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कांगड़ा संसदीय सीट पर गद्दी दिलाएंगे 'गद्दी'? जातीय समीकरण पर ETV BHARAT की स्पेशल रिपोर्ट

कांगड़ा संसदीय सीट पर पिछले 11 चुनावों की बात करें तो छह बार भाजपा जबकि चार बार कांग्रेस को जीत मिली है. आपातकाल हटने के बाद 1977 में भारतीय लोक दल के प्रत्याशी दुर्गा चंद को भी जीत मिली थी.

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Published : Apr 13, 2019, 4:28 PM IST

डिजाइन फोटो

कांगड़ाः देश में भले ही जाति तोड़ों और समाज जोड़ो का नारा दिया जाता हो, लेकिन चुनाव की बात करें तो जातिगत समीकरण हमेशा से हावी होते आए हैं. शांत कहे जाने वाला हिमाचल भी इस दौड़ में पीछे नहीं रहा है.

special report
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मतदाताओं की दृष्टि से हिमाचल के सबसे बड़े संसदीय क्षेत्र कांगड़ा की बात की जाए तो यहां भाजपा और कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतार दिए हैं. इस बार ये कयास लगाए जा रहे थे कि भाजपा की तरफ से शांता कुमार खुद चुनावी रण में उतरेंगे, लेकिन माना जा रहा है कि गद्दी समुदाय पर दिए बयान के बाद उपजे बबाल के बाद इस सीट पर समीकरण बदल गए हैं. भाजपा ने गद्दी वोट बैंक को अपनी ओर करने के लिए किशन कपूर को मैदान में उतारा है तो कांग्रेस ने इस संसदीय क्षेत्र में प्रभाव रखने वाले ओबीसी वर्ग पर दांव खेलते हुए पवन काजल को टिकट दिया है.

कांगड़ा संसदीय सीट पर पिछले 11 चुनावों की बात करें तो छह बार भाजपा जबकि चार बार कांग्रेस को जीत मिली है. आपातकाल हटने के बाद 1977 में भारतीय लोक दल के प्रत्याशी दुर्गा चंद को भी जीत मिली थी.

जीतीय समीकरण पर ETV BHARAT की स्पेशल रिपोर्ट

इस सीट पर 20 प्रतिशत मतदाता राजपूत है जो सत्ता की कुर्सी तक प्रत्याशी को पहुंचाने में अहम भूमिका निभाते आए हैं. कांगड़ा सीट से चार बार संसद पहुंचने वाले शांता कुमार इस सीट पर किंगमेकर की भूमिका निभाते आए हैं. 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राजन सुशांत पर दांव खेला था. उनकी जीत का श्रेय भी शांता कुमार को दिया जाता है. दिग्गज नेता भले ही चुनावी मैदान में न उतरे हो लेकिन भाजपा को जीत दिलाने का जिम्मा उन्हीं पर रहेगा.

ऐसे में चुनावी राजनीति से अलविदा कह चुके शांता कुमार इस बार फिर से भाजपा को जीत दिला पाएंगे और गद्दी वोट बैंक कांगड़ा की राजनीति में कितना प्रभावशाली रहेगा. इसके साथ ही सत्ता की कुर्सी डिसाइड करने वाले राजपूतों का इस चुनाव में क्या रोल रहने वाला है ये आने वाला वक्त ही बताएगा.

कब किस पार्टी से कौन पहुंचा संसद
1977 दुर्गा चंद भारतीय लोक दल
1980 विक्रम चंद महाजन कांग्रेस
1984 चंद्रेश कुमारी कांग्रेस
1989 शांता कुमार भाजपा
1991 डीडी खनौरिया भाजपा
1996 संत महाजन कांग्रेस
1998 शांता कुमार भाजपा
1999 शांता कुमार भाजपा
2004 चंद्र कुमार कांग्रेस
2009 डॉ. राजन सुशांत भाजपा
2014 शांता कुमार भाजपा

कांगड़ाः देश में भले ही जाति तोड़ों और समाज जोड़ो का नारा दिया जाता हो, लेकिन चुनाव की बात करें तो जातिगत समीकरण हमेशा से हावी होते आए हैं. शांत कहे जाने वाला हिमाचल भी इस दौड़ में पीछे नहीं रहा है.

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मतदाताओं की दृष्टि से हिमाचल के सबसे बड़े संसदीय क्षेत्र कांगड़ा की बात की जाए तो यहां भाजपा और कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतार दिए हैं. इस बार ये कयास लगाए जा रहे थे कि भाजपा की तरफ से शांता कुमार खुद चुनावी रण में उतरेंगे, लेकिन माना जा रहा है कि गद्दी समुदाय पर दिए बयान के बाद उपजे बबाल के बाद इस सीट पर समीकरण बदल गए हैं. भाजपा ने गद्दी वोट बैंक को अपनी ओर करने के लिए किशन कपूर को मैदान में उतारा है तो कांग्रेस ने इस संसदीय क्षेत्र में प्रभाव रखने वाले ओबीसी वर्ग पर दांव खेलते हुए पवन काजल को टिकट दिया है.

कांगड़ा संसदीय सीट पर पिछले 11 चुनावों की बात करें तो छह बार भाजपा जबकि चार बार कांग्रेस को जीत मिली है. आपातकाल हटने के बाद 1977 में भारतीय लोक दल के प्रत्याशी दुर्गा चंद को भी जीत मिली थी.

जीतीय समीकरण पर ETV BHARAT की स्पेशल रिपोर्ट

इस सीट पर 20 प्रतिशत मतदाता राजपूत है जो सत्ता की कुर्सी तक प्रत्याशी को पहुंचाने में अहम भूमिका निभाते आए हैं. कांगड़ा सीट से चार बार संसद पहुंचने वाले शांता कुमार इस सीट पर किंगमेकर की भूमिका निभाते आए हैं. 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राजन सुशांत पर दांव खेला था. उनकी जीत का श्रेय भी शांता कुमार को दिया जाता है. दिग्गज नेता भले ही चुनावी मैदान में न उतरे हो लेकिन भाजपा को जीत दिलाने का जिम्मा उन्हीं पर रहेगा.

ऐसे में चुनावी राजनीति से अलविदा कह चुके शांता कुमार इस बार फिर से भाजपा को जीत दिला पाएंगे और गद्दी वोट बैंक कांगड़ा की राजनीति में कितना प्रभावशाली रहेगा. इसके साथ ही सत्ता की कुर्सी डिसाइड करने वाले राजपूतों का इस चुनाव में क्या रोल रहने वाला है ये आने वाला वक्त ही बताएगा.

कब किस पार्टी से कौन पहुंचा संसद
1977 दुर्गा चंद भारतीय लोक दल
1980 विक्रम चंद महाजन कांग्रेस
1984 चंद्रेश कुमारी कांग्रेस
1989 शांता कुमार भाजपा
1991 डीडी खनौरिया भाजपा
1996 संत महाजन कांग्रेस
1998 शांता कुमार भाजपा
1999 शांता कुमार भाजपा
2004 चंद्र कुमार कांग्रेस
2009 डॉ. राजन सुशांत भाजपा
2014 शांता कुमार भाजपा

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