बिलासपुर: ग्लोबल वार्मिंग के इस दौर में पक्षियों के व्यवहार में आए बदलाव पर पहाड़ी राज्य हिमाचल में किए जा रहे शोध में जेएंडके में पाए जाने वाले पक्षी की पहचान की गई है. 40 साल के अंतराल के बाद फ्लाईकैचर ग्रुप का यूरेशियन सिसकियन स्पाईनस (Eurasian Siskin Spinus species Bird) नामक यह पक्षी हिमाचल में देखा गया (Bird found in Jammu and Kashmir) है. रिसर्च का यह अहम प्रोजेक्ट नेशनल मिशन ऑफ हिमालयन स्टडी अल्मोड़ा उत्तराखंड की ओर से राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय बिलासपुर के जूलॉजी विज्ञान विभाग को सौंपा गया है.
ये कॉलेज हिमाचल प्रदेश का पहला ऐसा कॉलेज है जहां तीन साल तक वर्ड फ्लाई कैचर ग्रुप (उड़ते-उड़ते कीट पतंगें खाने वाला पक्षियों का समूह) पर रिसर्च की जा रही है और इस शोध के परिणाम के आधार पर ही संस्थान अगली कार्ययोजना तैयार करेगा. बिलासपुर कॉलेज में जूलॉजी विज्ञान विभाग केएसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कुलदीप बरवाल ने बताया कि 2020-23 तक चलने वाले इस प्रोजेक्ट के वे प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर (पीआई) हैं. उनके मार्गदर्शन में केरला के स्कॉलर पॉलपाल रिसर्च कर रहे हैं.
इन जिलों में हो रहा शोध कार्य: रिसर्च के लिए मंडी, बिलासपुर, कुल्लू सहित लाहौल स्पीति को चुना गया है. एक साल तक केरल के स्कॉलर ने बिलासपुर की बंदलाधार, झंडूता व घुमारवीं में शोध किया है. जबकि अब कुल्लू जिले में शोध कार्य चल रहा है. उन्होंने बताया कि कुल्लू के ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के आसपास जेएंडके में पाया जाने वाला पक्षी देखा गया है. उन्होंने बताया कि कई पक्षी रेजिडेंट होते हैं तो कई माइग्रेटरी.
चार दशक पहले यह पक्षी हिमाचल में होता था, लेकिन एक लंबी समयावधि बाद यह पक्षी प्रदेश में देखा गया है. ऐसे में यह शोध कार्य 2023 तक चलेगा और इसमें जो भी परिणाम सामने आएंगे उसकी एक रिपोर्ट कॉलेज प्रशासन, वन विभाग और नेशनल मिशन ऑफ हिमालयन स्टडी अल्मोड़ा (National Mission of Himalayan Study Almora) को प्रेषित की जाएगी. जिसके बाद आगे की कार्ययोजना को अंतिम रूप दिया जाएगा.
प्रोजेक्ट के लिए लाखों का बजट जारी: दरअसल, यह शोध कार्य क्लाइमेट चेंज की वजह से बढ़ते तपमान और पक्षियों पर पड़ रहे इसके असर को देखने के लिए किया जा रहा है. डॉ. कुलदीप बरवाल के अनुसार नेशनल मिशन ऑफ हिमालयन स्टडी अल्मोड़ा संस्थान इस प्रोजेक्ट की फंडिंग एजेंसी है और इस प्रोजेक्ट के लिए 39,90,160 रुपए का बजट जारी हुआ है. उन्होंने बताया कि पंजाब यूनिवर्सिटी से एक और अमेटी यूनिवर्सिटी नोएडा से दो शिक्षकों इस शोध कार्य में सहयोगी के तौर पर काम कर रहे हैं. जबकि जूलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया (जैडएसआई) कोलकाता के एक्सपर्ट भी इस कार्य से जुड़े हुए हैं. जिनसे समय-समय पर रिसर्च से संबंधित इनपुट लिए जाते हैं.
पक्षियों के व्यवहार पर हो रहा शोध: उन्होंने बताया कि रिसर्च की एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार होगी, जिसे नेशनल मिशन ऑफ हिमालयन स्टडी को प्रेषित किया जाएगा और एक रिपोर्ट वाईल्ड लाईफ शिमला को भी सौंपी जाएगी. बरवाल ने बताया कि अगले तीन सालों तक ग्लोबल वार्मिंग के असर की वजह से पक्षियों के व्यवहार में आए बदलाव पर शोध कार्य पूरा किया जाएगा. क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग के चलते वर्तमान में पक्षी जल्दी-जल्दी अपने ठिकाने बदल रहे हैं.
जहां उन्हें अपनी पसंद का वातावरण मिलता है, वह वहीं पर डेरा जमा लेते हैं और कुछ ही समय बाद अगले पड़ाव की ओर निकल लेते हैं. रिसर्च के दौरान यह भी देखा जाएगा कि पक्षी पहले किस सीजन में अंडे देते थे व प्रजनन काल क्या रहता था. जबकि अब क्या क्या परिवर्तन आया है. इन तमाम बिंदुओं को आधार बनाकर एक विस्तृत रिसर्च रिपोर्ट तैयार की जाएगी.
ये भी पढ़ें: आउटसोर्स कर्मियों को खुश करेगी जयराम सरकार, 30 हजार कर्मियों को मंगल के दिन आएगी मंगलकारी खबर