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कोरोना काल में शिक्षा नीति फेल, सरकार कर रही स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के साथ मजाक: राम लाल ठाकुर - Nayana Devi Assembly Constituency

विधायक राम लाल ठाकुर ने कहा है कि हर घर पाठशाला का एक पोर्टल मात्र बना कर गरीब विद्यार्थियों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है. अगर विशेषज्ञों की राय देखी जाए तो भारत में कारोना की तीसरी लहर आ सकती है जिसमे बच्चों पर ज्यादा खतरा होगा. ऐसे में अभी पाठशालाएं खुलना असम्भव है. दूसरी तरफ वंचित वर्ग के छात्रों को मुख्य धारा में जोड़ने के बजाय सरकार झूठे आंकड़ों की जादूगरी में लगी हुई है. सरकारी पाठशालाओं में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चों के अभिभावक मजदूरी, किसानी करके आजीविका कमाते हैं जिनके लिए स्मार्ट फोन रखना और इंटरनेट का खर्च वहन करना लगभग नामुमकिन है.

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Published : May 14, 2021, 10:15 PM IST

बिलासपुर: अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य, पूर्व मंत्री और नयना देवी विधानसभा क्षेत्र से विधायक राम लाल ठाकुर ने कहा है कि महामारी के इस दौर में सरकार की अपरिपक्वता शिक्षा के क्षेत्र में भी साफ झलकी है. महामारी को आए लगभग डेढ़ साल हो चुका है लेकिन अभी भी सरकार और विभाग सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए कोई ठोस नीति बनाने में पूरी तरह नाकाम रही है.

कोरोना काल में सरकार की शिक्षा नीति फेल

राम लाल ठाकुर ने कहा कि हर घर पाठशाला का एक पोर्टल मात्र बना कर गरीब विद्यार्थियों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है. अगर विशेषज्ञों की राय देखी जाए तो भारत में कारोना की तीसरी लहर आ सकती है जिसमे बच्चों पर ज्यादा खतरा होगा. ऐसे में अभी पाठशालाएं खुलना असम्भव है. दूसरी तरफ वंचित वर्ग के छात्रों को मुख्य धारा में जोड़ने के बजाय सरकार झूठे आंकड़ों की जादूगरी में लगी हुई है. सरकारी पाठशालाओं में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चों के अभिभावक मजदूरी, किसानी करके आजीविका कमाते हैं जिनके लिए स्मार्ट फोन रखना और इंटरनेट का खर्च वहन करना लगभग नामुमकिन है.

पहले बच्चों को स्मार्ट फोन और इंटरनेट की सुविधा दें

अगर किसी के पास स्मार्ट फोन है भी, तो दो या तीन बच्चे उस एक फोन पर से ही अपना गृहकार्य कर रहे हैं जो असफल है. अध्यापकों द्वारा पोर्टल पर से लिंक प्रतिदिन विद्यार्थियों को भेज दिया जाता है जिसे सिर्फ वही बच्चे देख पाते हैं जिनके पास स्मार्ट फोन और इंटरनेट की सुविधा है. स्कूल मुखियाओं को बार-बार यह अव्यावहारिक से आदेश दिए जाते हैं कि वह इस बात को सुनिश्चित करें कि कोई भी विद्यार्थी पढ़ाई से वंचित न रहे लेकिन सुविधाओं के अभाव में वह किस प्रकार ऐसा करेंगे, इस बात को जवाब शायद उनके पास भी नहीं है. मजाक का आलम यह है पांचवीं-छठी कक्षा के विद्यार्थियों को नोट्स पहुंचाने तक के आदेश आए दिन अखबारों के माध्यम से पढ़ने को मिलते हैं.

स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को नोट्स देने का भद्दा मजाक

सरकार में बैठे नुमाइंदों को यह समझना पड़ेगा कि बच्चे स्कूलों में पढ़ रहे हैं न कि किसी विश्वविदयालय से डॉक्ट्रेट की उपाधि लेने जा रहे हैं. नासमझी की पराकाष्ठा ही है कि बंद पड़े स्कूलों को सेनेटाइजेशन के नाम पर करोड़ों रुपए जारी किए गए हैं. कोरोना काल में पानी की बोतलें बच्चों को बांटी जा रही हैं. अगर सरकार दूरदर्शिता का परिचय देती तो इसी धनराशि से उन सभी विद्यार्थियों को फोन उपलब्ध करवाए जा सकते थे जो लगभग डेढ़ साल से साधन विहीनता के कारण पढ़ाई से वंचित हैं. सरकार से मांग है कि इन झूठे आंकड़ों से खेलना बंद करे और मुद्दे की संवेदनशीलता को समझते हुए उचित पहचान करके हर पात्र विद्यार्थी को फोन और इंटरनेट की सुविधा प्रदान की जाए.

राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान की राशि नहीं हुई इस्तेमाल

इतना ही नहीं ठाकुर ने कहा कि राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के अंतर्गत मिलने वाली करोड़ों रुपए की राशि को भी महामारी के दौरान हर वंचित विद्यार्थी की पढ़ाई सुनिश्चित करने के लिए प्रयोग किया जा सकता था जो नहीं किया गया. हालात यह हो चुके हैं कि एक तो बच्चों के पास साधन नहीं है और ऊपर से अध्यापकों पर ऑनलाइन पढ़ाने का बेतरतीब ढंग का बोझ जिसके कारण अध्यापक भी पढ़ाई के मामले में सहज नहीं हो पा रहे हैं और बच्चों के पास अधिक सुविधाएं नहीं हैं. अध्यापक और छात्र, दोनों ही विपरीत दिशा में जा रहे हैं.

ये भी पढ़ें: कोरोना का कहर: शिमला के IGMC में एक महीने की बच्ची की मौत

बिलासपुर: अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य, पूर्व मंत्री और नयना देवी विधानसभा क्षेत्र से विधायक राम लाल ठाकुर ने कहा है कि महामारी के इस दौर में सरकार की अपरिपक्वता शिक्षा के क्षेत्र में भी साफ झलकी है. महामारी को आए लगभग डेढ़ साल हो चुका है लेकिन अभी भी सरकार और विभाग सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए कोई ठोस नीति बनाने में पूरी तरह नाकाम रही है.

कोरोना काल में सरकार की शिक्षा नीति फेल

राम लाल ठाकुर ने कहा कि हर घर पाठशाला का एक पोर्टल मात्र बना कर गरीब विद्यार्थियों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है. अगर विशेषज्ञों की राय देखी जाए तो भारत में कारोना की तीसरी लहर आ सकती है जिसमे बच्चों पर ज्यादा खतरा होगा. ऐसे में अभी पाठशालाएं खुलना असम्भव है. दूसरी तरफ वंचित वर्ग के छात्रों को मुख्य धारा में जोड़ने के बजाय सरकार झूठे आंकड़ों की जादूगरी में लगी हुई है. सरकारी पाठशालाओं में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चों के अभिभावक मजदूरी, किसानी करके आजीविका कमाते हैं जिनके लिए स्मार्ट फोन रखना और इंटरनेट का खर्च वहन करना लगभग नामुमकिन है.

पहले बच्चों को स्मार्ट फोन और इंटरनेट की सुविधा दें

अगर किसी के पास स्मार्ट फोन है भी, तो दो या तीन बच्चे उस एक फोन पर से ही अपना गृहकार्य कर रहे हैं जो असफल है. अध्यापकों द्वारा पोर्टल पर से लिंक प्रतिदिन विद्यार्थियों को भेज दिया जाता है जिसे सिर्फ वही बच्चे देख पाते हैं जिनके पास स्मार्ट फोन और इंटरनेट की सुविधा है. स्कूल मुखियाओं को बार-बार यह अव्यावहारिक से आदेश दिए जाते हैं कि वह इस बात को सुनिश्चित करें कि कोई भी विद्यार्थी पढ़ाई से वंचित न रहे लेकिन सुविधाओं के अभाव में वह किस प्रकार ऐसा करेंगे, इस बात को जवाब शायद उनके पास भी नहीं है. मजाक का आलम यह है पांचवीं-छठी कक्षा के विद्यार्थियों को नोट्स पहुंचाने तक के आदेश आए दिन अखबारों के माध्यम से पढ़ने को मिलते हैं.

स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को नोट्स देने का भद्दा मजाक

सरकार में बैठे नुमाइंदों को यह समझना पड़ेगा कि बच्चे स्कूलों में पढ़ रहे हैं न कि किसी विश्वविदयालय से डॉक्ट्रेट की उपाधि लेने जा रहे हैं. नासमझी की पराकाष्ठा ही है कि बंद पड़े स्कूलों को सेनेटाइजेशन के नाम पर करोड़ों रुपए जारी किए गए हैं. कोरोना काल में पानी की बोतलें बच्चों को बांटी जा रही हैं. अगर सरकार दूरदर्शिता का परिचय देती तो इसी धनराशि से उन सभी विद्यार्थियों को फोन उपलब्ध करवाए जा सकते थे जो लगभग डेढ़ साल से साधन विहीनता के कारण पढ़ाई से वंचित हैं. सरकार से मांग है कि इन झूठे आंकड़ों से खेलना बंद करे और मुद्दे की संवेदनशीलता को समझते हुए उचित पहचान करके हर पात्र विद्यार्थी को फोन और इंटरनेट की सुविधा प्रदान की जाए.

राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान की राशि नहीं हुई इस्तेमाल

इतना ही नहीं ठाकुर ने कहा कि राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के अंतर्गत मिलने वाली करोड़ों रुपए की राशि को भी महामारी के दौरान हर वंचित विद्यार्थी की पढ़ाई सुनिश्चित करने के लिए प्रयोग किया जा सकता था जो नहीं किया गया. हालात यह हो चुके हैं कि एक तो बच्चों के पास साधन नहीं है और ऊपर से अध्यापकों पर ऑनलाइन पढ़ाने का बेतरतीब ढंग का बोझ जिसके कारण अध्यापक भी पढ़ाई के मामले में सहज नहीं हो पा रहे हैं और बच्चों के पास अधिक सुविधाएं नहीं हैं. अध्यापक और छात्र, दोनों ही विपरीत दिशा में जा रहे हैं.

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