बिलासपुर: जिला बिलासपुर का नया शहर आज का 58 साल का हो गया है. लेकिन एक तरफ देश में भाखड़ा बांध बनने की खुशी तो दूसरी तरफ विस्थापितों का दुख जिन्होंने बांध की खातिर अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया था.
देश को रोशन करने की खातिर अपना सब कुछ बलिदान करने वाले भाखड़ा विस्थापित बुजुर्ग आज भी जल समाधि लेते पुराने ऐतिहासिक शहर के उन पलों को नहीं भूला पाए हैं.
पुराने ऐतिहासिक शहर के 9 अगस्त 1961 को जल समाधि लेने के बाद झील किनारे नए शहर का निर्माण किया गया था. लंबा समय बीतने के बाद आज भी भाखड़ा विस्थापित अपने झील में समाए उजड़े हुए आशियानों को याद कर सिहर उठते हैं.
प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के जिस भाखड़ा बांध को देश का आधुनिक मंदिर बताया था, उस आधुनिक मंदिर के निर्माण के लिए ऐतिहासिक नगर की कुर्बानी दी गई थी.
ग्रामीण भाखड़ा विस्थापित समिति के अध्यक्ष देशराज शर्मा का कहना है कि देश के पहले प्रधानमंत्री ने ऐलान किया था कि विस्थापितों को इतनी सुविधाएं दी जाएंगी कि वे अपने विस्थापन के दर्द को भूल जाएंगे, लेकिन सरकारों ने केवल राजनीतिक रोटियां सेंकी हैं. उन्होंने बताया कि इस शहर का डूबना एक संस्कृति का जलमग्न होना भी था.
गोबिंदसागर झील में कहलूर रियासत का रंग महल व नया महल ही नहीं डूबे, बल्कि उनसे भी पुराने महल शिखर शैली ने 99 मंदिर, स्कूल, कालेज, पंचरुखी नालयां का नौण, दंडयूरी, बांदलिया, गोहर बाजार, सिक्खों का मुड में गुरूथान, गोपालजी मंदिर और कचहरी परिसर भी डूब गया था.
09 अगस्त 1961 को पहली बार भाखड़ा बांध का जलस्तर बढ़ा, तो बिलासपुर का पुराना शहर डूबता चला गया. जलमग्न होने से बिलासपुर के 354 गांव, 12 हजार परिवार और 52 हजार लोग विस्थापित हुए थे.