शिमला: उपचुनावों में इस बार अपेक्षाकृत कम वोटिंग प्रतिशत रहा है. अगर मंडी संसदीय क्षेत्र की बात करें तो यहां महज 57.7 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. वहीं, अर्की विधानसभा सीट के लिए करीब 65 प्रतिशत रहा. फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र में 66.20 प्रतिशत रहा. हालांकि जुब्बल-कोटखाई में मतदाताओं में खासा उत्साह देखने को मिला. यहां करीब 79 प्रतिशत लोगों ने वोट डाले. उपचुनावों के लिए मतदान शांतपूर्वक संपन्न हो गया. किसी भी स्थान से अप्रिय घटना की कोई सूचना नहीं है. जोगिंद्रनगर में एक स्थान पर मतदाताओं ने चुनाव बहिष्कार की घोषणा की थी, लेकिन बाद में उनकी समस्याओं को सुना गया और उन्हें चुनाव के लिए राजी किया गया. प्रदेश में ननखड़ी से चुनाव बहिष्कार की जानकारी मिली, यहां बूथ नंबर-27 पर किसी मतदाता ने वोट नहीं किया.
देश के सबसे ऊंचाई पर स्थित मतदान केंद्र टाशीगंग में बने मतदान केंद्र पर शत प्रतिशत मतदान हुआ. यहां -16 डिग्री तापमान के बीच सभी 47 लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. यहां स्थानीय लोगों और प्रशासन ने मिलकर मतदान केंद्र को बहुत ही आकर्षक ढंग से सजाया था और लोगों ने पारंपरिक वेशभूषा में आकर अपने मताधिकार का प्रयोग किया. इसके अलावा देश के पहले वोटर श्याम सरण नेगी ने भी अपने मताधिकार का प्रयोग किया. उन्होंने स्वयं पोलिंग बूथ पर पहुंचकर मतदान कर प्रदेश और देश के मतदाताओं को लोकतंत्र के इस पर्व में भाग लेने के लिए प्रेरित भी किया. जिला प्रशासन किन्नौर ने श्याम सरन नेगी को बूथ नंबर 51 तक लाने की पूरी तैयारी की हुई थी. जिला सहायक निर्वाचन अधिकारी व एसडीएम कल्पा स्वाति डोगरा ने बताया कि श्याम सरन नेगी को उनके घर कल्पा से सरकारी वाहन से सम्मानपूर्वक दोपहर बाद बूथ नंबर 51 के आदर्श मतदान केंद्र दो पर लाए गए. यहां गेट पर गाड़ी से उतरकर वह खुद बूथ के अंदर पहुंचे व वोट डाला. श्याम सरन नेगी ने कहा उन्होंने कोई भी चुनाव नहीं छूटने दिया है व हर चुनाव में मतदान किया है.
मंडी संसदीय क्षेत्र में रामपुर क्षेत्र के कुंगल बालटी में बने खौड़ी बूथ नंबर-27 पर स्थानीय लोगों ने मतदान का बहिष्कार किया. इस क्षेत्र पर कोई भी मतदाता वोट डालने नहीं पहुंचा. स्थानीय लोगों ने बताया कि 2017 में भी सरकार और राजनीतिक दलों के सामने समस्याओं को रखा गया था, लेकिन अभी तक किसी ने समस्या का समाधान नहीं किया. इसी कारण से इस बार चुनाव का बहिष्कार किया गया है. अगर स्थानीय समस्याओं का समाधान नहीं किया गया तो आने वाले विधानसभा चुनावों का भी बहिष्कार किया जाएगा. स्थानीय लोगों का कहना है कि क्षेत्र में जो सड़क निकली है वह भी लोगों ने अपने पैसे से निकाली है प्रशासन की तरफ से किसी प्रकार की सहायता नहीं की गई है.
उपचुनावों में सुरक्षा की दृष्टि से इलेक्शन कमीशन ने 48 मतदान केंद्रों के अति संवेदनशील घोषित किया था. साथ ही, 267 मतदान केंद्रों को संवेदनशील घोषित किया गया था. इन सभी मतदान केंद्रों पर पैर मिल्ट्री फोर्स की तैनाती की गई. इसके लिए केंद्र से केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की 6 बटालियन हिमाचल पहुंची थी. प्रदेश के 8 जिलों में अर्धसैनिक बलों के जवानों की नियुक्तियां की गई. बड़े जिलों में 2 बटालियन और छोटे जिलों में एक बटालियन की नियुक्ति की गई.
मंडी संसदीय क्षेत्र में उपचुनाव में इस बार मत प्रतिशत कुछ कम रहा. संसदीय क्षेत्र के सिराज हलके में सबसे अधिक 69.75 प्रतिशत मतदान हुआ. सिराज में कुल 79,991 मतदाताओं में से 55,795 लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. यह मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का अपना विधानसभा क्षेत्र है. यहां उपेक्षाकृत कम मतदान होने से भाजपा समर्थकों की चिंता जरूर बढ़ गई है. इसके अलावा सुंदरनगर हलके में 59.31 प्रतिशत मतदान हुआ. शाम 6 बजे तक यहां कुल 46949 लोगों ने मतदान किया. जोगिंद्रनगर विधानसभा क्षेत्र में 53 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान किया. जोगिंद्रनगर में 50,223 लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया.
मंडी सदर विधानसभा क्षेत्र में 56.65 प्रतिशत मतदान हुआ. यहां 42,163 लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. करसोग विधानसभा क्षेत्र में 55.17 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया. द्रंग विधानसभा क्षेत्र में 59.27 प्रतिशत मतदान रहा. यह भाजपा प्रत्याशी खुशाल ठाकुर का विधानसभा हलका है. कांग्रेस के कद्दावर नेता कौल सिंह ठाकुर भी इसी विधानसभा क्षेत्र से संबंध रखते हैं. सरकाघाट विधानसभा क्षेत्र में 46.72 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट डाला. सरकाघाट विधानसभा क्षेत्र में कुल 88,265 मतदाताओं में से 41,238 लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. बल्ह विधानसभा क्षेत्र में 59.80 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. यह विधानसभा क्षेत्र सदर विधानसभा क्षेत्र के साथ लगता है यहां के कुछ क्षेत्र मंडी नगर निगम का हिस्सा भी हैं. कुल्लू जिले के आनी में 51.42 बंजार में 54.71 कुल्लू में 53.73 और मनाली में 60.28 प्रतिशत मतदान हुआ. इसके अतिरिक्त लाहौल-स्पीति में 53 भरमौर में 49 किन्नौर में 55 और रामपुर में 58 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया.
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मंडी जिले में तकनीकी खराबी के चलते 40 वीवीपैट व कुल्लू जिले में 11 वीवीपैट बदले गए, जबकि किन्नौर में मतदान के लिए 2 कंट्रोल यूनिट तकनीकी खराबी आने के चलते बदले गए. मंडी जिला निर्वाचन अधिकारी अरिंदम चौधरी ने डाक मत पत्रों की प्राप्ति के संबंध में बताया कि अभी तक लगभग 12 हजार के लगभग डाक मतपत्र निर्वाचन कार्यालय में पहुंच चुके हैं, इनमें 8373 डाक मत पत्र 80 वर्ष से अधिक आयु वर्ग, कोरोना संक्रमितों व दिव्यांगों की श्रेणी के हैं जबकि लगभग 2500 डाक मत पत्र सर्विस वोटर्स के हैं. 250 डाक मत पत्र चुनाव प्रक्रिया में लगे कर्मियों के हैं. उन्होंने बताया कि सर्विस वोटरों के डाक मत पत्र मतगणना आरंभ होने की अवधि तक प्राप्त किए जायेंगे.
मंडी संसदीय सीट पर पिछले लोकसभा चुनावों में हुए मतदान पर नजर दौड़ाएं तो वर्ष 2019 में कुल 12,81,462 मतदाताओं में से 9,41,371 ने वोट किया था जो कि 73.46 प्रतिशत था. 2014 को लोकसभा चुनावों में 11,50,408 में से 7,26,482 लोगों ने वोट डाले थे यह कुल वोटों का 63.15 था. इसके पहले 2009 में हुए लोकसभा चुनावों में 64.09 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया. 2004 में भी 62.91 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया था. इस प्रकार पिछले कई चुनावों से मंडी संसदीय सीट पर 62 से 65 फीसदी मतदान ही होता है. केवल पिछली बार 2019 में 73 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ था. सांसद राम स्वरुप शर्मा के निधन के बाद यह सीट खाली हुई है.
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मतदान प्रक्रिया खत्म होने के बाद दोनों ही राजनीतिक दल अपने-अपने प्रत्याशी की जीत का दावा कर रहे हैं, लेकिन यह उपचुनाव हिमाचल में 2022 के विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है. यह चुनाव मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का राजनीतिक भविष्य तय करेंगे. अगले साल हिमाचल में विधानसभा चुनाव हैं. कुल मिलाकर मौजूदा स्थिति यह है कि मुख्यमंत्री पर सबसे अधिक दबाव मंडी लोकसभी सीट को लेकर है. यह मंडी में पार्टी की अस्मिता और मुख्यमंत्री के सियासी कौशल की भी परीक्षा है. यही कारण है कि मुख्यमंत्री का मेन फोकस मंडी लोकसभी सीट पर है यह चुनाव उनके लिए कितनी अहमियत रखता है इसका पता ऐसे लगाया जा सकता है कि खुद जयराम ठाकुर अब तक 15 दिन तक मंडी लोकसभा क्षेत्र के विभिन्न इलाकों में जनसभाएं कर चुके हैं. तर्क दिया जा रहा है कि अर्की और फतेहपुर सीट पहले भी कांग्रेस के पास थी. वहीं जुब्बल-कोटखाई में स्वर्गीय नरेंद्र बरागटा के बेटे चेतन बरागटा के बागी तेवर अपना लेने पर पार्टी मुश्किल में है. ऐसे में फेस सेविंग और हाईकमान के समक्ष 2017 के प्रचंड बहुमत को जस्टिफाई करने के लिए मंडी लोकसभा सीट पर विजय बहुत जरूरी हो गई है.
वहीं, कांग्रेस की स्थिति देखें तो प्रतिभा सिंह सहानुभूति वोटों की आस लगाए हुए है. यदि मंडी सीट पर कोई उलटफेर होता है. तो यह भाजपा और खासकर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के लिए अबतक का सबसे बड़ा सियासी झटका साबित होगा. कारण यह है कि तीन विधानसभा सीटों के उपचुनाव में नतीजों के उलटफेर के जस्टिफाई करने के लिए प्रदेश भाजपा के पास तर्क होंगे. लेकिन मंडी की हार को आलाकमान के सामने कि सी भी रूप में तर्क देकर बचा नहीं जा सकता. पृष्ठभूमि यह है कि मंडी लोकसभा सीट 2 बार से भाजपा के पास है खुद पीएम नरेंद्र मोदी की नजर इस परिणाम पर रहेगी. यदि भाजपा के पक्ष की बातें की जाए तो सत्ता में रहना, मंडी की सभी 10 विधानसभा सीटों भाजपा का परचम, मुख्यमंत्री का मंडी से होना और चुनाव प्रबंधन की कमान महेंद्र सिंह ठाकुर के हाथ में रहना, यह सब भाजपा के मजबूत पक्ष हैं. इसके अलावा गौर करने वाली बात है कि महेंद्र सिंह ठाकुर जिस भी चुनाव में प्रभारी रहे हैं, भाजपा ने वह चुनाव हमेशा जीता है. खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर हर जनसभा में मंडी को लेकर भावुक राग छेड़ देते हैं.
वहीं, भाजपा के खिलाफ जा रही बातों पर गौर करें तो महंगाई, पेट्रोल-डीजल के दाम, बेरोजगारी और कोरोना के कारण छोटे कारोबारियों की कमर टूटने से लोगों में सत्ता पक्ष के प्रति नाराजगी है. अंदर खाते पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता और पदाधिकारी इसलिए नाराज हैं कि सत्ता में आने के बाद भाजपा अपने ही लोगों को भूल जाती है. यह नाराजगी अंडर करंट की तरह है. यह सही है कि चुनाव अब प्रबंधन का खेल अधिक है. भाजपा हो या कोई अन्य दल, वे समाज में ऐसे क्षेत्रों में घुसपैठ करते हैं जहां प्रभावशाली लोग आम वोटर्स पर अपनी छाप छोड़ते हैं. यह सही है कि भाजपा के पास सुगठित कैडर है. बूथ पालक से लेकर ब्लॉक, मंडल, जिला, और फिर प्रदेश स्तर पर भाजपा के पास सिलसिलेवार तरीके से काम करने के लिए मैन पावर है. यह सारी बातें कांग्रेस के पास नहीं है. ऐसे में कांग्रेस के लिए इन चुनावों में अपनी नैया को पार लगाना मुश्किल होगा. अलबत्ता कांग्रेस के पास वीरभद्र सिंह के कद का सहारा है और रामपुर, किन्नौर और मंडी के पहाड़ी इलाकों में परंपरागत वोट बैंक कांग्रेस के पक्ष में जाता है.
जुब्बल-कोटखाई का चुनावी दंगल सबसे रोचक माना जा रहा है. इस बात को यहां के मतदाताओं ने भी सिद्ध कर दिया है. प्रदेश में तीन विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट पर हुए उपचुनावों में सबसे अधिक मतदाता जुब्बल-कोटखाई में वोट डालने पहुंचे. हालांकि यह पिछले विधानसभा चुनावों की तुलना में कम है, लेकिन बड़ी संख्या में लोगों ने मतदान किया. जुब्बल कोटखाई विधानसभा सीट की बात करें तो 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में 81.3 प्रतिशत वोटर ने मताधिकार का प्रयोग किया था. इससे पहले 2012 में 79.18 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने वोट के अधिकार का प्रयोग किया था. 2007 में 76.26 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था. 2003 के विधानसभा चुनावों में 77.95 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था. यह सीट पूर्व मंत्री नरेंद्र बरागटा के निधन के बाद खाली हुई है. इस बार चुनाव मैदान में उनके पुत्र चेतन बरागटा निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं. कांग्रेस से पूर्व सीपीएस रोहित ठाकुर और भाजपा से पूर्व जिला परिषद सदस्य नीलम सरैइक चुनाव मैदान में हैं.
अर्की विधानसभा क्षेत्र में 64.97 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है. अपेक्षाकृत कम मतदान होने से प्रत्याशियों के दिलों की धड़कन और तेज हो गई है. यहां कांग्रेस और भाजपा में सीधा मुकाबला होने के कारण यह अनुमान लगाना कठिन हो गया है कि कम मतदान किसके पक्ष में रहने वाला है. अगर 2007 से लेकर अब तक की बात करें तो यह मत प्रतिशत सबसे कम है. 2017 में यहां 76.34 प्रतिशत मतदान हुआ था. इससे पहले 2012 के विधानसभा चुनावों में 73.46 प्रतिशत मतदान रहा था. 2007 के विधानसभा चुनावों में 75.72 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था. इस बार यहां कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशियों के बीच सीधा मुकाबला है. कांग्रेस ने संजय अवस्थी को चुनाव मैदान में उतार है. भाजपा ने पूर्व प्रत्याशी रत्न पाल सिंह पर फिर से भरोसा जताया है. हालांकि पिछली बार रत्न पाल सिंह पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से चुनाव हार गए थे.
यहां के लोगों की दिक्कतों की बात करें तो विधानसभा क्षेत्र की अधिकांश जनता कृषि और बागवानी से जुड़ी हुई है. यहां कैश क्रॉप के रूप में टमाटर और फूलों की खेती की जाती है. इसके अलावा सब्जियों का भी अच्छा कारोबार इस क्षेत्र में किया जाता है. इन उपचुनावों में कृषि से जुड़े मुद्दे भी अर्की के चुनाव प्रचार में छाए रहे. शुरुआत में टमाटर के अच्छे दाम नहीं मिलने से अधिकांश किसानों की दिक्कतें झेलनी पड़ी है, लेकिन बाद में बाजार ठीक होने के बाद अब टमाटर के अच्छे दाम मिल रहे हैं.
वहीं, कोरोना काल में फूल कारोबारियों का पूरा धंधा चौपट हो गया था. हालांकि उस वक्त सरकार ने उनकी कुछ सहायता भी की थी. इसके अलावा विधानसभा क्षेत्र में स्कूलों की खस्ता हालत, सड़कों की खराब स्थिति, ग्रामीण क्षेत्रों में बसों की कमी और फोन नेटवर्क की दिक्कत लोगों की बड़ी समस्याएं हैं. इस बार चुनावों में यह समस्या लोगों ने राजनीतिक दलों के सामने रखी भी है. इसके अलावा महंगाई भी इन चुनावों में बड़ा मुद्दा बनकर सामने आ सकता है.
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