धर्मशाला: पूर्व सांसद शांता कुमार ने मंगलवार को धर्मशाला के डीआरडीए सभागार में राज्य स्तरीय साहित्यकार व स्वतंत्रता सेनानी यशपाल की जयंती समारोह की अध्यक्षता करते हुए कहा कि आजादी यूं ही नहीं मिली, इसके लिए लाखों लोगों ने कुर्बानियां दी हैं.
युवा पीढ़ी स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानियों को भूलती जा रही है. देश के क्रांतिकारियों ने आजादी के लिए कितनी कुर्बानियां दी हैं. ये देश को याद दिलाने की जरूरत है. शांता कुमार ने कहा कि यशपाल साहित्यकार और महान क्रांतिकारी थे.शांता ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी यशपाल की जयंति को बेहतर ढंग से मनाने के लिए विचार की जरूरत है. बता दें कि यशपाल को जब आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी तब वह महज 28 वर्ष के थे. उनका जन्म 3 दिसंबर 1903 को फिरोजपुर (पंजाब) में हुआ था. उनके पूर्वज हमीरपुर के भूंपल गांव के थे. दादा गरडूराम विभिन्न स्थानों पर व्यापार करते और भोरंज तहसील में टिक्कर भरियां और खर्वारियां के निवासी थे.
वर्ष 1937 में यशपाल को जेल से मुक्त तो कर दिया गया, लेकिन उनके पंजाब प्रांत जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. यशपाल ने महात्मा गांधी के साथ असहयोग आंदोलन में भाग लिया था. नेशनल कॉलेज लाहौर में पढ़ाई के दौरान उनकी मित्रता सरदार भगत सिंह से हुई. यशपाल ने भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद के साथ आजादी के आंदोलनों में भाग लिया.
1929 में उन्होंने ब्रिटिश वाइसराय लॉर्ड इरविन की रेलगाड़ी के नीचे बम विस्फोट किया था. लाहौर में बोर्सटल जेल से उन्होंने भगत सिंह को मुक्त कराने का भी प्रयास किया था. वर्ष 1932 में इलाहाबाद में पुलिस से मुठभेड़ के समय पिस्तौल में गोलियां समाप्त होने पर यशपाल को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें पुलिस से मुठभेड़ करने के लिए अंग्रेजी हकुमुत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.