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हैप्पी बर्थडे! आज है पानी वाले पूर्व मुख्यमंत्री का जन्मदिन, जानें क्यों पड़ा ये नाम - शांता कुमार का राजनीतिक सफर

हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार का आज 87वां जन्मदिन है. हालांकि, शांता कुमार इस बार अपना जन्मदिन नहीं मनाएंगे. शांता कुमार ने ये फैसला कोरोना संकट काल को देखते हुए लिया है. वे इस बार अपने जन्मदिन पर किसी तरह के बड़े कार्यक्रम का आयोजन न करके इसे सादे तरीके से मनाएंगे.

Shanta Kumar birthday
शांता कुमार का जन्मदिन
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Published : Sep 12, 2020, 1:20 PM IST

धर्मशाला: हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार का आज 87वां जन्मदिन है. हालांकि, शांता कुमार इस बार अपना जन्मदिन नहीं मनाएंगे. शांता कुमार ने ये फैसला कोरोना संकट काल को देखते हुए लिया है. वे इस बार अपने जन्मदिन पर किसी तरह के बड़े कार्यक्रम का आयोजन न करके इसे सादे तरीके से मनाएंगे.

जिला कांगड़ा के गढ़जमूला में 12 सितंबर 1934 को जगन्नाथ शर्मा और कौशल्या देवी के घर शांता कुमार का जन्म हुआ था. उन्होंने प्रांरभिक शिक्षा के बाद जेबीटी की पढ़ाई की. उसके बाद स्कूल में शिक्षा देने लग पड़े, लेकिन आरएसएस में मन लगने की वजह से दिल्ली चले गए. वहां जाकर संघ का काम किया और ओपन यूनिवसर्सिटी से वकालत की डिग्री की.

Shanta kumar with atal bihari vajpayee
अटल बिहारी वाजपेयी के साथ शांता कुमार

राजनीतिक करियर की शुरूआत

पंच के चुनाव से राजनीति की शुरुआत की थी. शांता कुमार 1963 में पहली बार गढ़जमूला पंचायत से जीते थे. उसके बाद वह पंचायत समिति के भवारना से सदस्य नियुक्त किये गए. कांगड़ा जिले के1965 से 1970 तक जिला परिषद के भी अध्यक्ष रहे.

जेल भी गए

सत्याग्रह और जनसंघ के आंदोलन में भी शांता कुमार ने भाग लिया. इस दौरान उन्होंने जेल की हवा भी खाई. शांता कुमार ने पहला चुनाव 1971 में पालमपुर विधानसभा से लड़ा और कुंज बिहारी से करीबी अंतर से हार गए . एक साल बाद प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल गया और 1972 में फिर चुनाव हुए. शांता कुमार ने यह चुनाव खेरा विधानसभा से लड़ा और चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे.

Shanta kumar with atal bihari vajpayee
अटल बिहारी वाजपेयी के साथ शांता कुमार

मुख्यमंत्री बनने के बाद 1992 में गिरी बीजेपी सरकार

आपातकाल के बाद 1977 में विधानसभा चुनाव होने पर जनसंघ की सरकार बनी. शांता कुमार ने सुलह विधानसभा से चुनाव लड़ा और फिर प्रदेश के मुखिया बने, लेकिन सरकार का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. इसके बाद 1979 में पहली बार कांगड़ा लोकसभा के चुनाव जीते और सांसद बने. 1990 में वह फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, लेकिन 1992 में बाबरी मस्जिद घटना के बाद हिमाचल में बीजेपी सरकार को बर्खास्त कर दिया और शांता कुमार एक बार फिर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके.

फोटो
फोटो.

केंद्र में भी बने मंत्री

अटल बिहारी वाजपेयी की केंद्र की सरकार में वह खाद व उपभोक्ता मामले के मंत्री बने. इसके बाद 1999 से 2002 तक वाजपेयी सरकार में ग्रामीण विकास मंत्रायल के मंत्री रहे. वहीं, 2014 में भी कांगड़ा, चंबा लोकसभा सीट के सांसद रहे. राज्य सभा में भी शांता कुमार 2008 के लिए नियुक्त रह चुके है.

अपने कार्यकाल के दौरान क्या काम किए

शांता कुमार ने अन्तोदय जैसी योजना शुरू की, जिससे कई गरीब परिवारों को सस्ता राशन मिला. पानी को लोगों के घर-घर तक पहुंचाया. प्रदेश के पानी पर रॉयल्टी लगाई गई. प्रदेश में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट लगाए. साथ ही नो वर्क नो पेय जैसे सख्त फैसला भी लिया.

क्यों कहा जाता है पानी वाला मुख्यमंत्री

प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार को पूरे प्रदेश में पानी वाला मुख्यमंत्री कहा जाता है. 1990 में शांता कुमार जब प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने प्रदेश में हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट की शुरुआत की. पहाड़ी राज्य होने के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश में बहुत सी नदियां बहती हैं.

इससे यह लगता नहीं कि इस प्रदेश के लोगों को पानी की दिक्कत का सामना करना पड़ेगा, लेकिन 1990 से पहले प्रदेश के लोगों को दूरदराज तक पानी के लिए जाना पड़ता था, लेकिन मुख्यमंत्री शांता कुमार ने रिमोट सेंसिंग तकनीक का इस्तेमाल करवाया और प्रदेश के तमाम जिलों में हैंड पंप लगाए.

फोटो
फोटो.

उनके लगवाए गए हैंड पंप आज भी लोगों को पानी की सुविधा प्रदान करवा रहे हैं. यही वजह है कि पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार को पूरे प्रदेश में पानी वाला मुख्यमंत्री कहा जाता है.

लेखक भी हैं शांता कुमार

शांता कुमार ने आपातकाल के दौरान जेल में बहुत सी किताबें भी लिखी है. एक नेता होने के साथ वह एक अच्छे लेखक भी हैं. राजनीति में इतना लंबा अरसा बिताने के बाद भी उनकी छवि ईमानदार और सिद्धांतो से कभी समझौता नहीं करने वाले नेता के तौर पर है. अपनी ही सरकार में भी गलत होने पर वे उसे बारे में भी खुल कर बोलते हैं. शांता कुमार अपनी आत्मकथा को भी लिख रहे हैं.

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2019 के लोकसभा चुनाव से पहले चुनावी राजनीति से लिया सन्यास

परिवारवाद की राजनीति से भी शांता कुमार दूर रहे. वहीं, वर्तमान की बात की जाए तो 2019 में हुए लोकसभा चुनाव से पहले शांता कुमार ने चुनावी राजनीति से सन्यास ले लिया, लेकिन गैर चुनावी राजनीति में अभी भी बीजेपी के सिपाही की तरह तैनात हैं. शांता कुमार कहते हैं कि चुनावी राजनीति से सन्यास लेकर उनका ध्यान अब विवेकानंद ट्रस्ट की तरफ है.

ये भी पढ़ें: इस बार अपना जन्मदिन नहीं मनाएंगे शांता कुमार, ये है वजह

धर्मशाला: हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार का आज 87वां जन्मदिन है. हालांकि, शांता कुमार इस बार अपना जन्मदिन नहीं मनाएंगे. शांता कुमार ने ये फैसला कोरोना संकट काल को देखते हुए लिया है. वे इस बार अपने जन्मदिन पर किसी तरह के बड़े कार्यक्रम का आयोजन न करके इसे सादे तरीके से मनाएंगे.

जिला कांगड़ा के गढ़जमूला में 12 सितंबर 1934 को जगन्नाथ शर्मा और कौशल्या देवी के घर शांता कुमार का जन्म हुआ था. उन्होंने प्रांरभिक शिक्षा के बाद जेबीटी की पढ़ाई की. उसके बाद स्कूल में शिक्षा देने लग पड़े, लेकिन आरएसएस में मन लगने की वजह से दिल्ली चले गए. वहां जाकर संघ का काम किया और ओपन यूनिवसर्सिटी से वकालत की डिग्री की.

Shanta kumar with atal bihari vajpayee
अटल बिहारी वाजपेयी के साथ शांता कुमार

राजनीतिक करियर की शुरूआत

पंच के चुनाव से राजनीति की शुरुआत की थी. शांता कुमार 1963 में पहली बार गढ़जमूला पंचायत से जीते थे. उसके बाद वह पंचायत समिति के भवारना से सदस्य नियुक्त किये गए. कांगड़ा जिले के1965 से 1970 तक जिला परिषद के भी अध्यक्ष रहे.

जेल भी गए

सत्याग्रह और जनसंघ के आंदोलन में भी शांता कुमार ने भाग लिया. इस दौरान उन्होंने जेल की हवा भी खाई. शांता कुमार ने पहला चुनाव 1971 में पालमपुर विधानसभा से लड़ा और कुंज बिहारी से करीबी अंतर से हार गए . एक साल बाद प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल गया और 1972 में फिर चुनाव हुए. शांता कुमार ने यह चुनाव खेरा विधानसभा से लड़ा और चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे.

Shanta kumar with atal bihari vajpayee
अटल बिहारी वाजपेयी के साथ शांता कुमार

मुख्यमंत्री बनने के बाद 1992 में गिरी बीजेपी सरकार

आपातकाल के बाद 1977 में विधानसभा चुनाव होने पर जनसंघ की सरकार बनी. शांता कुमार ने सुलह विधानसभा से चुनाव लड़ा और फिर प्रदेश के मुखिया बने, लेकिन सरकार का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. इसके बाद 1979 में पहली बार कांगड़ा लोकसभा के चुनाव जीते और सांसद बने. 1990 में वह फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, लेकिन 1992 में बाबरी मस्जिद घटना के बाद हिमाचल में बीजेपी सरकार को बर्खास्त कर दिया और शांता कुमार एक बार फिर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके.

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केंद्र में भी बने मंत्री

अटल बिहारी वाजपेयी की केंद्र की सरकार में वह खाद व उपभोक्ता मामले के मंत्री बने. इसके बाद 1999 से 2002 तक वाजपेयी सरकार में ग्रामीण विकास मंत्रायल के मंत्री रहे. वहीं, 2014 में भी कांगड़ा, चंबा लोकसभा सीट के सांसद रहे. राज्य सभा में भी शांता कुमार 2008 के लिए नियुक्त रह चुके है.

अपने कार्यकाल के दौरान क्या काम किए

शांता कुमार ने अन्तोदय जैसी योजना शुरू की, जिससे कई गरीब परिवारों को सस्ता राशन मिला. पानी को लोगों के घर-घर तक पहुंचाया. प्रदेश के पानी पर रॉयल्टी लगाई गई. प्रदेश में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट लगाए. साथ ही नो वर्क नो पेय जैसे सख्त फैसला भी लिया.

क्यों कहा जाता है पानी वाला मुख्यमंत्री

प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार को पूरे प्रदेश में पानी वाला मुख्यमंत्री कहा जाता है. 1990 में शांता कुमार जब प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने प्रदेश में हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट की शुरुआत की. पहाड़ी राज्य होने के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश में बहुत सी नदियां बहती हैं.

इससे यह लगता नहीं कि इस प्रदेश के लोगों को पानी की दिक्कत का सामना करना पड़ेगा, लेकिन 1990 से पहले प्रदेश के लोगों को दूरदराज तक पानी के लिए जाना पड़ता था, लेकिन मुख्यमंत्री शांता कुमार ने रिमोट सेंसिंग तकनीक का इस्तेमाल करवाया और प्रदेश के तमाम जिलों में हैंड पंप लगाए.

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उनके लगवाए गए हैंड पंप आज भी लोगों को पानी की सुविधा प्रदान करवा रहे हैं. यही वजह है कि पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार को पूरे प्रदेश में पानी वाला मुख्यमंत्री कहा जाता है.

लेखक भी हैं शांता कुमार

शांता कुमार ने आपातकाल के दौरान जेल में बहुत सी किताबें भी लिखी है. एक नेता होने के साथ वह एक अच्छे लेखक भी हैं. राजनीति में इतना लंबा अरसा बिताने के बाद भी उनकी छवि ईमानदार और सिद्धांतो से कभी समझौता नहीं करने वाले नेता के तौर पर है. अपनी ही सरकार में भी गलत होने पर वे उसे बारे में भी खुल कर बोलते हैं. शांता कुमार अपनी आत्मकथा को भी लिख रहे हैं.

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2019 के लोकसभा चुनाव से पहले चुनावी राजनीति से लिया सन्यास

परिवारवाद की राजनीति से भी शांता कुमार दूर रहे. वहीं, वर्तमान की बात की जाए तो 2019 में हुए लोकसभा चुनाव से पहले शांता कुमार ने चुनावी राजनीति से सन्यास ले लिया, लेकिन गैर चुनावी राजनीति में अभी भी बीजेपी के सिपाही की तरह तैनात हैं. शांता कुमार कहते हैं कि चुनावी राजनीति से सन्यास लेकर उनका ध्यान अब विवेकानंद ट्रस्ट की तरफ है.

ये भी पढ़ें: इस बार अपना जन्मदिन नहीं मनाएंगे शांता कुमार, ये है वजह

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