सोलन: महाशिवरात्रि का पावन पर्व कल मंगलवार को पूरे देश में बड़े ही धुमधाम से मनाया जाएगा. महाशिवरात्रि शिव भक्तों के लिए बेहद खास होता है. भगवान शंकर का जिक्र हो तो ऐसा नहीं हो सकता कि हिमाचल की बात ना की जाए. देवभूमि हिमाचल भगवान शिव का ससुराल माना जाता है तो चलिए आज बात करते हैं, हिमाचल प्रदेश के ऐसे मंदिर की जहां भक्तों द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग पर सिगरेट अर्पित की जाती है. यह लोगों की आस्था है जो हजारों सालों से आज तक चलती आ रही है.
आप लोगों ने आज तक शिवलिंग पर फूल, बेलपत्र और दूध चढ़ते हुए जरूर सुना होगा, लेकिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग पर सिगरेट भी चढ़ाई जाती है. सुनने में भले ही अजीब लगे मगर महादेव के भक्त तो यही मानते हैं, हम बात कर रहे हैं, हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन के अर्की तहसील में स्थित लुटरू महादेव मंदिर (LUTRU MAHADEV ARKI) की. पहाड़ियों पर प्राकृतिक सुंदरता के बीच स्थित इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां दर्शन करने के लिए आने वाले सभी भक्त भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग को सिगरेट अर्पित करते हैं.
शिवलिंग पर सिगरेट अर्पित करने के बाद उसे कोई सुलगाता नहीं है बल्कि वह खुद-ब-खुद सुलगती है, बकायदा सिगरेट से धुआं भी निकलता है मानो स्वयं भोले बाबा सिगरेट के कश लगा रहे हो, हालांकि कुछ लोग इसे अंधविश्वास भी करार देते हैं, लेकिन भोले के भक्तों के लिए तो यह शिव की महिमा है, आखिर भक्त और भगवान को विश्वास ही तो जोड़ता है.
विष का प्रभाव कम करने के लिए देवताओं ने भी चढ़ाया था भगवान शंकर पर जल: शिवरात्रि में भगवान शिव का जलाभिषेक करने की परंपरा देवी देवताओं के समय से चलती आ रही है. मान्यता के अनुसार जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन चल रहा था तब समुद्र से विष का घड़ा (Maha shivratri 2022) निकला. लेकिन इस घड़े को ना ही देवता और ना ही असूर लेने को तैयार हो रहे थे, तब विष के प्रभाव को खत्म करने के लिए और समस्त लोकों की रक्षा करते हुए भगवान शंकर ने इस विष का पान किया था. विष के प्रभाव से भगवान शिव का ताप बढ़ता जा रहा था तब सभी देवताओं ने विष के प्रभाव को कम करने के लिए भगवान शंकर पर जल चढ़ाना शुरू कर दिया था. तब से लेकर आज तक सावन के महीने में भगवान शिव का जलाभिषेक करने की परंपरा चली आ रही है.
1621 में हुआ था मंदिर का निर्माण: आपको बता दें बाघल रियासत के राजा को भगवान शंकर ने सपने में आकर मंदिर बनाने के आदेश दिए थे. जिसके बाद लुटरू महादेव मंदिर का निर्माण 1621 में करवाया गया था कहा जाता है कि, बाघल रियासत के तत्कालीन राजा को भोलेनाथ ने सपने में दर्शन देकर मंदिर निर्माण का आदेश दिया था. एक मान्यता यह भी है कि स्वयं भगवान शिव कभी इस गुफा में रहे थे. आग्रेय चट्टानों से निर्मित इस गुफा की लंबाई पूर्व से पश्चिम की तरफ लगभग 25 फीट और उत्तर से दक्षिण की ओर 42 फीट है गुफा की ऊंचाई तल से 6 फीट से 30 फीट तक है गुफा के अंदर भाग में प्राचीन प्राकृतिक शिव की पिंडी विद्यमान है.
मंदिर के पुजारी की माने तो लुटरू महादेव मंदिर बेहद ही पुराना है और सतयुग से है. उन्होंने बताया कि ये अगस्त्य मुनि की तपोस्थली है, वे यहां तपस्या किया करते थे. उन्होंने बताया कि जब पृथ्वी को स्थापित किया जा रहा था तो, समुद्र को शांत कराने के लिए बहुत प्रयत्न किए गए, उसके बाद भोले बाबा ने यहां आकर अगस्त्यमुनि को यहां आकर दर्शन दिए और कहा कि आप समुद्र को शांत करवाये ताकि पृथ्वी स्थापित हो (STORY OF LUTRU MAHADEV) सके. उन्होंने बताया कि सिगरेट चढ़ाने का महत्व बेहद ही पुराना है और यहीं लोगों को यहां खींचा चला लेकर आता है. शिवरात्रि के दिन यहां बिशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है, वहीं दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं.
लुटरू महादेव मंदिर की विशेषताएं: लुटरू महादेव मंदिर में सदियों से शिवलिंग को सिगरेट पिलाई जा रही है भक्त इसे चमत्कार मानते हैं, तो कुछ लोग इसे विज्ञान की कसौटी पर परखने की कोशिश करते हैं. यहां सच में ऐसा होता रहा है. लुटरू महादेव मंदिर में स्थापित शिवलिंग भी अपने आप में बेहद अनोखा है, शिवलिंग पर जगह-जगह गड्ढे बने हुए हैं इन्हीं गड्ढों में लोग सिगरेट को फंसा देते हैं. लुटरू महादेव गुफा की छत में परतदार चट्टानों के रूप में भिन्न-भिन्न लंबाइयों के छोटे-छोटे गाय के थनों के आकार के शिवलिंग है मान्यता के अनुसार इनसे कभी दूध की धारा बहती थी. शिवलिंग के ठीक ऊपर एक गुफा पर छोटा सा गाय के थन के जैसा एक शिवलिंग बना है, जहां से पानी की एक-एक बूंद ठीक शिवलिंग के ऊपर गिरती रहती है.
लुटरू गुफा को भगवान परशुराम की कर्म स्थली भी कहा जाता है, पौराणिक कथाओं की मानें तो सहस्त्रबाहु का वध करने के बाद भगवान परशुराम ने यहा भगवान शिव की आराधना की थी. पंजाब के चमकौर साहिब के शिव मंदिर के महात्मा शीलनाथ भी करीब चार दशक पूर्व महादेव में आराधना करते थे. शिवलिंग पर जलते हुए सिगरेट के अद्भुत नजारों को देखने के बाद लोग इसे कैमरे में कैद करने से खुद को नहीं रोक पाते हैं, और ऐसा करने पर कोई पाबंदी भी नहीं है.
वर्ष 1982 में केरल राज्य में जन्मे महात्मा सनमोगानन्द सरस्वती जी महाराज लुटरू महादेव मंदिर में पधारे आज भी उनकी समाधि यहां बनी हुई है. गुफा के नीचे दूरदराज से आने वाले भक्तों के लिए धर्मशाला भी बनाई गई है. शिव की लीला शिव ही जाने भोलेनाथ शिव शंकर की लीला तो वे स्वयं ही जानते हैं किंतु लुटरू महादेव मंदिर में शिवलिंग का सिगरेट पीना है, किसी अचंभे से कम नहीं है, यदि वैज्ञानिक कारण भी है तो ऐसा सिर्फ शिवलिंग पर सिगरेट चढ़ाने से ही क्यों होता है , ना भक्तों की आस्था पर कोई प्रश्न है ना ही शिव की महिमा पर. अब ऐसा क्यों होता है और कैसे होता है यह तो स्वयं शिव ही जाने. हालांकि ETV BHARAT इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता है. यह एक पौराणिक मान्यता है जो दशकों से चली आ रही है.
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