्मशाला: हिमाचल प्रदेश में सदियों से अनेक पारम्परिक शिल्प और कलाएं पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होती आ रही हैं, लेकिन बदलते समय के साथ इनके संवर्धन और संरक्षण की चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं. इसकी वजह है इनके जानने और सिखाने वाले कारीगरों का दिन-प्रतिदिन कम होना. अगली पीढ़ियों का अपनी विरासत से विमुख होना.

संरक्षण और संवर्धन है उद्देश्य

स्पष्ट है कि इनके संवर्धन और संरक्षण के लिए इनके निरन्तर पोषण और समर्थन की आवश्यकता है. ऐसे में हिमाचल प्रदेश सरकार पारम्परिक आर्ट एवं क्रॉफ्ट के संरक्षण व संवर्धन के उद्देश्य से मुख्यमंत्री ग्राम कौशल योजना लेकर आई है. इससे राज्य में विलुप्त हो रही कलाओं और विधाओं को सहेजने में मदद मिलेगी.

बाजार से सम्पर्क स्थापित करवाने का प्रयास

कांगड़ा के अतिरिक्त उपायुक्त और डीआरडीए परियोजना के निदेशक राहुल कुमार का कहना है कि इस योजना का उद्देश्य पारम्परिक शिल्पकारों और दस्तकारों को चिन्हित करना, क्षमता निर्माण, पारम्परिक कौशल को आधुनिक एवं सामयिक बनाना, युवाओं को इन कलाओं और कौशल को सीखने के लिए प्रेरित करने के साथ प्रशिक्षण उपलब्ध करवाना है. साथ ही उत्पादों के विपणन के लिए विभिन्न माध्यमों से बाजार से सम्पर्क स्थापित करवाना है.

विकास खंड में करना होगा आवेदन

इस योजना का लाभ उठाने के लिए मुख्यमंत्री ग्राम कौशल योजना में प्रशिक्षक और प्रशिक्षु दोनों को सम्बन्धित विकास खंड में आवेदन करना होता है. योजना के तहत प्रदेश सरकार द्वारा जिन निर्धारित कला-कार्यों में प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है. इनमें लकड़ी से बने खिलौने, फुलकारी कढ़ाई, बांस शिल्प, चीड़ पत्ती शिल्प, पेपर बैग, कांगड़ा पेटिंग, ब्लैक पॉटरी, थंका पेटिंग आदि शामिल हैं.

प्रशिक्षण की अवधि

इस योजना के तहत प्रशिक्षण की अवधि तीन माह से एक वर्ष तक की हो सकती है. प्रशिक्षण शिल्प-कला सिखाने वाले के कार्य स्थल पर ही दिया जाएगा. निर्धारित अवधि के दौरान प्रदेश सरकार द्वारा प्रशिक्षक को 1 हजार 500 रुपये प्रति प्रशिक्षु प्रतिमाह तथा हर प्रशिक्षु को 3 हजार रुपए प्रतिमाह मानदेय के रूप में प्रदान किए जाएंगे.

100 लोगों को दिया जा रहा प्रशिक्षण

जो प्रशिक्षु कांगड़ा पेंटिंग सीख रहे हैं, वे पूरी तनमन्यता के साथ इसमें दिलचस्पी ले रहे हैं. उपायुक्त, कांगड़ा राकेश कुमार प्रजापति बताते हैं कि वर्तमान में मुख्यमंत्री ग्राम कौशल योजना ज़िला के 11 विकास खण्डों में चलाई जा रही है.

योजना के तहत एक प्रशिक्षक अधिकतम पांच लोगों को ट्रेनिंग प्रदान कर सकता है. जिला में इस समय 20 प्रशिक्षक विभिन्न विधाओं में 100 लोगों को प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं.

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