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पारंपरिक वाद्य यंत्रों की तान पर जमकर हुआ डंडारस, छतराडी जातर मेले में उमड़ी हाजारों लोगों की भीड़

राधाअष्टमी का पवित्र स्नान संपन्न होने के बाद डल झील के गंगाजल से शिव शक्ति की प्रतिमा को स्नान कराने के साथ ही जातर मेले का आगाज हो गया. इसी सिलसिले में सोमवार को देवालुओं ने पारंपरिक डंडारस नृत्य से सबका मन मोह लिया.

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Published : Sep 10, 2019, 10:39 AM IST

chhatrari jatar fair start in chamba

चंबा: मणिमहेश यात्रा के संपन्न होने के बाद आरंभ हुए छतराडी जातर मेले में सोमवार को गददी समुदाय की कला और संस्कृति की झलक देखने को मिली. एक साथ सैकड़ों की तादाद में शिव शक्ति माता मंदिर के प्रांगण में पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुनों पर समूह में थिरकते समुदाय के पुरुषों का नजारा देखते ही बन रहा था. एक साल पर होने वाले इस पारंपरिक डंडारस नृत्य को देखने के लिए छतराडी में सोमवार को हजारों की भीड़ उमड़ आई.

बता दें कि राधाअष्टमी का पवित्र स्नान संपन्न होने के बाद डल झील के गंगाजल से शिव शक्ति की प्रतिमा को स्नान करने के साथ ही जातर मेले का आगाज हुआ था. वहीं, मेले में सोमवार को दिन में चली खेल गतिविधियों के बाद पारंपरिक डंडारस नृत्य का आयोजन किया गया. मेले के दौरान गद्दी समुदाय के पुरुष समूह में किया जाने वाला डंडारस नृत्य जातर मेले में आर्कषण का केंद्र रहता है और इसे देखने के लिए दूरदराज के क्षेत्रों से भी लोग छतराडी पहुंचते हैं.

वीडियो

वैसे तो देश भर में विभिन्न समुदाय है, जिनकी अपनी-अपनी कला-संस्कृति और रहन-सहन है. इन्हीं में एक गद्दी समुदाय अपनी कला और संस्कृति के दम पर विश्व भर में अपनी पहचान बनाए हुए हैं. समुदाय में पुरुषों की डंडारस नृत्य की प्रस्तुति सबका मन मोह लेती है. खासकर पारंपरिक परिधानों के साथ पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुनों पर थिरकते लोगों को नजारा देखने लायक होता है.

चंबा: मणिमहेश यात्रा के संपन्न होने के बाद आरंभ हुए छतराडी जातर मेले में सोमवार को गददी समुदाय की कला और संस्कृति की झलक देखने को मिली. एक साथ सैकड़ों की तादाद में शिव शक्ति माता मंदिर के प्रांगण में पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुनों पर समूह में थिरकते समुदाय के पुरुषों का नजारा देखते ही बन रहा था. एक साल पर होने वाले इस पारंपरिक डंडारस नृत्य को देखने के लिए छतराडी में सोमवार को हजारों की भीड़ उमड़ आई.

बता दें कि राधाअष्टमी का पवित्र स्नान संपन्न होने के बाद डल झील के गंगाजल से शिव शक्ति की प्रतिमा को स्नान करने के साथ ही जातर मेले का आगाज हुआ था. वहीं, मेले में सोमवार को दिन में चली खेल गतिविधियों के बाद पारंपरिक डंडारस नृत्य का आयोजन किया गया. मेले के दौरान गद्दी समुदाय के पुरुष समूह में किया जाने वाला डंडारस नृत्य जातर मेले में आर्कषण का केंद्र रहता है और इसे देखने के लिए दूरदराज के क्षेत्रों से भी लोग छतराडी पहुंचते हैं.

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वैसे तो देश भर में विभिन्न समुदाय है, जिनकी अपनी-अपनी कला-संस्कृति और रहन-सहन है. इन्हीं में एक गद्दी समुदाय अपनी कला और संस्कृति के दम पर विश्व भर में अपनी पहचान बनाए हुए हैं. समुदाय में पुरुषों की डंडारस नृत्य की प्रस्तुति सबका मन मोह लेती है. खासकर पारंपरिक परिधानों के साथ पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुनों पर थिरकते लोगों को नजारा देखने लायक होता है.

Intro:अजय शर्मा, चंबा
मणिमहेश यात्रा के संपन्न होने के बाद आरंभ हुए छतराडी जातर मेले में सोमवार को गददी समुदाय की कला और संस्कृति की झलक देखने को मिली। एक साथ
सैकडों की तादाद में शिव शक्ति माता मंदिर के प्रांगण में पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुनों पर समूह में थिरकते समुदाय के पुरूषों का नजारा देखते ही बन रहा था। अलबता पूरे एक साल के वर्ष होने वाले इस पारंपरिक डंडारस नृत्य को देखने के लिए छतराडी में सोमवार को हजारों की भीड उमड आई।

Body:बता दें कि राधाअष्टमी का पवित्र स्नान संपन्न होने के बाद डल झील के गंगाजल से शिव शक्ति की प्रतिमा को स्नान
करने के साथ ही जातर मेले का आगाज हुआ था। वहीं मेले में सोमवार को दिन में चली खेल गतिविधियों के बाद पारंपरिक डंडारस नृत्य का आयोजन किया गया। अहम है कि मेले के दौरान गददी समुदाय के पुरूषों द्वारा समूह में किया जाने वाला डंडारस नृत्य जातर मेले में आर्कषण का केंद्र रहता है और इसे देखने के लिए दूरदराज के क्षेत्रों से भी लोग छतराडी पहंुचते हैं। लिहाजा सोमवार को घंटों शिव शक्ति माता मंदिर के प्रांगण में यह नृत्य चला और इसे देखने के लिए हजारों की भीड उमड आई। Conclusion:जाहिर है कि देश भर में विभिन्न समुदाय है, जिनकी अपनी-अपनी कला-संस्कृति और रहन-सहन है। इन्हीं में एक गददी समुदाय अपनी कला और संस्कृति के दम पर विश्व भर में अपनी पहचान बनाए हुए है। समुदाय में पुरूषों द्वारा किया जाने वाला डंडारस नृत्य की
प्रस्तृति के दौरान दर्शकों को बरवस ही अपने ओर आर्कषित करता है। खासकर पारंपरिक परिधानों के साथ पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुनों पर थिरकते लोगों को नजारा देखने लायक होता है।
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