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कांगड़ा-चंबा संसदीय सीटः लोकसभा चुनाव में 13 लाख 65 हजार मतदाता तय करेंगे प्रत्याशियों का भाग्य - LS election 2019

कांगड़ा संसदीय सीट में खास रहेगा राजनीतिक समीकरण. जातीय समीकरण के हिसाब से दल करेंगे उम्मीदवारों के नाम की घोषणा.

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Published : Mar 22, 2019, 5:57 PM IST

धर्मशाला: देवभूमि हिमाचल का कांगड़ा जिला जनसंख्या के हिसाब से प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है. कांगड़ा जिला का मुख्यालय धर्मशाला है. राजधानी शिमला के बाद धर्मशाला प्रदेश का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण शहर है. शिमला के बाद सियासी हलचल का दूसरा शहर हिमाचल में धर्मशाला ही है.

कांगड़ा संसदीय सीट में 17 वीधानसभा सीटें आती हैं. संसदीय सीट में वर्तमान में 13 लाख 65 हजार मतदाता हैं, जिसमें से 6,04,496 पुरुष मतदाता हैं और वहीं 5,95,669 महिला मतदाता हैं. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कांगड़ा संसदीय सीट से बीजेपी को जीत हासिल हुई थी. इस चुनाव में बीजेपी के शांता कुमार ने कांग्रेस के चौधरी चंद्र कुमार को हराया था.

कब कौन रहा कांगड़ा संसदीय सीट से सांसद
1952 में हुए लोस चुनाव में ए आर सेवन सांसद बनें जो कि कांग्रेस की टिकट से चुनाव जीते थे. साल 1952 में दोबारा हुए उपचुनावों में कांग्रेस के हेमराज को जीत मिली. वहीं,1957 के लोस चुनाव में कांग्रेस के पदम देव सांसद चुने गए.

साल1962 के लोस चुनाव में कांग्रेस के हेमराज दोबारा सांसद बने. वहीं, 1962 में हुए उपचुनावों में कांग्रेस के छत्र सिंह सांसद बने. 1967 के लोस चुनाव में कांग्रेस के हेमराज एक बार फिर से सांसद बने. 1972 के लोस चुनाव में कांग्रेस के विक्रम चंद महाजन सांसद बने.

साल1977 में लोक दल से दुर्गा चंद सांसद बने. 1980 के लोस चुनाव में कांग्रेस के नेता विक्रम चंद महाजन सांसद बने. वहीं, 1984 में कांग्रेस की चंद्रेश कुमारी सांसद बनीं. साल1989 में पहली बार भाजपा ने इस सीट में अपना परचम लहराया और शांता कुमार सांसद बने. साल1991 में भाजपा के टीटी कनोरिया ने जीत हासिल की और सांसद बने.

साल1996 में हुए लोस चुनाव में कांग्रेस की वापसी हुई और संत महाजन सांसद बने. साल 1998 के लोस चुनाव में एक बार फिर बीजेपी ने बाजी मारी और शांता कुमार सांसद बने. साल 2004 को लोस चुनाव में एक बार फिर बदलाव हुआ और कांग्रेस के चौधरी चंद्र कुमार ने शांता कुमार को हराया. वहीं, साल 2009 के लोस चुनाव में भाजपा के डॉ. राजन सुशांत सांसद चुनकर संसद पहुंचे. वहीं, साल 2014 में तीसरी बार शांता कुमार सांसद बने.

वर्तमान में कांगड़ा-चंबा लोकसभा सीट की बात करें तो भाजपा की तरफ से शांता कुमार का नाम सबसे आगे आ रहा है. शांता कुमार कई बार कह चुके हैं कि उनकी अब चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं है. उन्होंने कहा कि इस बार पार्टी चाहे तो नए चेहरे को मौका दे सकती है. वहीं, उन्होंने ये भी कहा है कि पार्टी हाईकमान का निर्णय सर्वोपरि होगा. वहीं, संसदीय सीट पर बीजेपी की तरफ से खाद्य आपूर्ति मंत्री किशन कुमार के नाम पर पर भी चर्चा है.

वहीं, अगर कांग्रेस की बात की जाए तो जीएस बाली और विशेष तौर पर सुधीर शर्मा का नाम सबसे आगे है. अब देखना होगा की कांग्रेस हाईकमान किस उम्मीदवार को कांगड़ा संसदीय सीट से टीकट थमाती है.

बता दें कि पिछले 10 सालों से कांगड़ा संसदीय सीट से कांग्रेस का कोई भी प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पाया है. कांग्रेस इस लोकसभा चुनाव में कांगड़ा संसदीय सीट में जीत हासिल करना चाहती है. वहीं, बीजेपी कांगड़ा संसदीय सीट से एक बार फिर अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहेगी.

वहीं, ये कहना भी उचित नहीं होगा कि कांगड़ा संसदीय सीट में जातिगत आंकड़ों की राजनीति नहीं होती. यहां हर दल की नजर जातिय समीकरण के हिसाब से उम्मीदवार के नाम की घोषणा करने पर रहती है. लोकसभा सीट में 6 जातियों का बोल बाला है, जिसमें से 30 फीसदी राजपूत, 18 फीसदी ब्राह्मण, 26 फीसदी ओबीसी 41.4 फीसदी अनुसूचित जाति, 31. 7 फीसदी अनुसूचित जनजाति के आधार पर लोकसभा सीट बंटी हुई है. अब ये देखना खास होगा कि कांग्रेस और भाजपा संसदीय सीट से किस प्रत्याशि का नाम फाइनल करते हैं.

धर्मशाला: देवभूमि हिमाचल का कांगड़ा जिला जनसंख्या के हिसाब से प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है. कांगड़ा जिला का मुख्यालय धर्मशाला है. राजधानी शिमला के बाद धर्मशाला प्रदेश का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण शहर है. शिमला के बाद सियासी हलचल का दूसरा शहर हिमाचल में धर्मशाला ही है.

कांगड़ा संसदीय सीट में 17 वीधानसभा सीटें आती हैं. संसदीय सीट में वर्तमान में 13 लाख 65 हजार मतदाता हैं, जिसमें से 6,04,496 पुरुष मतदाता हैं और वहीं 5,95,669 महिला मतदाता हैं. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कांगड़ा संसदीय सीट से बीजेपी को जीत हासिल हुई थी. इस चुनाव में बीजेपी के शांता कुमार ने कांग्रेस के चौधरी चंद्र कुमार को हराया था.

कब कौन रहा कांगड़ा संसदीय सीट से सांसद
1952 में हुए लोस चुनाव में ए आर सेवन सांसद बनें जो कि कांग्रेस की टिकट से चुनाव जीते थे. साल 1952 में दोबारा हुए उपचुनावों में कांग्रेस के हेमराज को जीत मिली. वहीं,1957 के लोस चुनाव में कांग्रेस के पदम देव सांसद चुने गए.

साल1962 के लोस चुनाव में कांग्रेस के हेमराज दोबारा सांसद बने. वहीं, 1962 में हुए उपचुनावों में कांग्रेस के छत्र सिंह सांसद बने. 1967 के लोस चुनाव में कांग्रेस के हेमराज एक बार फिर से सांसद बने. 1972 के लोस चुनाव में कांग्रेस के विक्रम चंद महाजन सांसद बने.

साल1977 में लोक दल से दुर्गा चंद सांसद बने. 1980 के लोस चुनाव में कांग्रेस के नेता विक्रम चंद महाजन सांसद बने. वहीं, 1984 में कांग्रेस की चंद्रेश कुमारी सांसद बनीं. साल1989 में पहली बार भाजपा ने इस सीट में अपना परचम लहराया और शांता कुमार सांसद बने. साल1991 में भाजपा के टीटी कनोरिया ने जीत हासिल की और सांसद बने.

साल1996 में हुए लोस चुनाव में कांग्रेस की वापसी हुई और संत महाजन सांसद बने. साल 1998 के लोस चुनाव में एक बार फिर बीजेपी ने बाजी मारी और शांता कुमार सांसद बने. साल 2004 को लोस चुनाव में एक बार फिर बदलाव हुआ और कांग्रेस के चौधरी चंद्र कुमार ने शांता कुमार को हराया. वहीं, साल 2009 के लोस चुनाव में भाजपा के डॉ. राजन सुशांत सांसद चुनकर संसद पहुंचे. वहीं, साल 2014 में तीसरी बार शांता कुमार सांसद बने.

वर्तमान में कांगड़ा-चंबा लोकसभा सीट की बात करें तो भाजपा की तरफ से शांता कुमार का नाम सबसे आगे आ रहा है. शांता कुमार कई बार कह चुके हैं कि उनकी अब चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं है. उन्होंने कहा कि इस बार पार्टी चाहे तो नए चेहरे को मौका दे सकती है. वहीं, उन्होंने ये भी कहा है कि पार्टी हाईकमान का निर्णय सर्वोपरि होगा. वहीं, संसदीय सीट पर बीजेपी की तरफ से खाद्य आपूर्ति मंत्री किशन कुमार के नाम पर पर भी चर्चा है.

वहीं, अगर कांग्रेस की बात की जाए तो जीएस बाली और विशेष तौर पर सुधीर शर्मा का नाम सबसे आगे है. अब देखना होगा की कांग्रेस हाईकमान किस उम्मीदवार को कांगड़ा संसदीय सीट से टीकट थमाती है.

बता दें कि पिछले 10 सालों से कांगड़ा संसदीय सीट से कांग्रेस का कोई भी प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पाया है. कांग्रेस इस लोकसभा चुनाव में कांगड़ा संसदीय सीट में जीत हासिल करना चाहती है. वहीं, बीजेपी कांगड़ा संसदीय सीट से एक बार फिर अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहेगी.

वहीं, ये कहना भी उचित नहीं होगा कि कांगड़ा संसदीय सीट में जातिगत आंकड़ों की राजनीति नहीं होती. यहां हर दल की नजर जातिय समीकरण के हिसाब से उम्मीदवार के नाम की घोषणा करने पर रहती है. लोकसभा सीट में 6 जातियों का बोल बाला है, जिसमें से 30 फीसदी राजपूत, 18 फीसदी ब्राह्मण, 26 फीसदी ओबीसी 41.4 फीसदी अनुसूचित जाति, 31. 7 फीसदी अनुसूचित जनजाति के आधार पर लोकसभा सीट बंटी हुई है. अब ये देखना खास होगा कि कांग्रेस और भाजपा संसदीय सीट से किस प्रत्याशि का नाम फाइनल करते हैं.

Intro:धर्मशाला- प्रदेश की भूमि को वीर भूमि के नाम से जाना जाता है और देवभूमि के नाम से प्रदेश की भूमि हर कोने कोने मैं जानी जाती है। वहीं प्रदेश का सबसे बड़ा जिला जिला कांगड़ा भी अपनी प्रदेश में अलग पहचान रखता है। जिला के हर कोने में देवी देवताओं का वास है तो वहीं देश के सबसे पहले परमवीर चक्र मेजर सोमनाथ शर्मा भी इसी जिले से संबंध रखते थे। कारगिल के युद्ध के हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा जिला कांगड़ा के पालमपुर से संबंध रखते थे पूरे देश में जिला कांगड़ा की अलग पहचान है। जिला का मुख्यालय धर्मशाला है और धर्मशाला शिमला के बाद प्रदेश का महत्वपूर्ण शहर है। शिमला के बाद अगर सियासी हलचल किसी शहर में होती है तो धर्मशाला शहर में ही होती है कहा जा सकता है कि जिला कांगड़ा प्रदेश का केंद्र है। खूबसूरती के लिए भी यह जिला अपनी अलग पहचान रखता है धौलाधार की पहाड़ियां इस क्षेत्र की शोभा बढ़ाते हैं।


Body:वही जिला कांगड़ा के ज्यादातर भाग में खेती बाड़ी की जाती है और जिला के ज्यादातर लोग खेती वाडी पर निर्भर है वहीं खेतीवाड़ी के अलावा भारतीय सेना में भी जिला के नौजवानों की तादाद भारी संख्या में है। जिला में महत्वपूर्ण फसलें मक्का गेहूं आलू टमाटर की पैदावार है तो वहीं कांगड़ा चाय भी पूरे देश में अपनी एक अलग पहचान रखती है।

सियासत में काँगड़ा-चम्बा लोकसभा सीट।
वहीं कांगड़ा चंबा लोक सभा सीट में 17 विधानसभा सीटें आती है। जिसमें कांगड़ा की नूरपुर इंदौरा, फतेहपुर ,ज्वाली, शाहपुर कांगड़ा और पालमपुर बैजनाथ नगरोटा बगवां जयसिंहपुर और धर्मशाला वहीं चंबा जिला से चंबा सदर भटियात चौराह और बनीखेत कांगड़ा चंबा लोक सभा सीट में आती है।

कितने मतदाता है।

कांगड़ा चंबा लोक सभा सीट में वर्तमान में 12 लाख 165 हजार वोटर है जिसमे से 604496 पुरुष मतदाता है होते ही 595669 महिला मतदाता है। और कुल 17 विधानसभा क्षेत्र इसमें शामिल है। वहीं साल 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को जीत हासिल हुई थी और शांता कुमार ने कांग्रेस के चौधरी चंद्र कुमार को शिकस्त दी थी वहीं इन चुनावों में शांता कुमार को 456163 मत प्राप्त हुए थे बल्कि चौधरी चंद्र कुमार को 286091 मत मिले थे।


Conclusion:कब कौन रहा कांगड़ा का सांसद
1952 में हुए आम चुनावों में ए आर सेवन सांसद बने जो कि कांग्रेस की टिकट से चुनाव लड़े थे। 1952 में दोबारा हुए उपचुनावों में कांग्रेस के हेमराज को जीत मिली। वहीं 1957 में कांग्रेस के पदम देव सांसद चुने गए। 1962 में कांग्रेस के हेमराज दोबारा सांसद बने 1962 में हुए उपचुनावों में कांग्रेस के छत्र सिंह सांसद बने। 1967 में कांग्रेस के हेमराज एक बार फिर से सांसद बने। 1972 में कांग्रेस के विक्रम चंद महाजन सांसद बने। 1977 में लोक दल से दुर्गा चंद सांसद बने। 1980 में कांग्रेस के नेता विक्रम चंद महाजन सांसद बने। वहीं 1984 में कांग्रेस की चंद्रेश कुमारी सांसद बनी। 1989 में पहली बार भाजपा ने इस सीट में अपना परचम लहराया और शांता कुमार सांसद बने। 1991 में भाजपा के टीटी कनोरिया ने जीत हासिल की और सांसद बने। 1996 में हुए चुनावों में कांग्रेस की वापसी हुई और संत महाजन सांसद बने। 1998 में एक बार फिर शांता कुमार सांसद बने। 2004 में फिर बदलाव हुआ और कांग्रेस के चौधरी चंद्र कुमार शांता कुमार को हराया। 2009 के चुनावों में भाजपा के डॉ राजन सुशांत सांसद चुनकर संसद पहुंचे। वहीं 2014 में तीसरी बार फिर से शांता कुमार सांसद बने।

वर्तमान में भाजपा और कांग्रेस के दावेदार।
वही वर्तमान कांगड़ा चंबा लोक सभा सीट की बात करें तो भाजपा की तरफ से शांता कुमार का नाम सबसे आगे आ रहा है वहीं शांता कुमार कई बार यह कह चुके हैं उन्होंने इच्छा जाहिर की है कि इस बार पार्टी किसी अन्य चेहरे को चुनाव में उतारे लेकिन उन्होंने यह भी साथ में कहा है कि जो भी पार्टी का निर्णय होगा सर्वोपरि होगा। वहीं स्वास्थ्य मंत्री विपन सिंह परमार का भी नाम भी चर्चा में था लेकिन उन्होंने कहा है कि वह प्रदेश में ही अपनी सेवाएं देकर खुश है। बैंक केसीसी कार्ड के चेयरमैन राजीव भारद्वाज का नाम भी कांगड़ा चंबा लोक सभा सीट से भाजपा की तरफ से चल रहा है वही इस पर राजीव भारद्वाज ने कहा है कि अगर पार्टी को जिम्मेदारी देती है तो फिर चुनाव में उतरने के लिए तैयार है। वहीं खाद आपूर्ति मंत्री किशन कुमार का नाम भी टिकट के उम्मीदवारों में आ रहा था जिस पर उन्होंने कहा है कि पार्टी हाईकमान एक टिकट का फैसला करेगा। वही त्रिलोक कपूर ओर दूलो राम का नाम भी भाजपा की तरफ से टिकट के उम्मीदवारों में चल रहा है लेकिन यह आने वाले वक्त में ही पता चलेगा कि भाजपा अपने पुराने सिपाही पर विश्वास जताती है या इस बार एक नेहा सिपाही उतारा जाएगा।

वही पिछले 10 सालों से कांगड़ा चंबा लोक सभा सीट से बाहर चल रही कांग्रेस इस बार अपनी जीत के साथ वापसी करना चाहेगी। वही कांग्रेस से पूर्व मंत्री जीएस बाली, सुधीर शर्मा और वर्तमान कांगड़ा के विधायक पवन काजल और चंबा से आशा कुमारी का नाम टिकट की रेस में सबसे आगे चल रहा है यह तय माना जा रहा है कि इन्हें चारों नामों में से कांग्रेस किसी एक नाम पर अपना दांव खेले गी। वहीं इन चारों का कहना है कि पार्टी का जो भी फैसला होता है वह कार्यकर्ता के लिए सर्वोपरि होता है। वही अब देखना यह होगा कि कांग्रेस अपने किस सिपाही पर विश्वास दिलाती है।

जातिगत आंकड़े।

यह कहना उचित नहीं होगा कि जातिगत आंकड़ों की राजनीति नहीं होती है लेकिन हर दल के नजर जातियों के हिसाब से रहती है वहीं वर्तमान लोकसभा सीट में 6 जातियों का बोल बाला है जिसमें से 30 फ़ीसदी राजपूत 18 फ़ीसदी ब्राह्मण 26 फ़ीसदी ओबीसी 41.4 फ़ीसदी अनुसूचित जाति 31. 7 फ़ीसदी अनुसूचित जनजाति के आधार पर लोकसभा सीट बंटी हुई है।

वही यह तो आने वाले समय में ही पता चल पाएगा कि कांग्रेस और भाजपा किस पर अपना विश्वास जाती है। दोनों ही पार्टियां किसे अपना उम्मीदवार बनाते हैं और जनता के सामने लाती है वही जनता इनकी किस्मत का फैसला करेगी और देखना यह होगा कि कांग्रेस अपनी वापसी करेगी या फिर भाजपा लगातार अपनी जीत को बरकरार रखेंगे।
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