शिमला: ब्रिटिश हुकूमत के समय शिमला में वायसराय के रहने के लिए एक शानदार इमारत बनाई गई थी. स्वतंत्रता से पहले यहां से अंग्रेज शासक समर सीजन (shimla summer capital of india) में हुकूमत चलाते थे. आजादी के बाद इस इमारत को राष्ट्रपति निवास बनाया गया और बाद में यह ज्ञान का केंद्र बना. अब यहां से ज्ञान का प्रकाश फैलता है और इसका नाम भी भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (INDIAN INSTITUTE OF ADVANCED STUDY) है. इसी संस्थान की लाइब्रेरी में दो लाख से अधिक किताबों का खजाना है.
बड़ी बात यह है कि इन सारी किताबों की जानकारी एक क्लिक पर उपलब्ध है. संस्थान की सारी किताबों की सूची ऑनलाइन (iias books library) है और अब अध्ययन के शौकीन यहां आकर शॉर्ट टर्म मेंबरशिप लेकर अपनी ज्ञान की प्यास बुझा सकते हैं. यह शॉर्ट टर्म मेंबरशिप हफ्ते के लिए भी उपलब्ध है. वैसे यदि सैलानी चाहें तो लाइब्रेरी में पुस्तकों को निहार सकते हैं. देश विदेश के अध्ययन प्रेमी इस लाइब्रेरी को देखने के लिए आते हैं. कई शोधकर्ताओं ने यहां लाइब्रेरी के लॉन्ग टर्म कार्ड भी बनाए हैं. अब यहां हफ्ते से लेकर महीने और साल भर की मेंबरशिप ली जा सकती है. हर साल 100 से अधिक शोधकर्ता विभिन्न कारणों से मेंबरशिप लेते हैं.
रोचक बात है कि यहां सभी किताबों की जानकारी ऑनलाइन मौजूद है. किस विषय की किताब किस खाने में है, ये सारी जानकारी माउस के एक क्लिक भर की दूरी पर है. लाइब्रेरी में तिब्बती भाषा के ग्रंथों सहित संस्कृत के कई प्राचीन ग्रंथ हैं. इसके अलावा गुरू ग्रंथ साहिब की दुर्लभ कलेक्शन भी यहां है. पूरे भारत देश में संत बसंत सिंह की हस्तलिखित कलेक्शन की सिर्फ तीन ही प्रतियां हैं. उनमें से एक प्रति यहां मौजूद है. संस्थान की लाइब्रेरी में मानविकी, इतिहास, दर्शन, धर्म, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, इतिहास, साहित्य, धर्म, कला, संस्कृति व राजनीति शास्त्र की किताबों का शानदार कलेक्शन है. इसके अलावा संस्थान का खुद का प्रकाशन भी है.
संस्थान में फैलो व नेशनल फैलो को जिस भी विषय में कोई भी रेफरेंस बुक चाहिए हो, वो सहज ही उपलब्ध है. संस्थान में बर्मा की पूर्व शासक आंग सान सू की (Aung san Suu kyi in IIAS) भी फैलो रह चुकी हैं. सू की के पति भी यहां फैलो थे. देश के जाने-माने विद्वान यहां फैलो रहे हैं. उनमें स्वर्गीय भीष्म साहनी, स्व. कृष्णा सोबती, स्व. ओमप्रकाश वाल्मीकि, गिरिराज किशोर, दूधनाथ सिंह, राजेश जोशी जैसे नाम शामिल हैं.
उल्लेखनीय है कि ब्रिटिश हुकूमत के समय यह इमारत वायसरीगल लॉज कहलाती थी. आजादी के बाद शिक्षाविद् राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इसे राष्ट्रपति भवन से भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में बदला. हालांकि, भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान सोसायटी का पंजीकरण 6 अक्टूबर 1964 को हुआ, लेकिन इसका विधिवत शुभारंभ 20 अक्टूबर 1965 को किया गया. संस्थान की स्थापना का मकसद मानविकी व सामाजिक अध्ययन के लिए वातावरण तैयार करना और उसे प्रोत्साहित करना था. भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के पहले अध्यक्ष भारत के तत्कालीन उप राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन थे. तत्कालीन शिक्षा मंत्री एमसी छागला उपाध्यक्ष बने. संस्थान के प्रथम निदेशक प्रोफेसर निहार रंजन रॉय थे.
वर्ष 1884 में इस इमारत का निर्माण शुरू हुआ. यह चार साल में बनकर तैयार हुई. उस दौरान इस पर 20 लाख रुपए से अधिक का खर्चा आया था. बर्मा से टीक की लकड़ी मंगवाई गई थी. यहां एक बार पाकिस्तान के राजनयिक अब्दुल बासित भी आए थे. बासित की आंखें अचरज से भर गई, जब उन्हें यहां मौजूद पुस्तकों की विलक्षणता बताई गई. हजार-दस हजार नहीं, बल्कि दो लाख किताबों का खजाना एक ही स्थान पर है. अब्दुल बासित को लाइब्रेरी के संदर्भ में जानकारी देते हुए संस्थान के अधिकारियों ने बताया कि यहां उर्दू और फारसी भाषा में दुर्लभ ग्रंथ भी हैं. अब्दुल बासित ने अलग-अलग विषयों की किताबों से सजी इस लाइब्रेरी की मुक्त कंठ से प्रशंसा की और विजिटर्स बुक में इसे बेमिसाल धरोहर बताया.
इसी संस्थान में भारत व पाक के विभाजन के पहले ड्रॉफ्ट की तैयारी हुई. यह मई 1947 की बात है. संस्थान में महात्मा गांधी, मोहम्मद अली जिन्ना, जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद सरीखे नेता आते रहे. यूपी के पूर्व सीएम व कुछ समय के लिए हिमाचल के राज्यपाल रहे कल्याण सिंह, यूपी के राज्यपाल रहे राम नाइक को भी किताबों के विशाल खजाने ने प्रभावित किया था. भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला की सैर को आए सैलानियों का प्रमुख आकर्षण है.