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58 साल का हो गया नया बिलासपुर शहर, विस्थापन का दर्द आज भी अपने जहन में लिए घूम रहे बुजुर्ग

नया बिलासपुर शहर आज 58 वर्षों का हो गया है. भाखड़ा बांध की खातिर विस्थापितों ने अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया था लेकिन विस्थापितों का दर्द आज भी बिल्कुल वैसा ही है. वहीं, सरकारें विस्थापितों को लेकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रही हैं.

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Published : Aug 9, 2019, 1:58 PM IST

गोबिंदसागर झील

बिलासपुर: जिला बिलासपुर का नया शहर आज का 58 साल का हो गया है. लेकिन एक तरफ देश में भाखड़ा बांध बनने की खुशी तो दूसरी तरफ विस्थापितों का दुख जिन्होंने बांध की खातिर अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया था.
देश को रोशन करने की खातिर अपना सब कुछ बलिदान करने वाले भाखड़ा विस्थापित बुजुर्ग आज भी जल समाधि लेते पुराने ऐतिहासिक शहर के उन पलों को नहीं भूला पाए हैं.


पुराने ऐतिहासिक शहर के 9 अगस्त 1961 को जल समाधि लेने के बाद झील किनारे नए शहर का निर्माण किया गया था. लंबा समय बीतने के बाद आज भी भाखड़ा विस्थापित अपने झील में समाए उजड़े हुए आशियानों को याद कर सिहर उठते हैं.

वीडियो


प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के जिस भाखड़ा बांध को देश का आधुनिक मंदिर बताया था, उस आधुनिक मंदिर के निर्माण के लिए ऐतिहासिक नगर की कुर्बानी दी गई थी.


ग्रामीण भाखड़ा विस्थापित समिति के अध्यक्ष देशराज शर्मा का कहना है कि देश के पहले प्रधानमंत्री ने ऐलान किया था कि विस्थापितों को इतनी सुविधाएं दी जाएंगी कि वे अपने विस्थापन के दर्द को भूल जाएंगे, लेकिन सरकारों ने केवल राजनीतिक रोटियां सेंकी हैं. उन्होंने बताया कि इस शहर का डूबना एक संस्कृति का जलमग्न होना भी था.


गोबिंदसागर झील में कहलूर रियासत का रंग महल व नया महल ही नहीं डूबे, बल्कि उनसे भी पुराने महल शिखर शैली ने 99 मंदिर, स्कूल, कालेज, पंचरुखी नालयां का नौण, दंडयूरी, बांदलिया, गोहर बाजार, सिक्खों का मुड में गुरूथान, गोपालजी मंदिर और कचहरी परिसर भी डूब गया था.


09 अगस्त 1961 को पहली बार भाखड़ा बांध का जलस्तर बढ़ा, तो बिलासपुर का पुराना शहर डूबता चला गया. जलमग्न होने से बिलासपुर के 354 गांव, 12 हजार परिवार और 52 हजार लोग विस्थापित हुए थे.

बिलासपुर: जिला बिलासपुर का नया शहर आज का 58 साल का हो गया है. लेकिन एक तरफ देश में भाखड़ा बांध बनने की खुशी तो दूसरी तरफ विस्थापितों का दुख जिन्होंने बांध की खातिर अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया था.
देश को रोशन करने की खातिर अपना सब कुछ बलिदान करने वाले भाखड़ा विस्थापित बुजुर्ग आज भी जल समाधि लेते पुराने ऐतिहासिक शहर के उन पलों को नहीं भूला पाए हैं.


पुराने ऐतिहासिक शहर के 9 अगस्त 1961 को जल समाधि लेने के बाद झील किनारे नए शहर का निर्माण किया गया था. लंबा समय बीतने के बाद आज भी भाखड़ा विस्थापित अपने झील में समाए उजड़े हुए आशियानों को याद कर सिहर उठते हैं.

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प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के जिस भाखड़ा बांध को देश का आधुनिक मंदिर बताया था, उस आधुनिक मंदिर के निर्माण के लिए ऐतिहासिक नगर की कुर्बानी दी गई थी.


ग्रामीण भाखड़ा विस्थापित समिति के अध्यक्ष देशराज शर्मा का कहना है कि देश के पहले प्रधानमंत्री ने ऐलान किया था कि विस्थापितों को इतनी सुविधाएं दी जाएंगी कि वे अपने विस्थापन के दर्द को भूल जाएंगे, लेकिन सरकारों ने केवल राजनीतिक रोटियां सेंकी हैं. उन्होंने बताया कि इस शहर का डूबना एक संस्कृति का जलमग्न होना भी था.


गोबिंदसागर झील में कहलूर रियासत का रंग महल व नया महल ही नहीं डूबे, बल्कि उनसे भी पुराने महल शिखर शैली ने 99 मंदिर, स्कूल, कालेज, पंचरुखी नालयां का नौण, दंडयूरी, बांदलिया, गोहर बाजार, सिक्खों का मुड में गुरूथान, गोपालजी मंदिर और कचहरी परिसर भी डूब गया था.


09 अगस्त 1961 को पहली बार भाखड़ा बांध का जलस्तर बढ़ा, तो बिलासपुर का पुराना शहर डूबता चला गया. जलमग्न होने से बिलासपुर के 354 गांव, 12 हजार परिवार और 52 हजार लोग विस्थापित हुए थे.

Intro:स्लग - आज 58 साल का हो गया नया बिलासपुर शहर भाखड़ा बांध की खातिर विस्थापितों ने सब कुछ किया था कुर्बान विस्थापित बुजुर्गों के जेहन में आज भी ताजा है विस्थापन का दर्द
बिलासपुर के 354 गांव, 12 हजार परिवार और 52 हजार लोग उजड़े थेBody:Byte vishulConclusion:स्लग - आज 58 साल का हो गया नया बिलासपुर शहर भाखड़ा बांध की खातिर विस्थापितों ने सब कुछ किया था कुर्बान विस्थापित बुजुर्गों के जेहन में आज भी ताजा है विस्थापन का दर्द
बिलासपुर के 354 गांव, 12 हजार परिवार और 52 हजार लोग उजड़े थे
झील में जलमग्न बिलासपुर शहर पर आधारित यह पंक्तियां विस्थापन के दर्द को बयां करती हैं। जल समाधि के उस लोमहर्षक क्षण को याद करते हुए बुजुर्ग इन्हीं पंक्तियों को गाते हैं। कविता को सुनने के बाद शायद ही कोई ऐसा होगा, जिसकी आंखें नम न हों। देश को रोशन करने की खातिर अपना सब कुछ बलिदान करने वाले भाखड़ा विस्थापित बुजुर्ग आज भी जल समाधि लेते पुराने ऐतिहासिक शहर के उन पलों को नहीं भूला पाए हैं। नया बिलासपुर शहर आज 58 वर्ष का हो गया है
यह शहर कहलूर रियासत की राजधानी थी। कहलूर रियासत के एक महा प्रतापी राजा दलीपचंद ने इस शहर को अपनी राजधानी के रूप में बसाया था। उसने धौलरा में अपने महल बनवाए थे और नीचे की तरफ शहर बसाया था। झील में डूबे उस शहर को लेकर लेखकों, कवियों ने अपनी कलम से बहुत कुछ साहित्य जगत को अर्पित किया है। पुराने ऐतिहासिक शहर के नौ अगस्त 1961 को जल समाधि लेने के बाद झील किनारे नए शहर का निर्माण किया गया था। लंबा समय बीतने के बाद आज भी भाखड़ा विस्थापित अपने झील में समाए उजड़े हुए आशियानों को याद कर सिहर उठते हैं। जलमग्र होने से बिलासपुर के 354 गांव, 12 हजार परिवार और 52 हजार लोग उजड़े थे। शहर के वरिष्ठ नागरिकों दिलबर सिंह के मुताबिक अगर आज भी वही पुराना शहर होता, तो यहां का नजारा कुछ और ही होता। वे गलियां वे चौबारे जहां सांझ के समय दोस्त इक_ा होकर दिन भर की बातें साझा करते थे। आज भी चामडू के कुएं और पंचरुखी का मीठा जल याद आता है। गोपाल मंदिर के भीतर वकील चित्रकार के दुर्लभ चित्रों को वे कभी भूला ही नहीं पाए हैं। दिवंगत विधायक पंडित दीनानाथ ने उस समय की स्थिति का वर्णन अपनी कविता नौ अगस्त की शाम में बड़े मार्मिक ढंग से किया है। प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के जिस भाखड़ा बांध को देश का आधुनिक मंदिर बताया था, उस आधुनिक मंदिर के निर्माण के लिए ऐतिहासिक नगर की कुर्बानी दी गई थी। ग्रामीण भाखड़ा विस्थापित समिति के अध्यक्ष देशराज शर्मा का कहना है कि देश के पहले प्रधानमंत्री ने ऐलान किया था कि विस्थापितों को इतनी सुविधाएं दी जाएंगी कि वे अपने विस्थापन के दर्द को भूल जाएंगे, लेकिन सरकारों ने केवल राजनीतिक रोटियां की सेंकी हैं उन्होंने बताया कि इस शहर का डूबना एक संस्कृति का डृूबना था। गोबिंदसागर झील में कहलूर रियासत का रंग महल व नया महल ही नहीं डूबे, बल्कि उनसे भी पुराने महल शिखर शैली ने 99 मंदिर, स्कूल, कालेज, पंचरुखी नालयां का नौण, दंडयूरी, बांदलिया, गोहर बाजार, सिक्खों का मुड में गुरूथान, गोपालजी मंदिर और कचहरी परिसर भी डूबआ। नौ अगस्त 1961 को पहली बार भाखड़ा बांध का जलस्तर बढ़ा, तो बिलासपुर का पुराना शहर डूबता चला गया

Byte दिलबर सिंह बिलासपुर नगरवासि
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