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ऊर्जा राज्य हिमाचल प्रदेश को पसंद नहीं है विद्युत संशोधन अधिनियम, जानिए क्यों हो रहा विरोध - opposition to the electricity amendment act

Opposition to the Electricity Amendment Act: ऊर्जा राज्य हिमाचल में केंद्र सरकार के विद्युत संशोधन अधिनियम (Electricity Amendment Act of the Central Government) का विरोध हो रहा है. देश के अन्य राज्यों की तर्ज पर हिमाचल के बिजली बोर्ड कर्मचारी भी विरोध स्वरूप फरवरी 2022 में देशव्यापी धरना देंगे. यहां जानना दिलचस्प है कि हिमाचल प्रदेश जो खुद ऊर्जा राज्य कहलाता है, उसमें इस संशोधन अधिनियम का विरोध (Electricity Amendment Act in Himachal) क्यों हो रहा है.

Opposition to the Electricity Amendment Act
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Published : Dec 13, 2021, 5:53 PM IST

Updated : Dec 13, 2021, 7:11 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश को देश का ऊर्जा राज्य कहा जाता है. हिमाचल में जल विद्युत परियोजनाओं की शानदार परंपरा है. जरूरत के समय देश को रोशनी देने वाले ऊर्जा राज्य हिमाचल में केंद्र सरकार के विद्युत संशोधन अधिनियम (Electricity Amendment Act of the Central Government) का विरोध हो रहा है. उल्लेखनीय है कि उक्त अधिनियम इन दिनों सदन के शीतकालीन सत्र में चर्चा के लिए प्रस्तावित है. हिमाचल में इस अधिनियम का विरोध हो रहा है. देश के अन्य राज्यों की तर्ज पर हिमाचल के बिजली बोर्ड कर्मचारी भी विरोध स्वरूप फरवरी 2022 में देशव्यापी धरना देंगे.

यहां जानना दिलचस्प है कि हिमाचल प्रदेश जो खुद ऊर्जा राज्य कहलाता है, में इस संशोधन अधिनियम का विरोध (Electricity Amendment Act in Himachal) क्यों हो (Opposition to the Electricity Amendment Act) रहा है. विस्तार में जाने से पहले हिमाचल में ऊर्जा क्षेत्र को संक्षिप्त में समझना जरूरी है. पहाड़ी राज्य में छोटी-बड़ी कई जल विद्युत परियोजनाएं हैं. यहां सतलुज जल विद्युत परियोजना बेहतरीन काम के कारण पूरी दुनिया में चर्चित है. हिमाचल के पास 27 हजार मेगावाट से अधिक बिजली उत्पादन (Total power generation in Himachal) की क्षमता है.

अभी करीब 11 हजार मेगावाट का उत्पादन हो रहा है. हिमाचल में 160 के करीब (TOTAL POWER PROJECTS IN HIMACHAL) जल विद्युत परियोजनाएं है. अभी 63 परियोजनाओं पर काम चल रहा है. एक दशक में सरकार का लक्ष्य दस हजार मेगावाट से अधिक बिजली उत्पादन का है. हिमाचल में बिजली क्षेत्र की धुरी एचपी स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (HP State Electricity Board) है. इस बोर्ड में 19 हजार कर्मचारी और 30 हजार से अधिक पेंशनर्ज हैं. हिमाचल में देश के अन्य राज्यों के मुकाबले उपभोक्ताओं के लिए बिजली सस्ती है.

विभिन्न स्तरों पर हिमाचल में अधिकतम साढ़े तीन रुपए प्रति यूनिट बिजली उपभोक्ताओं को दी जा रही है. औद्योगिक क्षेत्र में यह सीमा साढ़े चार रुपए प्रति यूनिट तक है. केंद्र सरकार ऊर्जा के क्षेत्र में कुछ बदलाव करना चाहती है. इसके लिए विद्युत संशोधन अधिनियम 2021 (Electricity Amendment Act 2021) लाया गया है. अधिनियम को लाने के पीछे मंशा (What is Electricity Amendment Act) है कि आम जनता और उपभोक्ताओं को सस्ती और निर्बाध बिजली मिले. केंद्र व राज्य सरकारों ने इसके लिए स्टेक होल्डर्स से सुझाव भी मांगे. देश का इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 (Electricity Act 2003) संशोधित रूप में लाया जा रहा है. इसमें बिजली वितरण यानी डिस्कॉम के लिए भी मंच है.

दरअसल विरोध इसी बात पर हो रहा है. हालांकि एक्ट में संशोधन पहले भी हुए हैं, लेकिन इस बार विरोध ज्यादा है. हिमाचल प्रदेश में बिजली बोर्ड (Electricity Board in Himachal Pradesh) की कर्मचारी यूनियन के महासचिव हीरा लाल वर्मा का कहना है कि इस अधिनियम के प्रस्ताव को तैयार करते समय टेक्नोक्रेट्स की मदद और सलाह नहीं ली गई. यह सीधे-सीधे निजीकरण की राह में बड़ा कदम है.

Opposition to the Electricity Amendment Act
हीरा लाल वर्मा, महासचिव, कर्मचारी यूनियन, हिमाचल प्रदेश बिजली बोर्ड.

उनका कहना है कि अधिनियम लागू हो जाने के बाद बिजली उत्पादन से लेकर इसके वितरण तक का सारा काम चंद बड़ी कंपनियों के हाथों में ही सिमट जाएगा. बड़ी कंपनियां मनमानी करेंगी और आम उपभोक्ताओं को महंगी बिजली की मार झेलने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. हीरा लाल वर्मा तर्क देते हैं कि हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य में तो यह अधिनियम बिलकुल उपयोगी नहीं है. वजह यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली वितरण का ढांचा और वितरण महंगा पड़ता है, लेकिन मौजूदा व्यवस्था में सरकार ग्रामीणों को सस्ती बिजली देती है.

हिमाचल में इस समय मैदानी जिलों में स्थापित उद्योगों को (Electricity Rates in Himachal Pradesh) अपेक्षाकृत महंगी दर पर बिजली दी जा रही है. ऐसे में ग्रामीणों और आम उपभोक्ताओं को अनुदान देकर सस्ती बिजली उपलब्ध करवाई जा रही है. विद्युत संशोधन अधिनियम लागू हो जाने के बाद वितरण करने वाली कंपनियां अपने मुनाफे को प्राथमिकता से देखेंगी. आम उपभोक्ताओं के पास कोई विकल्प नहीं रहेगा.

वर्मा का कहना है कि 2003 के अधिनियम की निरंतरता 2014 और 2018 में भी रही और अब यह 2021 में लाया जा रहा है. पूर्व में जो संशोधन हुए, वे बताते हैं कि अधिनियम से देशभर के स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड की स्वायत्तता प्रभावित हुई है. इस अधिनियम के आने से निजीकरण बढ़ेगा और पेंशनर्स भी प्रभावित होंगे. देश भर के बिजली बोर्ड के टेक्नोक्रेट्स अधिनियम के सख्त खिलाफ हैं. ग्रामीण क्षेत्र इग्नोर हो जाएगा. उपभोक्ता बिजली कंपनियों की मनमानी सहने को मजबूर हो जाएंगे. वर्मा का कहना है कि यदि एक से अधिक बिजली कंपनियां वितरण में आएंगी तो हर कंपनी अलग-अलग तारें बिछाएगी. यह तकनीकी रूप से अड़चन पैदा करेगा.

वहीं, हिमाचल प्रदेश किसान सभा ने भी बिजली अधिनियम का विरोध किया है. हिमाचल किसान सभा के राज्य अध्यक्ष डॉ. केएस तंवर ने बताया कि यह अधिनियम किसानों और आम जनता के पक्ष में नहीं है. वहीं, हिमाचल प्रदेश के ऊर्जा मंत्री सुखराम चौधरी (Power Minister Sukhram Choudhary) के अनुसार अभी संशोधन अधिनियम की प्रक्रिया आरंभिक चरण में और इस पर लोकसभा में चर्चा नहीं हुई है. यह संशोधन अधिनियम सोच समझ कर तैयार किया गया है. ऐसे में जल्द बाजी में कुछ कहना ठीक नहीं होगा.

ये भी पढ़ें- कंगना के बयानों के समर्थन में हिमाचल बचाओ संघर्ष मोर्चा, शिवसेना को दी ये चेतावनी

शिमला: हिमाचल प्रदेश को देश का ऊर्जा राज्य कहा जाता है. हिमाचल में जल विद्युत परियोजनाओं की शानदार परंपरा है. जरूरत के समय देश को रोशनी देने वाले ऊर्जा राज्य हिमाचल में केंद्र सरकार के विद्युत संशोधन अधिनियम (Electricity Amendment Act of the Central Government) का विरोध हो रहा है. उल्लेखनीय है कि उक्त अधिनियम इन दिनों सदन के शीतकालीन सत्र में चर्चा के लिए प्रस्तावित है. हिमाचल में इस अधिनियम का विरोध हो रहा है. देश के अन्य राज्यों की तर्ज पर हिमाचल के बिजली बोर्ड कर्मचारी भी विरोध स्वरूप फरवरी 2022 में देशव्यापी धरना देंगे.

यहां जानना दिलचस्प है कि हिमाचल प्रदेश जो खुद ऊर्जा राज्य कहलाता है, में इस संशोधन अधिनियम का विरोध (Electricity Amendment Act in Himachal) क्यों हो (Opposition to the Electricity Amendment Act) रहा है. विस्तार में जाने से पहले हिमाचल में ऊर्जा क्षेत्र को संक्षिप्त में समझना जरूरी है. पहाड़ी राज्य में छोटी-बड़ी कई जल विद्युत परियोजनाएं हैं. यहां सतलुज जल विद्युत परियोजना बेहतरीन काम के कारण पूरी दुनिया में चर्चित है. हिमाचल के पास 27 हजार मेगावाट से अधिक बिजली उत्पादन (Total power generation in Himachal) की क्षमता है.

अभी करीब 11 हजार मेगावाट का उत्पादन हो रहा है. हिमाचल में 160 के करीब (TOTAL POWER PROJECTS IN HIMACHAL) जल विद्युत परियोजनाएं है. अभी 63 परियोजनाओं पर काम चल रहा है. एक दशक में सरकार का लक्ष्य दस हजार मेगावाट से अधिक बिजली उत्पादन का है. हिमाचल में बिजली क्षेत्र की धुरी एचपी स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (HP State Electricity Board) है. इस बोर्ड में 19 हजार कर्मचारी और 30 हजार से अधिक पेंशनर्ज हैं. हिमाचल में देश के अन्य राज्यों के मुकाबले उपभोक्ताओं के लिए बिजली सस्ती है.

विभिन्न स्तरों पर हिमाचल में अधिकतम साढ़े तीन रुपए प्रति यूनिट बिजली उपभोक्ताओं को दी जा रही है. औद्योगिक क्षेत्र में यह सीमा साढ़े चार रुपए प्रति यूनिट तक है. केंद्र सरकार ऊर्जा के क्षेत्र में कुछ बदलाव करना चाहती है. इसके लिए विद्युत संशोधन अधिनियम 2021 (Electricity Amendment Act 2021) लाया गया है. अधिनियम को लाने के पीछे मंशा (What is Electricity Amendment Act) है कि आम जनता और उपभोक्ताओं को सस्ती और निर्बाध बिजली मिले. केंद्र व राज्य सरकारों ने इसके लिए स्टेक होल्डर्स से सुझाव भी मांगे. देश का इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 (Electricity Act 2003) संशोधित रूप में लाया जा रहा है. इसमें बिजली वितरण यानी डिस्कॉम के लिए भी मंच है.

दरअसल विरोध इसी बात पर हो रहा है. हालांकि एक्ट में संशोधन पहले भी हुए हैं, लेकिन इस बार विरोध ज्यादा है. हिमाचल प्रदेश में बिजली बोर्ड (Electricity Board in Himachal Pradesh) की कर्मचारी यूनियन के महासचिव हीरा लाल वर्मा का कहना है कि इस अधिनियम के प्रस्ताव को तैयार करते समय टेक्नोक्रेट्स की मदद और सलाह नहीं ली गई. यह सीधे-सीधे निजीकरण की राह में बड़ा कदम है.

Opposition to the Electricity Amendment Act
हीरा लाल वर्मा, महासचिव, कर्मचारी यूनियन, हिमाचल प्रदेश बिजली बोर्ड.

उनका कहना है कि अधिनियम लागू हो जाने के बाद बिजली उत्पादन से लेकर इसके वितरण तक का सारा काम चंद बड़ी कंपनियों के हाथों में ही सिमट जाएगा. बड़ी कंपनियां मनमानी करेंगी और आम उपभोक्ताओं को महंगी बिजली की मार झेलने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. हीरा लाल वर्मा तर्क देते हैं कि हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य में तो यह अधिनियम बिलकुल उपयोगी नहीं है. वजह यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली वितरण का ढांचा और वितरण महंगा पड़ता है, लेकिन मौजूदा व्यवस्था में सरकार ग्रामीणों को सस्ती बिजली देती है.

हिमाचल में इस समय मैदानी जिलों में स्थापित उद्योगों को (Electricity Rates in Himachal Pradesh) अपेक्षाकृत महंगी दर पर बिजली दी जा रही है. ऐसे में ग्रामीणों और आम उपभोक्ताओं को अनुदान देकर सस्ती बिजली उपलब्ध करवाई जा रही है. विद्युत संशोधन अधिनियम लागू हो जाने के बाद वितरण करने वाली कंपनियां अपने मुनाफे को प्राथमिकता से देखेंगी. आम उपभोक्ताओं के पास कोई विकल्प नहीं रहेगा.

वर्मा का कहना है कि 2003 के अधिनियम की निरंतरता 2014 और 2018 में भी रही और अब यह 2021 में लाया जा रहा है. पूर्व में जो संशोधन हुए, वे बताते हैं कि अधिनियम से देशभर के स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड की स्वायत्तता प्रभावित हुई है. इस अधिनियम के आने से निजीकरण बढ़ेगा और पेंशनर्स भी प्रभावित होंगे. देश भर के बिजली बोर्ड के टेक्नोक्रेट्स अधिनियम के सख्त खिलाफ हैं. ग्रामीण क्षेत्र इग्नोर हो जाएगा. उपभोक्ता बिजली कंपनियों की मनमानी सहने को मजबूर हो जाएंगे. वर्मा का कहना है कि यदि एक से अधिक बिजली कंपनियां वितरण में आएंगी तो हर कंपनी अलग-अलग तारें बिछाएगी. यह तकनीकी रूप से अड़चन पैदा करेगा.

वहीं, हिमाचल प्रदेश किसान सभा ने भी बिजली अधिनियम का विरोध किया है. हिमाचल किसान सभा के राज्य अध्यक्ष डॉ. केएस तंवर ने बताया कि यह अधिनियम किसानों और आम जनता के पक्ष में नहीं है. वहीं, हिमाचल प्रदेश के ऊर्जा मंत्री सुखराम चौधरी (Power Minister Sukhram Choudhary) के अनुसार अभी संशोधन अधिनियम की प्रक्रिया आरंभिक चरण में और इस पर लोकसभा में चर्चा नहीं हुई है. यह संशोधन अधिनियम सोच समझ कर तैयार किया गया है. ऐसे में जल्द बाजी में कुछ कहना ठीक नहीं होगा.

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Last Updated : Dec 13, 2021, 7:11 PM IST
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