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हिमाचल में सवर्ण समाज और सामान्य वर्ग आयोग की चर्चा, रुमित ठाकुर बन रहे टॉक ऑफ दि टाउन

हिमाचल की राजनीति में राजपूत समुदाय का दबदबा रहा है. पहाड़ी राज्य में सवर्ण समाज के लोगों की संख्या सबसे अधिक है, लेकिन कुछ समय से सवर्ण समाज अपनी अनदेखी को लेकर नाराज चल रहा था. सवर्ण समाज के लोगों व संगठनों ने उस समय विधानसभा का जोरदार घेराव किया था और सीएम जयराम ठाकुर के रैली में आकर सामान्य वर्ग आयोग की मांग को स्वीकार करना पड़ा था. आइए, समझते हैं कि आखिर क्या है सवर्ण समाज का आंदोलन और कैसे ये हिमाचल की सियासत को प्रभावित करने की क्षमता रखता है.

Rajput community in Himachal politics
फोटो.
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Published : Feb 7, 2022, 7:21 PM IST

शिमला: सवर्ण आयोग के गठन को लेकर राज्य सरकार पर लगातार हमला बोल रहे देवभूमि क्षत्रिय संगठन के प्रदेशाध्यक्ष रुमित ठाकुर को दलित शोषण मुक्ति मोर्चा की शिकायत पर नाहन पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद से ही सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया शुरू हो गई है. बता दें कि बीते शनिवार को दलित शोषण मुक्ति मंच सिरमौर ने एसपी सिरमौर को एक ज्ञापन में कुछ बिंदुओं का हवाला देकर देवभूमि क्षत्रिय संगठन के प्रदेश अध्यक्ष रुमित सिंह ठाकुर के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी. जिसके बाद सोमवार को सवर्ण समाज के लोग व संगठन एकजुट हो गए.

हिमाचल, सवर्ण और मौजूदा स्थिति- हिमाचल प्रदेश में सत्ता की कमान अधिकांश रूप से सवर्णों के पास ही रही है. प्रदेश की आबादी में सबसे बड़ा हिस्सा सवर्णों का ही है. जिसकी बदौलत राजनीति में इनका दबदबा रहा है खासकर हिमाचल की सियासत में राजपूतों का दबदबा रहा है. लेकिन इसके बावजूद कुछ समय से सवर्ण समाज से जुड़े लोग सरकार पर अपनी अनदेखी का आरोप लगाते हुए नाराज थे. हिमाचल प्रदेश में क्षत्रिय संगठन के बैनर तले रुमित सिंह ठाकुर ने एक अभियान चलाया और धर्मशाला में शीतकालीन सत्र के दौरान सरकार को सवर्ण समाज की मांग पर झुकना पड़ा. तब रातों-रात हिमाचल सरकार ने सामान्य वर्ग आयोग के गठन की अधिसूचना जारी की थी.

सवर्णों का आंदोलन: सवर्ण समाज के लोगों व संगठनों ने उस समय विधानसभा का जोरदार घेराव किया था और सीएम जयराम ठाकुर के रैली में आकर सामान्य वर्ग आयोग की मांग को स्वीकार करना पड़ा था. क्योंकि सवर्ण हिमाचल की सियासत को सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं इसलिये सरकार ने ये कदम उठाया. दरअसल हिमाचल प्रदेश में पिछले साल अक्टूबर महीने में देवभूमि क्षत्रिय संगठन और देवभूमि सवर्ण मोर्चा ने आंदोलन शुरू किया. उस समय शिमला से हरिद्वार तक 800 किलोमीटर लंबी पदयात्रा निकालने का ऐलान हुआ. इस दौरान आरक्षण की शव यात्रा निकाली गई और हरिद्वार में उस यात्रा का सांकेतिक रूप से संस्कार किया गया.

सवर्ण समाज किसी जाति विशेष के खिलाफ नहीं: देवभूमि क्षत्रिय संगठन के अध्यक्ष रुमित सिंह ठाकुर का कहना है कि सवर्ण समाज को कई मामलों में झूठ में फंसाया जाता है. एससी-एसटी एक्ट का दुरुपयोग भी होता है, जिस पर सभी खामोश रहते हैं. सवर्ण समाज किसी जाति विशेष के खिलाफ नहीं है, लेकिन उक्त समाज की परेशानियों पर कोई ध्यान नहीं देता है. करीब 73 फीसदी जनसंख्या सवर्ण समाज की है, लेकिन उन्हें समानता (Swarn Samaaj in Himachal) के अधिकार से वंचित किया जाता रहा है. सामान्य वर्ग में भी आर्थिक रूप से कमजोर लोग हैं और उन्हें किसी भी मंच पर कोई सहायता नहीं मिलती. आरक्षण के कारण सवर्ण समाज के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का हक मारा जाता है. उल्लेखनीय है कि देश में मध्य प्रदेश में सबसे पहले ऐसा आयोग गठित हुआ था.

उपचुनाव में नोटा से हुआ था बीजेपी को नुकसान: दरअसल पिछली दफा चार सीटों पर उपचुनाव में सरकार पर अनदेखी का आरोप लगाकर नोटा दबाने की अपील हुई. कई जगह देखा गया कि नोटा ने भाजपा को भारी नुकसान पहुंचाया है. फिर दिसंबर 2021 में विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सवर्ण समाज का आंदोलन चरम पर पहुंच गया. हजारों लोगों ने विधानसभा का घेराव किया. सीएम जयराम ठाकुर को मांगें माननी पड़ी और रातों-रात अधिसूचना भी जारी हो गई. इसपर जमकर सियासत भी हुई.

कभी दलित सीएम नहीं बना: हिमाचल प्रदेश का सियासी इतिहास देखें तो अब तक सभी मुख्यमंत्री सवर्ण समाज के रहे हैं. इनमें से भी राजपूत समुदाय के सीएम (CM of Rajput community in HP) सबसे अधिक रहे. केवल शांता कुमार ब्राह्मण समाज से हैं. इसके अलावा कैबिनेट में ज्यादातर चेहरे भी सवर्ण ही रहते हैं. दरअसल प्रदेश की आबादी में 50 फीसदी से अधिक सवर्ण हैं. प्रदेश में अब तक छह सीएम हुए हैं. पांच सीएम वाईएस परमार, रामलाल ठाकुर, वीरभद्र सिंह, प्रेम कुमार धूमल, जयराम ठाकुर राजपूत समुदाय से आते हैं. वीरभद्र सिंह छह बार और प्रेम कुमार धूमल, रामलाल ठाकुर दो-दो बार मुख्यमंत्री रहे. राजपूत समुदाय का प्रभाव मंडी, शिमला, कुल्ली और कांगड़ा के कई क्षेत्रों में है. कांग्रेस-बीजेपी के प्रदेश अध्यक्षों की बात करें तो बीजेपी के अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप राठौर राजपूत समुदाय से हैं.

जनगणना 2011 के मुताबिक- साल 2011 की जनगणना (himachal census 2011) के मुताबिक हिमाचल में 50 फीसदी से अधिक आबादी सवर्ण है. 50.72 फीसदी इस आबादी में सबसे ज्यादा 32.72 फीसदी राजपूत हैं और 18 फीसदी ब्राह्मण, इसके अलावा अनुसूचित जाति की आबादी 25.22% और अनुसूचित जनजाति की आबादी 5.71% है. प्रदेश में ओबीसी 13.52 फीसदी और अल्पसंख्यक 4.83 फीसदी हैं.

2011 की जनगणना के अनुसार हिमाचल की आबादी 68 लाख 56 हजार 509 है. इसके अलावा अनुसूचित जाति की आबादी 17 लाख 29 हजार 252 (25.22%) अनुसूचित जनजाति की आबादी 3 लाख 92 हजार 126 (5.71%) ओबीसी 9 लाख 27 हजार 452 (13.52%) हैं. जबकि कुल आबादी में से 50.72 प्रतिशत सवर्ण और अल्पसंख्यक 4.83 प्रतिशत हैं. सवर्ण जातियों में राजपूत 32.72 प्रतिशत, ब्राह्मण 18 प्रतिशत हैं.

ब्राह्मण समुदाय भी किंगमेकर की भूमिका में: जनसंख्या को देखते हुए राजपूत और एससी समुदाय के बाद ब्राह्मण समुदाय भी हिमाचल की राजनीति में किंगमेकर की भूमिका में है. ब्राह्मण समाज ने प्रदेश को कई कद्दवार नेता दिए. कांगड़ा से शांता कुमार दो प्रदेश के सीएम बने. पंडित सुखराम से लेकर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी बीजेपी के बड़े ब्राह्मण चेहरों में शुमार हैं.

ये भी पढ़ें- रुमित सिंह ठाकुर गिरफ्तारी मामला: रिहा होते ही सरकार और पुलिस प्रशासन को दिया ये अल्टीमेटम

शिमला: सवर्ण आयोग के गठन को लेकर राज्य सरकार पर लगातार हमला बोल रहे देवभूमि क्षत्रिय संगठन के प्रदेशाध्यक्ष रुमित ठाकुर को दलित शोषण मुक्ति मोर्चा की शिकायत पर नाहन पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद से ही सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया शुरू हो गई है. बता दें कि बीते शनिवार को दलित शोषण मुक्ति मंच सिरमौर ने एसपी सिरमौर को एक ज्ञापन में कुछ बिंदुओं का हवाला देकर देवभूमि क्षत्रिय संगठन के प्रदेश अध्यक्ष रुमित सिंह ठाकुर के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी. जिसके बाद सोमवार को सवर्ण समाज के लोग व संगठन एकजुट हो गए.

हिमाचल, सवर्ण और मौजूदा स्थिति- हिमाचल प्रदेश में सत्ता की कमान अधिकांश रूप से सवर्णों के पास ही रही है. प्रदेश की आबादी में सबसे बड़ा हिस्सा सवर्णों का ही है. जिसकी बदौलत राजनीति में इनका दबदबा रहा है खासकर हिमाचल की सियासत में राजपूतों का दबदबा रहा है. लेकिन इसके बावजूद कुछ समय से सवर्ण समाज से जुड़े लोग सरकार पर अपनी अनदेखी का आरोप लगाते हुए नाराज थे. हिमाचल प्रदेश में क्षत्रिय संगठन के बैनर तले रुमित सिंह ठाकुर ने एक अभियान चलाया और धर्मशाला में शीतकालीन सत्र के दौरान सरकार को सवर्ण समाज की मांग पर झुकना पड़ा. तब रातों-रात हिमाचल सरकार ने सामान्य वर्ग आयोग के गठन की अधिसूचना जारी की थी.

सवर्णों का आंदोलन: सवर्ण समाज के लोगों व संगठनों ने उस समय विधानसभा का जोरदार घेराव किया था और सीएम जयराम ठाकुर के रैली में आकर सामान्य वर्ग आयोग की मांग को स्वीकार करना पड़ा था. क्योंकि सवर्ण हिमाचल की सियासत को सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं इसलिये सरकार ने ये कदम उठाया. दरअसल हिमाचल प्रदेश में पिछले साल अक्टूबर महीने में देवभूमि क्षत्रिय संगठन और देवभूमि सवर्ण मोर्चा ने आंदोलन शुरू किया. उस समय शिमला से हरिद्वार तक 800 किलोमीटर लंबी पदयात्रा निकालने का ऐलान हुआ. इस दौरान आरक्षण की शव यात्रा निकाली गई और हरिद्वार में उस यात्रा का सांकेतिक रूप से संस्कार किया गया.

सवर्ण समाज किसी जाति विशेष के खिलाफ नहीं: देवभूमि क्षत्रिय संगठन के अध्यक्ष रुमित सिंह ठाकुर का कहना है कि सवर्ण समाज को कई मामलों में झूठ में फंसाया जाता है. एससी-एसटी एक्ट का दुरुपयोग भी होता है, जिस पर सभी खामोश रहते हैं. सवर्ण समाज किसी जाति विशेष के खिलाफ नहीं है, लेकिन उक्त समाज की परेशानियों पर कोई ध्यान नहीं देता है. करीब 73 फीसदी जनसंख्या सवर्ण समाज की है, लेकिन उन्हें समानता (Swarn Samaaj in Himachal) के अधिकार से वंचित किया जाता रहा है. सामान्य वर्ग में भी आर्थिक रूप से कमजोर लोग हैं और उन्हें किसी भी मंच पर कोई सहायता नहीं मिलती. आरक्षण के कारण सवर्ण समाज के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का हक मारा जाता है. उल्लेखनीय है कि देश में मध्य प्रदेश में सबसे पहले ऐसा आयोग गठित हुआ था.

उपचुनाव में नोटा से हुआ था बीजेपी को नुकसान: दरअसल पिछली दफा चार सीटों पर उपचुनाव में सरकार पर अनदेखी का आरोप लगाकर नोटा दबाने की अपील हुई. कई जगह देखा गया कि नोटा ने भाजपा को भारी नुकसान पहुंचाया है. फिर दिसंबर 2021 में विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सवर्ण समाज का आंदोलन चरम पर पहुंच गया. हजारों लोगों ने विधानसभा का घेराव किया. सीएम जयराम ठाकुर को मांगें माननी पड़ी और रातों-रात अधिसूचना भी जारी हो गई. इसपर जमकर सियासत भी हुई.

कभी दलित सीएम नहीं बना: हिमाचल प्रदेश का सियासी इतिहास देखें तो अब तक सभी मुख्यमंत्री सवर्ण समाज के रहे हैं. इनमें से भी राजपूत समुदाय के सीएम (CM of Rajput community in HP) सबसे अधिक रहे. केवल शांता कुमार ब्राह्मण समाज से हैं. इसके अलावा कैबिनेट में ज्यादातर चेहरे भी सवर्ण ही रहते हैं. दरअसल प्रदेश की आबादी में 50 फीसदी से अधिक सवर्ण हैं. प्रदेश में अब तक छह सीएम हुए हैं. पांच सीएम वाईएस परमार, रामलाल ठाकुर, वीरभद्र सिंह, प्रेम कुमार धूमल, जयराम ठाकुर राजपूत समुदाय से आते हैं. वीरभद्र सिंह छह बार और प्रेम कुमार धूमल, रामलाल ठाकुर दो-दो बार मुख्यमंत्री रहे. राजपूत समुदाय का प्रभाव मंडी, शिमला, कुल्ली और कांगड़ा के कई क्षेत्रों में है. कांग्रेस-बीजेपी के प्रदेश अध्यक्षों की बात करें तो बीजेपी के अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप राठौर राजपूत समुदाय से हैं.

जनगणना 2011 के मुताबिक- साल 2011 की जनगणना (himachal census 2011) के मुताबिक हिमाचल में 50 फीसदी से अधिक आबादी सवर्ण है. 50.72 फीसदी इस आबादी में सबसे ज्यादा 32.72 फीसदी राजपूत हैं और 18 फीसदी ब्राह्मण, इसके अलावा अनुसूचित जाति की आबादी 25.22% और अनुसूचित जनजाति की आबादी 5.71% है. प्रदेश में ओबीसी 13.52 फीसदी और अल्पसंख्यक 4.83 फीसदी हैं.

2011 की जनगणना के अनुसार हिमाचल की आबादी 68 लाख 56 हजार 509 है. इसके अलावा अनुसूचित जाति की आबादी 17 लाख 29 हजार 252 (25.22%) अनुसूचित जनजाति की आबादी 3 लाख 92 हजार 126 (5.71%) ओबीसी 9 लाख 27 हजार 452 (13.52%) हैं. जबकि कुल आबादी में से 50.72 प्रतिशत सवर्ण और अल्पसंख्यक 4.83 प्रतिशत हैं. सवर्ण जातियों में राजपूत 32.72 प्रतिशत, ब्राह्मण 18 प्रतिशत हैं.

ब्राह्मण समुदाय भी किंगमेकर की भूमिका में: जनसंख्या को देखते हुए राजपूत और एससी समुदाय के बाद ब्राह्मण समुदाय भी हिमाचल की राजनीति में किंगमेकर की भूमिका में है. ब्राह्मण समाज ने प्रदेश को कई कद्दवार नेता दिए. कांगड़ा से शांता कुमार दो प्रदेश के सीएम बने. पंडित सुखराम से लेकर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी बीजेपी के बड़े ब्राह्मण चेहरों में शुमार हैं.

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