धर्मशाला: राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की सदस्य रिंचेन ल्हामो इन दिनों हिमाचल प्रदेश के दौरे पर हैं. फिलहाल इनकी ओर से हिमाचल के मंडी और कांगड़ा का दौरा किया गया है. उन्होंने मंडी और कांगड़ा के अधिकारियों से अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों से संबंधित समस्याओं को सुना. इस दौरान उन्होंने भारत की केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री द्वारा अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए चलाई जा रही 15 सूत्रीय कार्यक्रमों की समीक्षा बैठकें भी की.
बैठक में उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों के सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक उत्थान के लिए चलाई योजनाओं को सभी जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाने पर बल दिया है. वहीं, आज उन्होंने इसी सिलसिले में निर्वासित तिब्बत सरकार के पदाधिकारियों समेत बौद्ध धर्मगुरु दलाईलामा के साथ भी मुलाकात की. इस मुलाकात के बाद मीडिया से मुखातिब होते हुए उन्होंने कहा कि उनका दौरा मंडी और कांगड़ा का ही था.
उन्होंने कहा कि अगर वे धर्मशाला में रह रहे निर्वासित तिब्बतियों और दलाईलामा से नहीं मिलती तो उनका ये दौरा अधूरा रह जाता. जिसे उन्होंने अपनी इस विजिट के दौरान पूरा किया है. उन्होंने कहा कि भारत सरकार अल्पसंख्यकों के उत्थान के लिए कई तरह की योजनाएं चला रही हैं. मगर कई मर्तबा इन योजनाओं से ये लोग महरूम रह जाते हैं. इसलिए सरकार की प्रतिनिधी होने के नाते उनका दायित्व बनता है कि वो प्रशासनिक अधिकारियों के साथ बैठकर इन योजनाओं की समय-समय पर समीक्षा करते रहें. कहा कि योजनाएं धरातल तक पहुंचे इसके लिए इन लोगों के बीच में जाना बेहद जरूरी होता है.
इस कार्यक्रम में शामिल हुईं रिंचेन ल्हामो- बता दें कि निर्वासित तिब्बतियन सरकार की ओर से तिब्बत के इतिहास, सभ्यता और संस्कृति से लवरेज जिस संग्रहालय की स्थापना आज से ठीक एक साल पहले अपने संसद भवन के साथ की थी आज उसकी सालगिरह पर विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया. जिसमें रिंचेन ल्हामो ने बतौर मुख्यतिथि शिरकत की. इस दौरान उन्होंने तिब्बत और तिब्बतियन इतिहास को बड़े ही नजदीक से समझने और देखने का प्रयास किया.
23 साल पहले किया था संग्रहालय स्थापित- तिब्बतियन की ओर से अपने संग्रहालय को स्थापित किए हुए 23 साल गुजर गए हैं और इसकी स्थापना बाकायदा बौद्ध धर्मगुरु दलाईलामा की ओर से अपने ही मंदिर के नजदीक साल 2000 के अप्रैल माह में की थी. मगर वक्त बदलने के साथ केंद्रीय तिब्बतियन प्रशासन ने वहां जगह कम होने के चलते इसे सीटीए के साथ ही शिफ्ट करवाते हुए यहां आवाजाही करने वालों को इसे दो भाषाओं में तब्दील कर दिया. जिसमें से पहली तो तिब्बतियन ही रही जबकि दूसरी अंग्रेजी थी.
तिब्बत का इतिहास बेहद पुराना और समृद्ध- मगर अब वक्त के साथ तिब्बतियन इतिहास को और ज्यादा लोगों तक कैसे पहुंचाएं इसके लिए सीटीए ने ऑडियो लैंग्वेज के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने के लिए इसमें पांच अन्य भाषाओं जिसमें हिंदी और अंग्रेजी को भी शामिल कर लिया गया है. इस बाबत जानकारी देते हुए तिब्बत म्यूजियम के निदेशक तेंजिन तोपतेन ने कहा कि आज एक साल पूरा हो गया है और वो इसी की सालगिरह सेलिब्रेट कर रहे हैं. तिब्बत का इतिहास बेहद पुराना और समृद्ध है.
तिब्बत संग्रहालय में नहीं लिया जाता कोई शुल्क- जिसे जन जन तक कैसे पहुंचाए इसी दिशा में केंद्रीय तिब्बतियन प्रशासन बल दे रहा है. उन्होंने कहा कि तिब्बत का इतिहास व संस्कृति को पर्यटक व स्थानीय निवासी नजदीक से जान सके इसके लिए इस संग्रहालय को खोला गया है. उन्होंने बताया कि इस तिब्बत संग्रहालय में आने वाले लोगो से किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता. उन्होंने बताया कि इस संग्रहालय में तिब्बत की आजादी के लिए अपनी जान की कुर्बानी देने वाले तिब्बतियों को भी पिक्चर के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है.
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