बिलासपुर: 'पापा दिल्ली में काफी व्यस्त हैं तो मैं पिता के आदेशानुसार बिलासपुर के लोगों की सेहत व उनका ध्यान रखने के लिए बिलासपुर आ गया हूं'. यह बात भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के बेटे हरीश नड्डा ने उस समय कही थी जब जेपी नड्डा कोविड कार्यकाल में पूरे देश की स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने में लगे हुए थे और अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के लिए समय नहीं निकाल पा रहे थे.
ऐसे में जेपी नड्डा ने यह कार्य अपने बेटे हरीश नड्डा को दिया और कहा कि 'बेटा मैं दिल्ली में रहकर देश की सेवा करता हूं और आप हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में अपने घर में जाकर अपने लोगों की सेवा करने में लग जाओ'.
हरीश नड्डा बिलासपुर की राजनीति में भी काफी सक्रिय हो गए हैं
अब फिर क्या हरीश नड्डा दिल्ली से सीधे बिलासपुर के लिए रवाना हो गए और बिलासपुर में पहुंचकर सीधे यहां के प्रशासनिक अधिकारियों सहित राजनीतिक नेताओं के साथ लोगों की समस्याओं का हल करने में लग गए. पिता के साथ कंधे के साथ कंधा मिलाकर इन दिनों चल रहे हरीश नड्डा बिलासपुर की राजनीति में भी काफी सक्रिय हो गए हैं.
हरीश नड्डा ने यह भी साफ किया है कि पिता जी के सख्त आदेश हैं कि मेरे बाद घर से कोई भी राजनीति में प्रवेश नहीं करेगा, लेकिन अब पिता का निर्वाचन क्षेत्र का हाल जानना भी तो नड्डा परिवार को दायित्व बनता है तो बेटे हरीश नड्डा ने आकर यहां पर लाखों रूपये की लागत से स्वास्थ्य उपकरण लोगों सहित प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग को देना शुरू कर दिए और अब लोगों की समस्याएं सुनना भी शुरू कर दी.
बता दें कि नड्डा परिवार की ओर से नवरात्रों के अवसर पर बिलासपुर के बाबा नाहर सिंह मंदिर में एक विशालकाय 9 दिवसीय कार्यक्रम आयोजित करवाया जाता है. ऐसे में तब जेपी नड्डा का परिवार 9 दिन तक यहां अपने कार्यों में जुटा हुआ होता है.
पिता पुत्र का संबंध पेश कर रहा मिसाल
ऐसे में अगर दिल्ली में अधिक व्यस्तता होती है तो यह कार्यभार भी जेपी नड्डा की धर्मपत्नी मलिका नड्डा व उनके बेटे हरीश नड्डा बखूबी निभाते हैं. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि पिता पुत्र का संबंध बिलासपुर ही नहीं बल्कि समूचे हिमाचल में मिशाल पेश कर रहा है.
बता दें कि बिलासपुर के कंदरौर से एक छोटे से धरने प्रदर्शन को लीड करने वाले जेपी नड्डा ने हालांकि उसी समय अपने मंसूबे साफ कर दिए थे, लेकिन जिला और प्रदेश की राजनीति से उन्होंने बड़े सबक सीखे और उन्हीं को अमलीजामा पहनाते हुए आज इस मुकाम को छूने में सफल हुए हैं.
छात्र राजनीति से की करियर की शुरूआत
बिलासपुर के छोटे से गांव विजयपुर के निवासी जगत प्रकाश नड्डा ने छात्र राजनीति से अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत की और स्वयं को केंद्रीय राजनीति तक पहुंचाने के लिए जेपी नड्डा की मेहनत की तूती सहज ही बोलती है. इसे गुणी और प्रतिभावान जगत प्रकाश नड्डा की दूरदर्शी सोच ही कहा जाएगा कि देश की राजनीति में न सिर्फ एक अलग पहचान बनाकर मुकाम हासिल किया बल्कि बिलासपुर जैसे छोटे से जिले का भी राष्ट्रीय स्तर पर नाम चमकाया.
नड्डा की संघर्षशील राजनीति पर हल्की सी नजर डाली जाए तो पता चलता है कि बचपन से ही संघर्षशील एवं जुझारू नेता नड्डा के सरकारी स्कूलों को अपग्रेड करवाने के लिए छेड़ी गई मुहिम में उन्हें 45 दिन जेल में भी रहना पड़ा.
यही नहीं विस्थापितों के कब्जों पर जब भी बुल्डोजर चलता था तो गिरफ्तारी देने में नड्डा अग्रणी पंक्ति में नजर आते थे. नड्डा हिमाचल प्रदेश से केंद्र में पहले स्वास्थ्य मंत्री बने हैं, जबकि बिलासपुर के पहले कैबिनेट मंत्री. बिलासपुर का मान बढ़ाने वाले जगत प्रकाश नड्डा की राह में चुनौतियां ही चुनौतियां रहीं, लेकिन वह कभी ना उम्मीद नहीं हुए.
1998 से 2003 तक बिलासपुर सदर के विधायक रहे हैं नड्डा
जगत प्रकाश नड्डा का जन्म 2 दिसंबर 1960 में पटना, बिहार में हुआ था. नड्डा मूलरूप से हिमाचल के बिलासपुर से संबंध रखते है. इनके पिता नारायण लाल नड्डा पटना विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और बाद में रांची विश्वविद्यालय के कुलपति बने.
जेपी नड्डा की शुरुआती शिक्षा बिहार में हुई और स्नातक पटना विश्वविद्यालय से पूरी की. एलएलबी की पढ़ाई करते हुए हिमाचल विश्वविद्यालय में एबीवीपी से छात्र संघ के पहले निर्वाचित अध्यक्ष बने. एक तरह से एबीवीपी का बूटा ही नड्डा ने एचपीयू कैंपस में लगाया.
1993 में पहली बार बिलासपुर से विधायक चुने गए और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाए गए. 1998 से 2003 में भी बिलासपुर सदर से विधायक चुनकर आए. प्रदेश में स्वास्थ्य मंत्री के अलावाए केंद्र में भी मोदी सरकार में मंत्री रहे.
क्यों मनाया जाता है फादर्स डे
फादर्स डे (Father’s Day) यानी पितृ दिवस हर वर्ष जून महीने के तीसरे रविवार पर मनाया जाता है. यह दिन पिता और उनके प्यार और त्याग के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए समर्पित है. पिता परिवार के वो सदस्य होते हैं जिनके बच्चे के पालन-पोषण में योगदान की अक्सर अनदेखी की जाती है.
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