शिमला: हिमाचल के युवा बागवान संजीव चौहान ने सेब उत्पादन में सफलता की नई गाथा लिखी है. शिमला जिला के कोटखाई तहसील के इस युवा बागवान ने प्रति हेक्टेयर सेब उत्पादन में चीन व अमेरिका को भी पछाड़ दिया है.
संजीव चौहान बगीचे में प्रति हेक्टेयर 52 मीट्रिक टन सेब पैदा करते हैं. विश्व के नंबर एक सेब उत्पादक देश चीन की प्रति हेक्टेयर अधिकतम उत्पादन 35 से 40 मीट्रिक टन है. अमेरिका में भी यह आंकड़ा 35 मीट्रिक टन है. चीन व अमेरिका बागवानी में आधुनिक तकनीक व नई खोज से लैस रहते हैं, लेकिन हिमाचल के दूरस्थ गांव में युवा बागवान ने अपनी मेहनत व सोच के बूते यह सफलता हासिल की है.
हिमाचल प्रदेश के बागवानी विभाग में बागवानी विकास अधिकारी डॉ. कुशल मेहता ने बखोल गांव में स्थित संजीव चौहान के बगीचे का दौरा करके इस रिकार्ड उत्पादन की पुष्टि कर चुके है. डॉ. मेहता के साथ विभाग के अन्य आला अधिकारियों ने भी संजीव चौहान के बगीचे का दौरा किया था. संजीव चौहान को वर्ष 2013 में बेंगलुरु में आयोजित समारोह में उत्कृष्ट बागवानी के लिए राष्ट्रीय सम्मान भी मिला है.
संजीव ने प्रति हेक्टेयर उत्पादन का रिकॉर्ड नई तकनीक व मिट्टी की न्यूट्रिशन वैल्यू को बरकरार रखते हुए हासिल किया है. उन्होंने पौधों की प्रूनिंग की तकनीक को अपने ही तरीके से बदला और उसका परिणाम भी मिला. सेब उत्पादन में पौधों की प्रूनिंग का अहम रोल है.
संजीव ने इसे पहचान कर अपने बगीचे के वातावरण व मिट्टी के अनुसार काम किया. बागवानी विकास अधिकारी डॉ. कुशल मेहता के अनुसार संजीव चौहान के बगीचे में हुआ रिकॉर्ड सेब उत्पादन हैरान करता है. डॉ. मेहता का कहना है कि प्रदेश के अन्य बागवानों को भी संजीव चौहान जैसी क्रिएटिव सोच रखनी चाहिए.
यूं तो सेब और हिमाचल का रिश्ता करीब सौ साल का है, लेकिन इक्कीसवीं सदी में इसे नई पहचान मिली है. इस समय देश की मंडियों में हिमाचल के बागीचों से आ रहे सेब की धूम मची है. हिमाचल की धरती पर सेब की विदेशी किस्में उगाने की राह एक युवा बागवान संजीव चौहान ने दिखाई है.
इस समय संजीव चौहान के बगीचे में करीब 25 किस्म के विदेशी सेब के पौधे फल दे रहे हैं. सेब उत्पादन के जरिए वे हर साल बीस से तीस लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं. नई सोच और आधुनिक तकनीक का संगम करने वाले इस युवा बागवान ने इस साल सफलता की नई मिसाल कायम करते हुए सेब उत्पादन में प्रति हेक्टेयर रिकॉर्ड सेब पैदा किया है.
संजीव चौहान इस समय सेब की सुपर चीफ, स्कारलेट स्पर, गेल गाला, ग्रेनी स्मिथ, आर्गेन स्पर, वाशिंगटन रेड डिलिशियस, ऐस व जोना गोल्ड जैसी अमेरिकी किस्में उगा रहे हैं. इसके अलावा उनके बगीचे में सेब की चीन की रेड फ्यूजी व कोरेड फ्यूजी किस्मों सहित इटली की रेड विलॉक्स, जेरोमाइन, रेडलम गाला, बुकाई गाला, एजटेक फ्यूजी किस्में मौजूद हैं. फ्रांस की कुछ किस्मों के पौधे भी उन्होंने लगाए हैं.
संजीव चौहान के बगीचे में सेब की विदेशी किस्में ही नहीं हैं, बल्कि नाशपाती, प्लम, बादाम व प्रून फ्रूट की विदेशी किस्मों के पौधे भी कामयाबी की नई मिसाल बने हैं. बागवानी में सफलता की यह गाथा वर्ष 2006 में शुरू हुई. वकालत के पेशे को अलविदा कहने के बाद संजीव चौहान ने शिमला जिला की कोटखाई तहसील स्थित अपने पैतृक गांव बखोल का रुख किया और बगीचे में पसीना बहाना शुरू कर दिया.
सेब की विदेशी किस्मों का गहन अध्ययन करने के बाद उन्होंने विदेश की नामी पौध-शालाओं के पौधे आयात किए. आधुनिक तकनीक से उन्हें रोपा और चार साल में ही वे फलों से लद गए. वर्ष 2010 से संजीव चौहान के बगीचे में तीन हजार पेटी सेब का उत्पादन हो रहा है. संजीव की सफलता से प्रेरणा लेने के लिए प्रदेश व प्रदेश के बाहर के बागवान उनके बगीचे का दौरा करते हैं.
संजीव का मानना है कि हिमाचल प्रदेश के युवाओं को बागवानी में भविष्य बनाना चाहिए. सरकारी नौकरी का मोह छोड़कर अपनी मिट्टी से जुड़े रहने से सफलता मिल सकती है. सेब उत्पादन में नई तकनीक को अपनाते हुए विदेशी किस्मों का पैदावार करनी चाहिए. परंपरागत किस्म के रॉयल के पौधे अब नई सदी में कामयाब नहीं हैं.
बागवान संजीव चौहान ने सेब की 50 विदेशी किस्मों सहित अपने बगीचों में नाशपाती, पल्म और अन्य फलों सहित 62 विदेशी किस्में लगाई है
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