शिमला: प्रदेश में प्राकृतिक विधि से खेती कर रहे किसानों की समस्या के समाधान में व्हाट्सएप अहम भूमिका निभा रहा है. प्रदेश में लगभग 6100 किसानों को 100 से अधिक कृषि व्हाट्सएप ग्रुपों से जोड़ा गया है. जिला स्तर पर बने इन ग्रुप में कृषि मंत्री, प्राकृतिक खेती के जनक सुभाष पालेकर और विभाग से सभी आला अधिकारी भी जुड़े हुए हैं. किसान व्हाट्सएप से ही अपनी समस्या को सबके सामने रखते हैं.
प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के कार्यकारी निदेशक प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल ने बताया कि प्रदेश में एक लाख 41 हजार से अधिक किसान प्राकृतिक विधि से खेती कर रहे हैं और करीब 1 लाख बीघा से अधिक जमीन पर इस विधि से खेती की जा रही है. उन्होंने कहा कि जब हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना शुरू की गई तो किसानों के सही मार्गदर्शन की जरूरत महसूस हुई, जिसके बाद किसानों के व्हाट्सएप ग्रुप बनाए गए.
प्रत्येक ग्रुप में प्राकृतिक खेती विधि के जनक सुभाष पालेकर और कृषि मंत्री जुड़े हुए हैं. इसके अलावा ब्लॉक स्तर से लेकर स्टेट लेवल तक विभाग के आला अधिकारी भी ग्रुप में जुड़े हुए हैं, ताकि किसानों की समस्या का तुरंत समाधान हो सके. उन्होंने कहा कि अभी तक 1 लाख 50 हजार किसानों की प्राकृतिक विधि से खेती करने की ट्रेनिंग दी जा चुकी है. इसके लिए पिछले तीन सालों से ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाए जा रहे हैं और करीब 5 हजार ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित किए जा चुके हैं.
प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल ने बताया कि विभाग ने विभिन्न स्तरों पर प्रदेश भर में लगभग 100 से अधिक व्हाट्सएप ग्रुप बनाए हैं. इन ग्रुपों से प्रदेश के लगभग 6100 से अधिक किसानों को अभी तक जोड़ा जा चुका है. विशेषज्ञ इन ग्रुपों के माध्यम से प्राकृतिक खेती की सही जानकारी किसानों को दे रहे हैं. ब्लॉक स्तर पर 90 व्हाट्सएप ग्रुप, जिला स्तर पर 12 ग्रुप और प्रदेश स्तर पर 2 व्हाट्सएप ग्रुप बनाए गए है.
प्रदेश के सभी 90 ब्लॉकों में बनाए गए कृषि ग्रुपों से लगभग 5 हजार, जिला स्तर पर बनाए गए 12 ग्रुपों से लगभग 500 किसानों को जोड़ा गया है, जबकि प्रदेश स्तर पर बनाए गए 2 व्हाट्सएप ग्रुपों से लगभग 1200 किसानों व अधिकारियों को जोड़ा गया है. इसके अलावा प्रत्येक ब्लॉक में तीन अधिकारी और जिला स्तर पर प्रोजेक्ट डायरेक्टर, एसएमएस और डीपीडी की तैनाती भी की गई है, जो लॉकडाउन के दौरान भी किसानों के साथ फोन के माध्यम से लगातार संपर्क में हैं.
इस विधि से खेती करने वाले किसान-बागवान की फसलों को अगर कोई बीमारी लगती है या फिर कोई अन्य परेशानी आती है तो वो फल का फोटो ग्रुप में डालते हैं, जिसके बाद ग्रुप में मौजूद विशेषज्ञ उन्हें तुरंत उपचार का तरीका बता देते हैं. इस प्रकार किसानों की समस्या का तुरंत हल हो जाता है. इसके अलावा प्राकृतिक खेती के संचालन के चार चक्र होते हैं, जिनमें जीवामृत, बीजामृत,आच्छादन और वापसा शामिल हैं. किस समय किसका प्रयोग करना है यह निर्णय करने में भी किसानों को सहायता मिलती है. किसान फसल की फोटो व्हाट्सएप में डालकर अधिकारियों और विशेषज्ञों की राय लेते हैं.
कई बार आसपास के बगीचों से जहां रासायनिक ढंग से खेती हो रही है. वहां कुछ बीमारियां प्राकृतिक विधि से खेती कर रहे किसानों के बगीचे में भी आ जाती है. ऐसी बीमारियों का समाधान भी व्हाट्सएप के माध्यम से ही हो जाता है. किसान फलों या फसलों की फोटो व्हाट्सएप करते है. विशेषज्ञ बीमारी की पहचान करने के बाद किसानों को राय देते हैं कि किस रोगनाशी दवा का प्रयोग इसके लिए उचित रहेगा.
फसलों को बीमारियों से बचाने के लिए प्राकृतिक विधि से बनने वाली दवाओं में छाछ का घोल, जीवामृत, जंगल में सूखी कंडी, सौंठास्त्र, रामबाण रोगनाशी दवा, फफूंदनाशी दवा मुख्य रूप से शामिल है, लेकिन किस दवा का प्रयोग किस बीमारी में होगा इसका उचित निर्णय जरूरी है. यह सुनिश्चित करने में व्हाट्सएप अहम भूमिका निभा रहा है.
व्हाट्सएप ग्रुप से किसानों की फसल और फलों का बेहतर दाम दिलाने में मदद मिल रही है. इससे देश भर की मंडियों में फसलों के दाम और उन मंडियों में प्राकृतिक खेती विधि से तैयार फसलों के दाम के बारे में भी किसानों को समय-समय पर आसानी से अवगत करवाया जा रहा है. अगर किसी किसान को उसके उत्पाद के स्थानीय मंडियों में कम दाम मिल रहे हैं तो उसे आसपास की मंडियों में चल रहे दाम के बारे में भी अवगत करवाया जा सकता है, ताकि किसानों को फसलों का उचित दाम मिल सके.
लॉकडाउन के दौरान इन किसानों ने अपने साथ हजारों नए किसानों को जोड़कर प्रदेश को प्राकृतिक खेती राज्य बनाने की दिशा में कदम आगे बढ़ाएं हैं. प्रदेश में लॉकडाउन के कारण जहां किसानों के लिए मास ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित नहीं हो पा रहे हैं. वहां पर संकट के इस समय में पहले से ही प्राकृतिक खेती कर रहे किसान नए किसानों को न केवल सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती विधि को अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, बल्कि प्राकृतिक खेती करने की विधि के अनेक मॉडल भी किसानों के खेतों में खड़े करवाए हैं.
प्राकृतिक खेती अपनाने वाले नए किसान बताते हैं कि खेती की इस विधि को अपनाने में उन्हें बाजार से कुछ भी खरीद कर लाने की जरूरत नहीं होती है, खेती में प्रयोग होने वाले सभी आदान घर पर और घर के आसपास ही मिल जाते हैं. किसानों की उपज को मंडियों तक पहुंचाने के लिए भी प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के तहत प्रयास किए जा रहे है ताकि किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिल सके.
किसानों को सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती विधि की तकनीक आसान और सरल भाषा में समझ आ सके. इसके लिए विशेष साहित्य भी तैयार किया गया है. प्राकृतिक खेती परियोजना की राज्य कार्यान्वयन इकाई की ओर से प्राकृतिक खेती विधि की तकनीक को लेकर 6 पुस्तकों का संकलन किया गया है. किसान इन पुस्तिकाओं में बताई गई विधि और कृषि सलाह को पढ़कर अपने खेतों में आदानों को प्रयोग कर सके. प्राकृतिक खेती के प्रति किसानों को आकर्षित करने के लिए, प्राकृतिक खेती को अपना चुके सफल किसानों की कहानियों का भी प्रकाशन किया जा रहा है.