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अपने शरीर के अंदर बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक बनाता है ये कीड़ा, IHBT के वैज्ञानिकों ने की खोज

सीएसआईआर हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएचबीटी) पालमपुर के वैज्ञनिकों ने हिमाचल की पहाड़ियों पर मिले माइक्रोब (बैक्टीरिया) की पहचान की है जो प्लास्टिक के विकल्प के रूप में काम में आएगा. यह अपनी तरह की पहली सफलता है वैज्ञानिकों द्वारा खोजे गए माइक्रोब (बैक्टीरिया) प्राकृतिक बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक बनाता है जो एक माह की अवधि में स्वतः नष्ट हो जाता है ऐसे में यह माइक्रोब अब प्लास्टिक और पॉलिथीन की समस्या के समाधान की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि सिद्ध होगा.

Scientists found option of plastic in hills of himachal, बैक्टीरिया जो बनाता है प्राकृतिक बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक
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Published : Dec 30, 2019, 8:27 PM IST

Updated : Dec 30, 2019, 10:17 PM IST

पालमपुर: देश को जहां प्लास्टिक मुक्त करने करने की बात की जा रही वहीं, सीएसआईआर हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएचबीटी) पालमपुर के वैज्ञनिकों ने हिमाचल की पहाड़ियों पर मिले माइक्रोब (बैक्टीरिया) की पहचान की है जो प्लास्टिक के विकल्प के रूप में काम में आएगा. वैज्ञानिकों द्वारा खोजा गया ये माइक्रोब (बैक्टीरिया) प्राकृतिक बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक बनाता है जो एक माह की अवधि में स्वतः नष्ट हो जाता है.

हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर के वैज्ञानिकों ने हिमालय के 3000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर इस बैक्टीरिया को खोजा है. इस बैक्टीरिया की विशेषता यह है कि अपने आप में से ही प्लास्टिक बनाता है और एक माह के पश्चात ही यह प्राकृतिक बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक गंदे पानी के संपर्क में आता है तो यह नष्ट हो जाता है. यह माइक्रोब अपने शरीर के अंदर 70 प्रतिशत प्लास्टिक बनाता है. प्रयोगशाला में किए गए उपयोग से पाया गया है कि अनेक खाद्य वस्तुओं को पैकेट बंद करने में इसका उपयोग किया जा सकता है.

इसके इलावा प्राकृतिक बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का उपयोग दूध की थैली. ब्रेड कवर, पॉलीथीन बैग व चिप्स के पैकट आदि में किया जा सकता है. वर्तमान में इसका निष्पादन एक बड़ी समस्या बना हुआ है यह ना केवल पर्यावरण को हानि पहुंचा रहे अपितु अनेक प्रकार की समस्याओं का कारण भी बन रहे हैं.

वीडियो.

संस्थान के निदेशक डॉ. संजय कुमार और वरिष्ठ वैज्ञनिक डॉ. धर्म सिंह ने बताया कि प्लास्टिक हमारे जीवन शैली का अभिन्न अंग है. प्लास्टिक की वजह से पूरे वातावरण में प्रदूषण बहुत ज्यादा है. प्लास्टिक खाली हिंदुस्तान की समस्या नहीं बल्कि पूरे विश्व की समस्या है इसकी मुख्य वजह यह है कि प्लास्टिक का वातावरण में जाकर नष्ट नहीं होता है. इसके लिए जरूरत है हमारे पास कोई बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक हो. जब हमारे वैज्ञानिक हिमाचल की ऊंची पहाड़ियों में खोज कर रहे थे तो उन्होंने पाया एक माइक्रोब यहां पर जिसके अंदर प्लास्टिक से स्वतः ही पैदा होती है और माइक्रोब से 70 से 80 प्रतिशत बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक पैदा होती है.

उन्होंने कहा कि हमने पाया कि इस बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक अंदर कोई गिला पदार्थ रखें तो यह खराब नहीं होगा, लेकिन इसके अंदर दूषित पानी या दूषित दूध या दूषित दूसरी कुछ ऐसी चीजें हो तो यह थैला खराब होना शुरू हो जाएगा तब हमने देखा कि इस प्लास्टिक को हम ऐसे ही फेंक देंगे. नदी या नाले में तो एक महीने के बाद यह बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक स्वतः ही गलना शुरू हो जाएगा. वातावरण के लिए बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक वरदान सिद्ध है हम बहुत जल्दी कोशिश कर रहे हैं कि बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक बाजार में उतारा जाए.

ये भी पढ़ें- खबरां पहाड़ां री: हनी ट्रैप से खुलासे ते नौसेना होई चौकन्नी, फेसबुक कन्ने सोशल मीडिया ते दूरी बनाणे से निर्देश

पालमपुर: देश को जहां प्लास्टिक मुक्त करने करने की बात की जा रही वहीं, सीएसआईआर हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएचबीटी) पालमपुर के वैज्ञनिकों ने हिमाचल की पहाड़ियों पर मिले माइक्रोब (बैक्टीरिया) की पहचान की है जो प्लास्टिक के विकल्प के रूप में काम में आएगा. वैज्ञानिकों द्वारा खोजा गया ये माइक्रोब (बैक्टीरिया) प्राकृतिक बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक बनाता है जो एक माह की अवधि में स्वतः नष्ट हो जाता है.

हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर के वैज्ञानिकों ने हिमालय के 3000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर इस बैक्टीरिया को खोजा है. इस बैक्टीरिया की विशेषता यह है कि अपने आप में से ही प्लास्टिक बनाता है और एक माह के पश्चात ही यह प्राकृतिक बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक गंदे पानी के संपर्क में आता है तो यह नष्ट हो जाता है. यह माइक्रोब अपने शरीर के अंदर 70 प्रतिशत प्लास्टिक बनाता है. प्रयोगशाला में किए गए उपयोग से पाया गया है कि अनेक खाद्य वस्तुओं को पैकेट बंद करने में इसका उपयोग किया जा सकता है.

इसके इलावा प्राकृतिक बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का उपयोग दूध की थैली. ब्रेड कवर, पॉलीथीन बैग व चिप्स के पैकट आदि में किया जा सकता है. वर्तमान में इसका निष्पादन एक बड़ी समस्या बना हुआ है यह ना केवल पर्यावरण को हानि पहुंचा रहे अपितु अनेक प्रकार की समस्याओं का कारण भी बन रहे हैं.

वीडियो.

संस्थान के निदेशक डॉ. संजय कुमार और वरिष्ठ वैज्ञनिक डॉ. धर्म सिंह ने बताया कि प्लास्टिक हमारे जीवन शैली का अभिन्न अंग है. प्लास्टिक की वजह से पूरे वातावरण में प्रदूषण बहुत ज्यादा है. प्लास्टिक खाली हिंदुस्तान की समस्या नहीं बल्कि पूरे विश्व की समस्या है इसकी मुख्य वजह यह है कि प्लास्टिक का वातावरण में जाकर नष्ट नहीं होता है. इसके लिए जरूरत है हमारे पास कोई बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक हो. जब हमारे वैज्ञानिक हिमाचल की ऊंची पहाड़ियों में खोज कर रहे थे तो उन्होंने पाया एक माइक्रोब यहां पर जिसके अंदर प्लास्टिक से स्वतः ही पैदा होती है और माइक्रोब से 70 से 80 प्रतिशत बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक पैदा होती है.

उन्होंने कहा कि हमने पाया कि इस बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक अंदर कोई गिला पदार्थ रखें तो यह खराब नहीं होगा, लेकिन इसके अंदर दूषित पानी या दूषित दूध या दूषित दूसरी कुछ ऐसी चीजें हो तो यह थैला खराब होना शुरू हो जाएगा तब हमने देखा कि इस प्लास्टिक को हम ऐसे ही फेंक देंगे. नदी या नाले में तो एक महीने के बाद यह बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक स्वतः ही गलना शुरू हो जाएगा. वातावरण के लिए बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक वरदान सिद्ध है हम बहुत जल्दी कोशिश कर रहे हैं कि बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक बाजार में उतारा जाए.

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Intro:हिमाचल की पहाड़ियों में मिला प्लास्टिक का विकल्प, सीएसआईआर के हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएचबीटी) पालमपुर के वैज्ञानिकों ने इस माइक्रोब (बैक्टीरिया) की पहचान , माइक्रोब प्राकृतिक बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक बनाता है जो एक माह की अवधि में स्वतः नष्ट हो जाता है, माइक्रोब अपने शरीर के अंदर 70 प्रतिशत प्लास्टिक बनाता है , बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का उपयोग दूध की थैली , बै्रड कवर, पॉलीथीन बैग व चिप्स के पैकट आदि में किया जा सकताBody:देश को जहां प्लास्टिक मुक्त करने करने की बात की जा रही वही सीएसआईआर हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएचबीटी) पालमपुर के वैज्ञनिको नें हिमाचल की पहाड़ियों पर मिले माइक्रोब (बैक्टीरिया) की पहचान की है जो प्लास्टिक के विकल्प के रूप में काम में आएगा । यह अपनी तरह की पहली सफलता है वैज्ञानिकों द्वारा खोजे गए माइक्रोब (बैक्टीरिया) प्राकृतिक बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक बनाता है जो एक माह की अवधि में स्वतः नष्ट हो जाता है ऐसे में यह माइक्रोब अब प्लास्टिक तथा पॉलिथीन की समस्या के समाधान की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि सिद्ध होगा । प्रयोगशाला में इस दिशा में किए गए प्रयोग सफल रहे हैं ऐसे में अब व्यवसायिक स्तर पर इसे ले जाने की दिशा का प्रयास आरंभ किए गए हैं । हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पसलमपुर के वैज्ञानिकों ने हिमालय के 3000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर इस बैक्टीरिया को खोजा है इस बैक्टीरिया की विशेषता यह है कि अपने आप में से ही प्लास्टिक बनाता है तथा एक माह के पश्चात ही यह प्राकृतिक बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक गंदे पानी के संपर्क में आता है तो यह नष्ट हो जाता है, यह माइक्रोब अपने शरीर के अंदर 70 प्रतिशत प्लास्टिक बनाता है । प्रयोगशाला में किए गए उपयोग से पाया गया है कि अनेक खाद्य वस्तुओं को पैकेट बंद करने में इसका उपयोग किया जा सकता है इसके इलावा प्राकृतिक बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का उपयोग दूध की थैली , बै्रड कवर, पॉलीथीन बैग व चिप्स के पैकट आदि में किया जा सकता है वर्तमान में इसका निष्पादन एक बड़ी समस्या बना हुआ है यह ना केवल पर्यावरण को हानि पहुंचा रहे अपितु अनेक प्रकार की समस्याओं का कारण भी बन रहे हैं ।Conclusion:संस्थान निदेशक डॉ. संजय कुमार और वरिष्ठ वैज्ञनिक डा0 धर्म सिंह ने बताया कि प्लास्टिक हमारे जीवन शैली का अभिन्न अंग है प्लास्टिक की वजह से पूरे वातावरण में प्रदूषण बहुत ज्यादा है खाली हिंदुस्तान की समस्या नहीं बल्कि पूरे विश्व की समस्या है इसकी मुख्य वजह यह है कि प्लास्टिक का वातावरण में जाकर नष्ट नहीं होता है । इसके लिए जरूरत है हमारे पास कोई बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक हो जब हमारे वैज्ञानिक हिमाचल की उंची पाहडियों में खोज कर रहे थे तो उन्होंने पाया एक माइक्रोव यहां पर जिसके अंदर प्लास्टिक से स्वतः ही पैदा होती है और माइक्रोब से 70 से 80 प्रतिशत बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक पैदा होती है । हमने पाया कि इस बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक अंदर कोई गिला पदार्थ रखें तो यह खराब नही होगा लेकिन इसके अंदर दूषित पानी या दूषित दूध या दूषित दूसरी कुछ ऐसी चीजें हो तो यह थैला खराब होना शुरू हो जाएगा तब हमने देखा कि इस प्लास्टिक को हम ऐसे ही फेंक देंगे नदी या नाले में तो एक महीने के बाद यह बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक स्वतः ही गलना शुरू हो जाएगा है वतावरण के लिए बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक वरदान सिद्ध है हम बहुत जल्दी कोशिश कर रहे हैं कि बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक बाजार मे उतारा जाए ।
Last Updated : Dec 30, 2019, 10:17 PM IST
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