धर्मशाला: गर्मियों का मौसम शुरु होने वाला है. हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी और जंगलों से भरे इलाके में आग लगने की घटनाएं भी गर्मियों के मौसम से सामने आना शुरु हो जाएंगी. हर साल जंगलों में लगने वाली आग में न सिर्फ वन संपदा को नुकसान पहुंचता है बल्कि कई जानवर और पशु-पक्षी इसमें जिंदा जल कर मर जाते हैं. कई दुलर्भ प्रजातियां भी जंगलों में लगने वाली इस आग की भेंट चढ़ जाती हैं. पहाड़ी और जंगली इलाकों में पाई जाने वाली दुर्लभ औषधियां भी आग में जल कर राख हो जाती हैं. ऐसे में हिमाचल प्रदेश में वन विभाग ने जंगल में लगने वाली आग से बचाव के लिए कमर कस ली है.
48 अति संवेदनशील फॉरेस्ट बीट्स चिन्हित: बता दें की वन मंडल धर्मशाला ने 48 ऐसी फॉरेस्ट बीट्स चिन्हित की हैं, जिन्हें की विभाग ने अति संवेदनशील श्रेणी में रखा है. वन विभाग ने 48 ऐसी फॉरेस्ट बीट्स को ढूंढ निकाला है, जिनमें लगभग पिछले 5 साल से हर बार आग लगती है. यह रिकॉर्ड विभाग ने 3 साल के वनों में आग लगने के रिकॉर्ड के आधार पर निकाला है और उसी के आधार पर अति संवेदनशील बीट्स चिन्हित की जाती हैं.
पिछले वर्षों के मुकाबले इस साल राहत में वन विभाग: गौरतलब है कि पिछले साल जनवरी माह से ही जंगलों में आग लगने की घटनाएं सामने आने लगी थीं और मार्च माह आते-आते आगजनी के 10 मामले सामने आ गए थे. जबकि इस बार विभाग अभी तक राहत में है, हालांकि मार्च माह खत्म होने को है लेकिन गनीमत रही की जंगलों में इस साल आगजनी की घटना नहीं हुई है. फायर सीजन के लिए विभाग ने रेंज लेवल पर कंट्रोल रूम स्थापित कर दिए हैं.
वन अधिकार समितियों और विलेज फॉरेस्ट मैनेजमेंट सोसायटियों का भी सहयोग आग बुझाने में लिया जाता है. फायर वालंटियर नियुक्त करने की तैयारी विभाग द्वारा की जा चुकी है. वहीं, आम जनता से भी सहयोग मांगा जा रहा है. वन मंडल धर्मशाला के डीएफओ दिनेश शर्मा का कहना है कि जंगल हम सभी के हैं, ऐसे में जंगलों में आग न लगाएं. सुलग रही बीड़ी को जंगल में न फेंके और न ही जंगलों को आग के हवाले करें. फायर सीजन से निपटने के लिए विभाग तैयार है, लेकिन इसमें जनसहयोग भी अपेक्षित है.
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