शिमला: देश प्रेम के गीत और कविताओं से आज भी सरदार जोगिंद्र सिंह मीत का नाता वैसा ही है जैसा बचपन में हुआ करता था. अब भले ही उनकी उम्र 90 साल है, लेकिन अभी भी देश प्रेम का जोश पहले की तरह बरकरार है. बात साल 1942 की है, जब शिमला में कांग्रेस द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में जोगिंद्र सिंह मीत ने 'मुझे भी देशभक्तों के समान फांसी के फंदे पर झूलने' जैसी कविताएं सुनाई थी. जिससे उनको वाहवाही तो खूब मिली, लेकिन अंग्रेज हुकूमत के सिपाही उन्हें पकड़ने के लिए घर जा पहुंचे.
देश प्रेम के गीत व कविताओं के सरदार और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जोशीले गीत लिखने वाले जोगिंद्र सिंह मीत को मानवता प्रेमी सरदार का नाम उनके साथियों ने दिया था. इसी नाम से उन्हें आज भी जाना जाता है. आज भी सरदार मीत उस समय को याद करते है जब 1957 में पहले स्वतंत्रता संग्राम के 100 साल पूरे होने पर पंडित जवाहर लाल नेहरू हॉल में आयोजित हुए कार्यक्रम में उन्होंने देशप्रेम के गीत सुनाए थे.
अमृतसर में 30 जनवरी 1930 को पैदा हुए जोगिंद्र सिंह मीत का पूरा परिवार आजादी की लड़ाई में किसी न किसी रूप से जुड़ा था. जो परिवार 1910 में शिमला आ गया था, तभी शिमला आजादी की गतिविधियों का खास केंद्र था और यहां बड़े नेताओं का आना-जाना लगा रहता था. महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना आजाद व मास्टर तारा सिंह जैसे नायकों से मिलने के लिए जोगिंद्र सिंह घर से भागकर वायसरीगल लॉज जाया करते थे. उस समय ब्रिटिश हुकूमत के समय देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला थी और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ उठने वाली हल्की सी आवाज भी यहां कैद कर ली जाती थी.
उर्दू और पंजाबी में ही लिखते है अपनी कविताएं और गीत
जोगिंद्र सिंह मीत अपनी कविताएं और गीत उर्दू व पंजाबी में ही लिखते हैं. आज के दौर में भी वो उर्दू और पंजाबी में अपनी कविताएं लिख रहे हैं. अभी भले ही वो अपने देश और शहर में नहीं हैं, लेकिन ऑस्ट्रेलिया में रहकर भी वो अपनी रचनाओं को लगातार समय दे रहे हैं और लिख रहे हैं. दरअसल कुछ साल पहले तक राजधानी शिमला के लोअर बाजार में रेडीमेड कपड़ों की एक साधारण सी दुकान में ये जोशीले सरदार बैठे दिखाई देते थे, लेकिन अब ये दुकान उन्होंने बंद कर दी है. वर्तमान समय में वे अपने इलाज के लिए अपने बेटे के पास हैं, लेकिन शिमला के बाजारों में आज भी उन्हें जोशीले मीत के नाम से याद किया जाता है.
अंग्रेजों के शासनकाल में बड़े अंग्रेज अफसरों को शिमला में रिहायत दी गई थी. यही वजह थी कि जब साल 1942 में जोगिंद्र सिंह मीत ने कांग्रेस के जलसे में अपनी देशभक्ति से ओत-प्रोत कविताएं सुनाई, तभी अंग्रेज हुकूमत के सिपाही सरदार जोगिंद्र सिंह मीत को पकड़ने के लिए घर जा पहुंचे. वहीं, सरदार जोगिंद्र सिंह मीत ने स्वंतत्रता दिवस के मौके पर लोगों को प्यार से रहने और आजादी का मोल समझने सहित कोरोना महामारी को मिलकर हराने की अपील की है.
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गुलामी के दौर को याद करते हुए सरदार जोगिंद्र सिंह मीत बताते हैं कि उस समय सभी के मन में आजादी की छटपटाहट थी. मीत का परिवार कांग्रेस से जुड़ा था और उनके पिता कांग्रेस की सक्रियता व कार्यों के लिए चुपके से काफी मात्रा में पैसे दिया करते थे. उन्होंने कहा कि 1962 में जोगिंद्र सिंह मीत ने भी भारत-चीन युद्ध के दौरान वार फंड में बड़ी रकम दी थी.
देश के राष्ट्रपति जाकिर हुसैन व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से भी जोगिंद्र सिंह मीत ने अपनी कविताओं पर वाहवाही पाई है. 1957 में जब पहले स्वतंत्रता संग्राम के सौ साल पूरे हुए तो पंडित नेहरू चायल में आयोजित एक कार्यक्रम में आए थे, तभी मीत ने उन्हें देशप्रेम के गीत सुनाए थे. इसी बीच उन्होंने पंडित नेहरू से बेबाक होकर कहा था कि अब देश की बागडोर आपके हाथ में है. खबरदार रहना और देशसेवा में कोई चूक मत करना, वरना शहीदों की रूहें आजादी के बाद भी भारतीय शासकों को माफ नहीं करेंगी.
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