कांगड़ा: कोरोना महामारी के चलते देहरा उपमंडल में ऐतिहासिक कालीनाथ कालेश्वर महादेव मंदिर में राज्य स्तरीय मेले का आयोजन नहीं किया गया. ऋगवेद काल से लेकर इतिहास में शायद पहली बार पंचतीर्थी सरोवर बैसाखी के अवसर पर सूना देखा गया.
शिवालिक पहाड़ियों से जुड़ा है इतिहास
ऋग्वेद के अनुसार कांगड़ा के देहरा उपमंडल के कालेश्वर में व्यास नदी के किनारे प्रसिद्ध कालीनाथ कालेश्वर महादेव मंदिर स्थित है. सतयुग में हिमाचल की शिवालिक पहाड़ियों में दैत्य जालंधर के आतंक से देवता, ऋषि-मुनि परेशान थे. सभी ने भगवान श्रीहरि से इस समस्या का समाधान मांगा. तभी देवताओं और ऋषियों-मुनियों ने अपनी-अपनी शक्तियां प्रदान की. इससे महाकाली का जन्म हुआ. महाकाली ने कुछ ही क्षणों में जालंधर और अन्य दैत्यों का नाश कर दिया.
काली का क्रोध शांत करने पहुंचे थे शिव
कथा के अनुसार दैत्यों के संहार के बाद भी जब दैत्य जालंधर के आतंक कम नहीं हुआ तो भगवान शिव स्वयं पहुंचे और युद्ध भूमि में लेट गए. क्रोधित माता का पैर शिव के ऊपर पड़ा और देवी काली को जैसे ही इस बात का एहसास हुआ तो वह शांत हो गईं, लेकिन उन्हें बार-बार इस गलती का अफसोस होता रहा.
प्रायश्चित करने के लिए वर्षों तक देवी हिमालय पर विचरती रहीं. एक दिन वह कालेश्वर में ब्यास नदी के किनारे बैठकर भगवान शिव का ध्यान करने लगीं. भोलेनाथ ने उस समय देवी काली को दर्शन दिए और उस स्थान पर ज्योर्तिलिंग की स्थापना की. तभी से इस स्थान को काली और शिव यानी कालीनाथ कालेश्वर महादेव के नाम से जाना जाने लगा.
पांडवों से भी जुड़ा है कालेश्वर महादेव का इतिहास
कालीनाथ कालेश्वर महादेव का इतिहास पांडवों से भी जुड़ा है. एक कथा के अनुसार कि अज्ञातवास के दौरान पांडव जब यहां आए तो अपने साथ प्रसिद्ध तीर्थ प्रयाग, उज्जैन, नासिक, हरिद्वार और रामेश्वरम का जल साथ लेकर आए थे. तब उन्होंने इन पंचतीर्थों के जल को यहां स्थित तालाब में डाल दिया. तब से इस स्थान को पंचतीर्थी के नाम से जाना जाने लगा.
यूं तो पंचतीर्थी में स्नान का हमेशा ही पुण्य मिलता है, लेकिन बैसाखी के दिन यहां स्नान करने से असंख्य पुण्य की प्राप्ति होती है, लेकिन इस बार बैसाखी के अवसर पर कोरोना के चलते पंचतीर्थी में स्नान के लिए श्रद्धालुओं का हुजूम नहीं उमड़ पाया.