धर्मशाला: आयुर्वेद विभाग की पहल पर अब किसान औषधीय पौधों की खेती को तरजीह दे रहे हैं. कुठ, कुटकी, अतीस की खेती किसानों को मालामाल कर सकती है.कांगड़ा जिला के ऊपरी क्षेत्रों बड़ा भंगाल और मैक्लोडगंज में औषधीय पौधों की खेती की जा सकती है. वहीं, निचले क्षेत्रों में सुगंधवाला, अश्वगंधा, सर्पगंधा, तुलसी की खेती की जा सकती है.
औषधीय खेती के प्रति किसानों के बढ़ते रुझान को देखते हुए आयुष मंत्रालय ने ई-चरक नाम से मोबाइल ऐप तैयार किया है, जहां किसान अपने औषधीय उत्पाद बेच सकते हैं. ऐप के जरिए किसान व खरीददार दोनों अपनी डिमांड डाल सकते हैं. किसान औषधीय पौधों की खेती की जानकारी लेना चाहें तो हर्बल गार्डन जोगिंद्रनगर में ट्रेनिंग करवाई जाती है. गांवों में किसान प्रशिक्षण के लिए आग्रह करते हैं तो 10-15 किसानों को एकत्रित करके उन्हें अधिकारियों के माध्यम से प्रशिक्षण दिया जा सकता है.
वहीं, औषधीय खेती को कलस्टर आधार पर बढ़ावा दिया जा रहा है, जिसमें पांच से दस किसान अपना समूह बनाकर करीब 15 किलोमीटर की परिधि में एक साथ खेती कर सकते हैं. इसके लिए भारत सरकार और मेडिसनल प्लांट बोर्ड की ओर से वित्तीय सहायता दी जाती है.
डॉ. कुलदीप बरवाल जिला आयुर्वेदिक अधिकारी जिला कांगड़ा ने कहा कि औषधीय खेती से तैयार होने वाले उत्पादों की मार्केटिंग के लिए स्थानीय फार्मेसियों से संपर्क किया जा सकता है. जड़ी-बूटियों की खरीद करने वालों से सभी संपर्क किया जा सकता है.वहीं, कृषि विपणन मंडियों से भी संपर्क किया जा रहा है, औषधीय पैदावार को बेचने का प्रयास किया जा रहा है. 39 औषधीय पौधों को कृषि उपज घोषित किया गया है.