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वीर चक्र से सम्मानित थे भोरंज के हीरा सिंह, परिवार की तीनों पीढ़ियां सेना में देती आ रही हैं सेवाएं

भोरंज के हनोह गांव के हीरा सिंह पाकिस्तान के साथ लड़ाई में लड़ते हुए जख्मी हुए थे और 4 साल बाद अस्पताल से ठीक होकर घर लौटने पर उन्हें भारत सरकार की ओर से वीर चक्र सम्मान के लिए चुना गया. वीर चक्र से सम्मानित हीरा सिंह का फरवरी 1992 में निधन हो गया. इनके परिवार की तीनों पीढ़ियां सेना में अपनी सेवाएं देती आ रही हैं.

हीरा सिंह.
हीरा सिंह.
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Published : Aug 15, 2020, 11:16 AM IST

भोरंज/हमीरपुर: भोरंज के हनोह गांव के हीरा सिंह पाकिस्तान के साथ लड़ते हुए जख्मी हुए थे और 4 साल बाद अस्पताल से ठीक होकर घर लौटने पर उन्हें भारत सरकार की ओर से वीर चक्र सम्मान के लिए चुना गया.

भोरंज के हनोह गांव जिला हमीरपुर के किसान गोड़ा राम के घर 14 जून 1912 को जन्मे हीरा सिंह ने सेना में वीर चक्र प्राप्त कर प्रदेश में अपनी अलग पहचान बनाई थी. हीरा सिंह अपने चाचा हजारा राम, जो सेना में सेवारत थे उनसे प्रभावित हुए और केवल 16 साल की उम्र में 16 नवंबर 1928 को सेना की डोगरा रेजिमेंट में भर्ती हुए.

हीरा सिंह ने अंग्रेजों की तरफ से लड़ते हुए द्वितीय विश्व युद्ध में अपनी वीरता का प्रदर्शन किया. इसके बाद स्वतंत्र भारत में पाकिस्तान के साथ बहादुरी से लड़ते हुए 8 अप्रैल 1948 को जम्मू कश्मीर के नवांशहर झंगड़ नामक स्थान पर बुरी तरह से जख्मी हो गए और 10 अगस्त 1949 को डिस्चार्ज हुए थे.

इसके 4 साल बाद भारत सरकार ने इनकी वीरता को देखते हुए इन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया. वीर चक्र से सम्मानित हीरा सिंह का फरवरी 1992 में निर्धन हो गया. बता दें कि इनके परिवार की तीनों पीढ़ियां सेना में अपनी सेवाएं देती आ रही है.

हीरा सिंह के दो भाई खजाना राम व रामदास भी सेना में थे. इनके बेटे तेज सिंह सूबेदार मेजर व राजेन्द्र सिंह सूबेदार मेजर ऑनरेरी कैप्टन रैंक से सेवानिवृत हुए है. हीरा सिंह के 4 पोतों से 2 पोते सेना में देश की सेवाएं दे रहे है.

हीरा सिंह के बेटे राजेन्द्र सिंह बताते है की उन्हें अपने पिता पर गर्व है. उन्हें सरकार से शिकायत है कि सरकार ने आज तक उनके पिता की याद में कोई स्मारक या कोई भी सामाजिक काम नहीं किया है. हालांकि क्षेत्र में उनके नाम पर एक-दो खेल प्रतियोगिताएं अवश्य होती हैं.

ये भी पढ़ें: बाबा कांशी राम ने भरी थी पहाड़ों के अंदर आजादी की ललकार

भोरंज/हमीरपुर: भोरंज के हनोह गांव के हीरा सिंह पाकिस्तान के साथ लड़ते हुए जख्मी हुए थे और 4 साल बाद अस्पताल से ठीक होकर घर लौटने पर उन्हें भारत सरकार की ओर से वीर चक्र सम्मान के लिए चुना गया.

भोरंज के हनोह गांव जिला हमीरपुर के किसान गोड़ा राम के घर 14 जून 1912 को जन्मे हीरा सिंह ने सेना में वीर चक्र प्राप्त कर प्रदेश में अपनी अलग पहचान बनाई थी. हीरा सिंह अपने चाचा हजारा राम, जो सेना में सेवारत थे उनसे प्रभावित हुए और केवल 16 साल की उम्र में 16 नवंबर 1928 को सेना की डोगरा रेजिमेंट में भर्ती हुए.

हीरा सिंह ने अंग्रेजों की तरफ से लड़ते हुए द्वितीय विश्व युद्ध में अपनी वीरता का प्रदर्शन किया. इसके बाद स्वतंत्र भारत में पाकिस्तान के साथ बहादुरी से लड़ते हुए 8 अप्रैल 1948 को जम्मू कश्मीर के नवांशहर झंगड़ नामक स्थान पर बुरी तरह से जख्मी हो गए और 10 अगस्त 1949 को डिस्चार्ज हुए थे.

इसके 4 साल बाद भारत सरकार ने इनकी वीरता को देखते हुए इन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया. वीर चक्र से सम्मानित हीरा सिंह का फरवरी 1992 में निर्धन हो गया. बता दें कि इनके परिवार की तीनों पीढ़ियां सेना में अपनी सेवाएं देती आ रही है.

हीरा सिंह के दो भाई खजाना राम व रामदास भी सेना में थे. इनके बेटे तेज सिंह सूबेदार मेजर व राजेन्द्र सिंह सूबेदार मेजर ऑनरेरी कैप्टन रैंक से सेवानिवृत हुए है. हीरा सिंह के 4 पोतों से 2 पोते सेना में देश की सेवाएं दे रहे है.

हीरा सिंह के बेटे राजेन्द्र सिंह बताते है की उन्हें अपने पिता पर गर्व है. उन्हें सरकार से शिकायत है कि सरकार ने आज तक उनके पिता की याद में कोई स्मारक या कोई भी सामाजिक काम नहीं किया है. हालांकि क्षेत्र में उनके नाम पर एक-दो खेल प्रतियोगिताएं अवश्य होती हैं.

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