शिमला: अमूमन ये कहा जाता है कि नाम में क्या रखा है, लेकिन ये भी तथ्य है कि अकसर नाम ही बड़ा काम आता है. ये भी कहा जाता है कि-नाम ही काफी है. हिमाचल की राजनीति में वीरभद्र सिंह ऐसा ही नाम हैं. छह बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह बेशक अब संसार में नहीं हैं, लेकिन कांग्रेस विधानसभा चुनाव वीरभद्र सिंह के नाम पर ही लड़ेगी. नाम की बात यहां इसलिए आई है कि वीरभद्र सिंह के नाम का असर अभी भी प्रदेश की राजनीति में मौजूद है. इसे समझने के लिए आगे की पंक्तियों पर नजर डालना जरूरी है.
हिमाचल में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं. कांग्रेस हाईकमान ने मंडी से सांसद और वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. प्रतिभा सिंह इससे पहले संगठन में कभी सक्रिय नहीं रही. अलबत्ता वे सांसद जरूर रही हैं. लेकिन हाईकमान ने अब उन्हें हिमाचल में पार्टी का मुखिया बनाया है. यहां एक दिलचस्प तथ्य ये है कि हाईकमान ने जो चिट्ठी जारी की है, उसमें प्रतिभा सिंह का नाम प्रतिभा वीरभद्र सिंह लिखा गया है. ये संकेत (Pratibha Virbhadra Singh) ही काफी है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस (Himachal Congress Campaign Committee) की रणनीति क्या रहेगी.
वैसे अध्यक्ष बनने के बाद शिमला में प्रतिभा सिंह ने भी कहा है कि वीरभद्र सिंह का नाम और (Contribution of Virbhadra Singh to Congress) काम अभी भी प्रदेश की जनता के दिल में जिंदा है. ये निर्विवाद तथ्य है कि वीरभद्र सिंह हिमाचल कांग्रेस के सबसे बड़े नेता थे. किसी राज्य का छह बार मुख्यमंत्री रहना आसान नहीं है. जब तक वीरभद्र सिंह मौजूद रहे, हर चुनाव उनकी अगुवाई में ही लड़ा जाता था. हर चुनाव में कांग्रेस का चेहरा भी वीरभद्र सिंह ही होते थे और चुनाव जीतने की स्थिति में सीएम पद पर भी उन्हें कोई चुनौती नहीं मिलती थी. ये बात अलग है कि पंडित सुखराम व विद्या स्टोक्स और कौल सिंह ठाकुर ने प्रयास जरूर किए, लेकिन वीरभद्र सिंह के कद के आगे उनकी एक न चली.
वीरभद्र सिंह जन नेता थे और हिमाचल की जनता की (Himachal Pradesh Congress) नब्ज को बखूबी पकड़ते थे. उन्होंने प्रदेश की जनता के साथ एक भावनात्मक रिश्ता कायम किया था. उनके देहावसान के बाद श्रद्धांजलि देने के लिए उमड़ी भीड़ ने साबित किया था कि जनता उन्हें कितना चाहती थी. कुछ समय पूर्व संपन्न हुए चार उपचुनाव में वीरभद्र सिंह की सहानुभूति लहर ने कांग्रेस का काम आसान किया था. मंडी सीट को भाजपा से छीनना, ये वीरभद्र सिंह की सहानुभूति लहर का ही कमाल था.
चुनावी साल में हिमाचल कांग्रेस में कई तरह की सुगबुगाहटें चली थीं. ऐसे में हाईकमान के पास राज्य के कांग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं को एकजुट करने के लिए वीरभद्र सिंह का ही सहारा था. प्रतिभा सिंह को अध्यक्ष बनाकर हाईकमान ने एक बार फिर से पावर सेंटर होली लॉज शिफ्ट कर दिया है. फिर प्रतिभा सिंह के नाम के साथ वीरभद्र सिंह का नाम जोड़कर कांग्रेस कार्यकर्ताओं व नेताओं को भी संकेत दे दिया है. हिमाचल प्रदेश में हर जिले में वीरभद्र सिंह के समर्थक मौजूद हैं. खासकर बुजुर्ग वोटर्स व महिला वोटर्स. ये वीरभद्र सिंह से बहुत करीब से जुड़े हैं और यही कारण है कि प्रतिभा सिंह को हाईकमान ने अध्यक्ष बनाया है.
हाल ही में प्रतिभा सिंह करसोग दौरे पर आई थीं, तो वरिष्ठ कांग्रेस नेता मनसा राम के साथ समर्थकों ने जिस तरह से वीरभद्र सिंह को याद किया, उससे साफ पता चलता है कि पूर्व सीएम देह में न होने के बावजूद जनता में कितने असरकारक हैं. प्रतिभा सिंह को अध्यक्ष बनाने के बाद से कांग्रेस में जिस तरह का उत्साह है, उससे साफ पता चलता है कि हाईकमान ने सोच-समझकर ही ये फैसला लिया है. प्रतिभा सिंह को वीरभद्र सिंह के करीबी नेताओं का भरपूर सहयोग मिलेगा. देखा जाए तो वीरभद्र सिंह के विधायक बेटे विक्रमादित्य सिंह सोशल मीडिया पर जिस तरह से विकास के वीरभद्र मॉडल की बातें करते रहे हैं, उससे भी ये संकेत मिल रहा था कि हाईकमान इस परिवार को बड़ी जिम्मेदारी देगी.
वहीं, ये भी दिलचस्प तथ्य है कि विक्रमादित्य सिंह कई मसलों पर अपनी बेबाक राय रखते रहे. चाहे वो ओल्ड पेंशन स्कीम का मुद्दा हो या फिर विकास योजनाओं की बात. ये आत्मविश्वास बिना किसी स्पोर्ट के नहीं आता. वीरभद्र सिंह के बहुत करीब रहे कांग्रेस नेता हरीश जनारथा का कहना है कि प्रतिभा सिंह के अध्यक्ष बनने से पार्टी को बहुत लाभ होगा. कांग्रेस कार्यकर्ता और आम जनता के मन में अभी भी वीरभद्र सिंह के (Himachal assembly elections) परिवार का सम्मान है. वहीं, वरिष्ठ मीडिया कर्मी संजीव शर्मा का कहना है कि प्रतिभा सिंह को अध्यक्ष बनाना कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक है. वीरभद्र सिंह के प्रदेश की जनता पर असर के बारे में सब जानते हैं. फिलहाल, ये स्पष्ट हो गया है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस वीरभद्र सिंह के नाम पर रण में उतरेगी. बस, चिंता है तो सिर्फ ये कि यदि कांग्रेस ने चुनाव जीत लिया तो मुख्यमंत्री पद को लेकर रेस बड़ी रोचक होगी.
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