चंबा: केदारनाथ में भगवान शिव के आगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चोला डोरा पहन शीश नवाजा. हिमाचल प्रदेश के चंबा के पारंपरिक परिधान को उन्होंने देश-दुनिया में ख्याति दिलवा दी है. 13 अक्टूबर को चंबा चौगान में जनसभा को संबोधित करने के लिए पहुंचे प्रधानमंत्री को चुराह विस क्षेत्र की बेहनौता निवासी मानदेई ठाकुर और ब्याला निवासी नोखी देवी पुत्री प्रीता द्वारा तैयार किए गए चोला-डोरा को विधानसभा उपाध्यक्ष हंसराज ने महिला की ओर से चौगान में भेंट किया. (chola dora chamba) (lord shiva favorite outfit) (Controversy over Modi picture) (pm narendra modi wear chola dora)
हालांकि, महिला की भावनाओं की कद्र करते हुए प्रधानमंत्री ने उसे स्वीकार करते हुए ठंडे क्षेत्र में जाने पर इसे पहनने का वादा किया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ दर्शन से पूर्व चोला और डोरा पहन महिला के साथ किए अपने वायदे को सप्ताह के भीतर ही पूरा कर दिखाया. विधानसभा उपाध्यक्ष हंसराज ने बताया कि भगवान शंकर के पसंदीदा पहनावे को पहन पीएम ने केदारनाथ के दर्शन कर पारंपरिक परिधान का भाव पूरा किया.
वहीं, लेसुई पंचायत के बेहनौता निवासी मानदेई ठाकुर पत्नी हरी सिंह ठाकुर ने बताया कि चोला डोरा तैयार करने के लिए उन्होंने कुछ अपनी भेड़ों और कुछ देसी भेड़ों की ऊन खरीदी. खरीदी गई ऊन को कातने के बाद इसका धागा तैयार किया गया. उन्होंने बताया कि भगवान को अर्पित किए जाने वाले चोला बनाने का कार्य काफी बारीक है. मानदेई ने कहा कि चोला बनाने में उन्हें एक वर्ष का समय लगा. अप्रैल 2021 में उन्होंने चोला बनाना आरंभ किया. उन्होंने कहा कि इससे पूर्व भी उन्होंने एक चोला-डोरा बना कर घर पर रखा है. वहीं, चोला तैयार करने वाली चुराह उपमंडल की ग्राम पंचायत लेंसवी के ब्याला निवासी नोखी पुत्री प्रीता ने बताया कि उन्होंने देसी ऊन से 20 दिनों की कड़ी मेहनत से डोरा तैयार किया. हिमाचल प्रदेश में चोला डोरा गद्दी पुरुषों द्वारा पहना जाता है.
कौन हैं गद्दी?: हिमाचल प्रदेश किन्रौर, लाहौल एंड स्पीति और चंबा जैसे जिलों में कई जनजातियां रहती हैं. मुश्किल और चुनौती भरी भौगोलिक स्थितियों में जीवन-यापन करने वाली इस जनजातियों में गद्दी काफी मशहूर हैं. ये प्रदेश के मंडी, कांगड़ा और चंबा जिलों में रहते हैं. ये इलाके की सबसे पुरानी, प्रभावशाली और अपनी समृद्ध लोक-संस्कृति की वजह से एक मशहूर जनजाति है. कांगड़ा और चंबा के ऊपरी हिस्सों में इस जनजाति का खास प्रभाव होने के कारण चुनावी राजनीति में उनका अपना महत्व है. इन जिलों की कुछ विधानसभा सीटों पर गद्दी एक निर्णायक की भूमिका होते हैं. हिमाचल में गद्दियों की आबादी करीब 8 लाख है.
बता दें कि पुरुषों का चोला हाथ से काती हुई भेड़-बकरियों की ऊन से बनता है. भेड़ों से ऊन निकालने के बाद उसे मेहनत से काता जाता है. कातने के बाद जो तैयार होता है, उसे पट्टी या पट्टू कहते हैं. ये अमूमन सफेद और कभी-कभी काले रंग का होता है. ये नरम और पतले ऊन का बना होता है, जो हड्डियां जमा देने वाली सर्दी में भी गद्दियों को गर्माहट देता है.
कैसा होता है हिमाचल का 'चोला डोरा': देश के हर प्रदेश की तरह ही हिमाचल का पहनावा भी अपने आप में बेहद खास है. इस पहनावे को चोला-डोरा या फिर 'चोलू' भी कहा जाता है. यह वेशभूषा देश ही नहीं विदेश में भी मशहूर है. यह ड्रेस पूरी तरह ऊन से बनी होती है. इसमें घुटनों तक आने वाला एक लंबा ऊनी कोट होता है. इसे कमर पर डोरे से बांधा जाता है. आमतौर पर चोला क्रीम या हल्के भूरे रंग का होता है और उसका डोरा गहरे खूबसूरत रंगों से मिलाकर बनाया जाता है. यही वजह है कि इसे चोला-डोरा कहा जाता है. उत्तराखंड के दौरे पर जो ड्रेस पीएम मोदी ने पहनी है उस पर काफी बारीक और खूबसूरत काम किया गया है. इस पर मोर पंख और सतिया भी बनाया गया है.
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