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हिमाचल विधानसभा के इतिहास में दर्ज नहीं एक भी मुस्लिम विधायक, पहाड़ी राज्य की सियासत में राजपूतों और ब्राह्मणों का वर्चस्व

झारखंड विधानसभा में मुस्लिम प्रतिनिधियों को नमाज़ के लिए अलग कमरा सुरक्षित करने को लेकर नया विवाद पैदा हो गया. वहीं, पहाड़ी राज्य हिमाचल के इतिहास में आज तक कोई मुस्लिम विधायक विधानसभा नहीं पहुंचा. यहां की राजनीति में हमेशा राजपूतों और ब्राह्मणों का वर्चस्व रहा है. इसकी एक बड़ी वजह अल्पसंख्यक समुदाय की आबादी का कम होना माना जाता है.

हिमाचल विधानसभा
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Published : Sep 9, 2021, 6:54 PM IST

Updated : Sep 9, 2021, 7:03 PM IST

शिमला: इस समय देशभर में झारखंड विधानसभा (Jharkhand Legislative Assembly) एक अलग ही कारण से चर्चा में है. झारखंड में विधानसभा के भीतर मुस्लिम प्रतिनिधियों (Muslim representatives) को नमाज़ के लिए एक कक्ष सुरक्षित करने के बाद नया विवाद पैदा हो गया है. झारखंड के बाद बिहार (BIHAR) में भी ऐसी मांग उठ रही है. वहीं, देश में सबसे पहले ई-विधान प्रणाली लागू करने वाले हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) का इतिहास उठाकर देखें तो यहां कभी भी कोई मुस्लिम प्रतिनिधि सदन तक नहीं पहुंचा. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हिमाचल प्रदेश के गठन के बाद से अब तक एक भी मुस्लिम विधायक (Muslim MLA) चुनकर नहीं आया.

हालांकि, इसका कारण प्रदेश में मुस्लिम आबादी का प्रतिशत भी है. हिमाचल प्रदेश में अल्पसंख्यक समुदाय (Minority community) के तौर पर मुस्लिम वर्ग की आबादी काफी कम है प्रदेश में चंबा, सिरमौर, बिलासपुर, मंडी और ऊपरी शिमला में मुस्लिम समुदाय के लोग रहते हैं. यदि प्रतिनिधित्व के हिसाब से देखा जाए तो हिमाचल विधानसभा में राजपूत (Rajput) और ब्राह्मण (Brahmin) वर्ग का वर्चस्व है.

प्रदेश में इस समय कुल 68 विधानसभा क्षेत्र हैं. यदि, अल्पसंख्यकों के हिसाब से देखा जाए तो इस सिख समुदाय (Sikh community) से एक विधायक, इससे पूर्व हिमाचल विधानसभा में हरि नारायण सैनी (Hari Narayan Saini) के रूप में एक दमदार सिख विधायक हुए. वे मंत्री भी रहे फिल्हाल हिमाचल में पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद से एक भी मुस्लिम विधायक नहीं हुआ है. इसका बड़ा कारण यह है कि हिमाचल में मुस्लिम समुदाय की आबादी 2.1 फीसदी से कुछ ही अधिक है. यही नहीं सिख आबादी मुस्लिम आबादी से कम है, लेकिन सिखों का प्रतिनिधित्व हिमाचल की राजनीति में अकसर रहा है.

हिमाचल छोटा पहाड़ी राज्य है और यहां की आबादी 70 लाख से अधिक है. हिमाचल प्रदेश की बात की जाए तो इसका गठन 15 अप्रैल 1948 को हुआ था. दूरदर्शी नेता और हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार (Dr. YS Parmar) के प्रयासों से 25 जनवरी 1971 को हिमाचल पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल करने वाला देश का 18वां प्रदेश बना. आरंभ से ही हिमाचल की राजनीति में ब्राह्मण और राजपूत वर्ग का वर्चस्व रहा है.

विभिन्न चरणों से गुरजरते हुए 1963 में हिमाचल विधानसभा के इतिहास में ऐसा दिन आया जब इसकी पहली बैठक हुई. हिमाचल में विधानसभा की निरंतरता इसी साल यानी वर्ष 1963 से मानी जाती है. वर्ष 1988 में हिमाचल विधानसभा ने रजत जयंती मनाई. बाद में पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने पर 1971-72 मेंं डी-लिमिटेशन (de-limitation) के बाद विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 68 हो गई.

हिमाचल विधानसभा ने अपने गठन के बाद से कई विलक्षण आयाम हासिल किए हैं. यह देश की पहली ई-विधानसभा है. सात साल पहले यह विधानसभा पूरी तरह से पेपरलेस हो गई थी. इसके अलावा यहां बजट भी पेपरलेस ही पेश किया जाता है. हिमाचल में डॉ. वाईएस परमार पहले मुख्यमंत्री थे वे राजपूत समुदाय से संबंध रखते थे. हिमाचल में डॉ. परमार के बाद रामलाल ठाकुर, वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh), प्रेमकुमार धूमल (Premkumar Dhumal) व मौजूदा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर (Chief Minister Jairam Thakur) राजपूत वर्ग से हैं. शांता कुमार(Shanta Kumar) दो बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे और वे ब्राह्मण वर्ग से संबंध रखते हैं.

मौजूदा सरकार में देखें तो मुख्यमंत्री के अलावा गोविंद सिंह ठाकुर, महेंद्र सिंह ठाकुर, राकेश पठानिया, बिक्रम सिंह ठाकुर, वीरेंद्र कंवर राजपूत समुदाय से हैं. हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के अध्यक्ष के तौर पर विपिन सिंह परमार (Vipin Singh Parmar) भी राजपूत वर्ग से हैं. हिमाचल में 12 जिलों में 68 विधानसभा क्षेत्र हैं और यहां 17 सीटें अनुसूचित जाति और 3 सीटें अनुसूचित जनजाति से संबंधित वर्ग के लिए हैं. वर्ष 2017 में हिमाचल विधानसभा में सामान्य वर्ग के लिए तय 48 सीटों में से 33 सीटों पर राजपूत चुनकर आए. भाजपा के 18, कांग्रेस के 12 और 2 आजाद उम्मीदवारों प्रकाश सिंह राणा व होशियार सिंह के अतिरिक्त एक मात्र वामपंथी विधायक राकेश सिंघा (Rakesh Singha) भी राजपूत हैं.

ये भी पढ़ें : विधानसभा के विशेष सत्र को संबोधित करेंगे राष्ट्रपति, CM जयराम ठाकुर ने रामनाथ कोविंद को दिया निमंत्रण

2011 की जनगणना के अनुसार हिमाचल की आबादी 68 लाख 56 हजार 509 है. शेड्यूल कास्ट की आबादी 17 लाख 29 हजार 252( 25.22 प्रतिशत) एसटी 3 लाख 92 हजार 126 (5. 71 परसेंट) ओबीसी 9 लाख 27 हजार 452 (13.52 प्रतिशत) सवर्ण 50.72 प्रतिशत और अल्पसंख्यक 4.83 प्रतिशत हैं. सवर्ण जातियों में राजपूत 32.72 प्रतिशत, ब्राह्मण 18 प्रतिशत हैं. हिमाचल प्रदेश की सियासत की बात करें तो यहां राजपूतों का आरंभ से ही दबदबा है.

बड़े नेताओं में डॉ. वाईएस परमार, वीरभद्र सिंह, रामलाल ठाकुर, प्रेम कुमार धूमल, कर्म सिंह ठाकुर, ठाकुर जगदेव चंद, जयराम ठाकुर, अनुराग ठाकुर, जेबीएल खाची, कौल सिंह ठाकुर, गुलाब सिंह ठाकुर, महेश्वर सिंह, गंगा सिंह ठाकुर, महेंद्र सिंह ठाकुर, कुंजलाल ठाकुर, गोविंद सिंह ठाकुर, मेजर विजय सिंह मनकोटिया, प्रतिभा सिंह, स्व. सुजान सिंह पठानिया, गुमान सिंह ठाकुर, हर्षवर्धन सिंह, रामलाल ठाकुर, सुखविंद्र सिंह ठाकुर का नाम शामिल है. भाजपा और कांग्रेस दोनों में ही राजपूत नेताओं की धमक रही है.

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हिमाचल प्रदेश में चूंकि सियासत के क्षेत्र में अगड़ी जातियों का दबदबा रहा लिहाजा अभी तक कोई मुख्यमंत्री अनुसूचित जाति या अल्पसंख्यक समुदाय से नहीं रहा. इसका कारण ब्राह्मणों और राजपूतों की आबादी का प्रतिशत अधिक होना है. सुखद बात यह है कि अल्पसंख्यक समुदाय या अनुसूचित जाति से संबंधित नेताओं का भी पूरा मान है. हिमाचल में इस समय सत्ताधारी दल भाजपा के मुखिया अनुसूचित जाति से हैं. राज्य में स्वास्थ्य मंत्री का महत्वपूर्ण विभाग संभालने वाले डॉ. राजीव सैजल (Dr. Rajeev Saizal) भी अनुसूचित वर्ग से आते हैं.

वहीं, कद्दावर महिला नेता सरवीण चौधरी (Sarveen Choudhary) ओबीसी वर्ग से आती हैं और दूसरी बार कैबिनेट मंत्री बनी हैं. इसके अलावा सुखराम चौधरी भी कैबिनेट मंत्री हैं. रमेश धवाला भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं और ओबीसी वर्ग से प्रभावशाली राजनेता माने जाते हैं. अलबत्ता डेढ़ लाख की कुल आबादी वाले अल्पसंख्यक वर्ग के मुस्लिम समुदाय से हिमाचल में अबतक एक भी विधायक नहीं रहा है. राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ मीडिया कर्मी हेमंत कुमार के अनुसार हिमाचल में मुसलिम आबादी छोटे-छोटे पॉकेट्स में है और इस वर्ग में कोई प्रभावशाली नेता भी उभरकर नहीं आया. अलबत्ता हिमाचल में जितनी भी सरकारें रही हैं, सभी ने अल्पसंख्यकों को अपने साथ जोड़ने का प्रयास किया है.

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शिमला: इस समय देशभर में झारखंड विधानसभा (Jharkhand Legislative Assembly) एक अलग ही कारण से चर्चा में है. झारखंड में विधानसभा के भीतर मुस्लिम प्रतिनिधियों (Muslim representatives) को नमाज़ के लिए एक कक्ष सुरक्षित करने के बाद नया विवाद पैदा हो गया है. झारखंड के बाद बिहार (BIHAR) में भी ऐसी मांग उठ रही है. वहीं, देश में सबसे पहले ई-विधान प्रणाली लागू करने वाले हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) का इतिहास उठाकर देखें तो यहां कभी भी कोई मुस्लिम प्रतिनिधि सदन तक नहीं पहुंचा. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हिमाचल प्रदेश के गठन के बाद से अब तक एक भी मुस्लिम विधायक (Muslim MLA) चुनकर नहीं आया.

हालांकि, इसका कारण प्रदेश में मुस्लिम आबादी का प्रतिशत भी है. हिमाचल प्रदेश में अल्पसंख्यक समुदाय (Minority community) के तौर पर मुस्लिम वर्ग की आबादी काफी कम है प्रदेश में चंबा, सिरमौर, बिलासपुर, मंडी और ऊपरी शिमला में मुस्लिम समुदाय के लोग रहते हैं. यदि प्रतिनिधित्व के हिसाब से देखा जाए तो हिमाचल विधानसभा में राजपूत (Rajput) और ब्राह्मण (Brahmin) वर्ग का वर्चस्व है.

प्रदेश में इस समय कुल 68 विधानसभा क्षेत्र हैं. यदि, अल्पसंख्यकों के हिसाब से देखा जाए तो इस सिख समुदाय (Sikh community) से एक विधायक, इससे पूर्व हिमाचल विधानसभा में हरि नारायण सैनी (Hari Narayan Saini) के रूप में एक दमदार सिख विधायक हुए. वे मंत्री भी रहे फिल्हाल हिमाचल में पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद से एक भी मुस्लिम विधायक नहीं हुआ है. इसका बड़ा कारण यह है कि हिमाचल में मुस्लिम समुदाय की आबादी 2.1 फीसदी से कुछ ही अधिक है. यही नहीं सिख आबादी मुस्लिम आबादी से कम है, लेकिन सिखों का प्रतिनिधित्व हिमाचल की राजनीति में अकसर रहा है.

हिमाचल छोटा पहाड़ी राज्य है और यहां की आबादी 70 लाख से अधिक है. हिमाचल प्रदेश की बात की जाए तो इसका गठन 15 अप्रैल 1948 को हुआ था. दूरदर्शी नेता और हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार (Dr. YS Parmar) के प्रयासों से 25 जनवरी 1971 को हिमाचल पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल करने वाला देश का 18वां प्रदेश बना. आरंभ से ही हिमाचल की राजनीति में ब्राह्मण और राजपूत वर्ग का वर्चस्व रहा है.

विभिन्न चरणों से गुरजरते हुए 1963 में हिमाचल विधानसभा के इतिहास में ऐसा दिन आया जब इसकी पहली बैठक हुई. हिमाचल में विधानसभा की निरंतरता इसी साल यानी वर्ष 1963 से मानी जाती है. वर्ष 1988 में हिमाचल विधानसभा ने रजत जयंती मनाई. बाद में पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने पर 1971-72 मेंं डी-लिमिटेशन (de-limitation) के बाद विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 68 हो गई.

हिमाचल विधानसभा ने अपने गठन के बाद से कई विलक्षण आयाम हासिल किए हैं. यह देश की पहली ई-विधानसभा है. सात साल पहले यह विधानसभा पूरी तरह से पेपरलेस हो गई थी. इसके अलावा यहां बजट भी पेपरलेस ही पेश किया जाता है. हिमाचल में डॉ. वाईएस परमार पहले मुख्यमंत्री थे वे राजपूत समुदाय से संबंध रखते थे. हिमाचल में डॉ. परमार के बाद रामलाल ठाकुर, वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh), प्रेमकुमार धूमल (Premkumar Dhumal) व मौजूदा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर (Chief Minister Jairam Thakur) राजपूत वर्ग से हैं. शांता कुमार(Shanta Kumar) दो बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे और वे ब्राह्मण वर्ग से संबंध रखते हैं.

मौजूदा सरकार में देखें तो मुख्यमंत्री के अलावा गोविंद सिंह ठाकुर, महेंद्र सिंह ठाकुर, राकेश पठानिया, बिक्रम सिंह ठाकुर, वीरेंद्र कंवर राजपूत समुदाय से हैं. हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के अध्यक्ष के तौर पर विपिन सिंह परमार (Vipin Singh Parmar) भी राजपूत वर्ग से हैं. हिमाचल में 12 जिलों में 68 विधानसभा क्षेत्र हैं और यहां 17 सीटें अनुसूचित जाति और 3 सीटें अनुसूचित जनजाति से संबंधित वर्ग के लिए हैं. वर्ष 2017 में हिमाचल विधानसभा में सामान्य वर्ग के लिए तय 48 सीटों में से 33 सीटों पर राजपूत चुनकर आए. भाजपा के 18, कांग्रेस के 12 और 2 आजाद उम्मीदवारों प्रकाश सिंह राणा व होशियार सिंह के अतिरिक्त एक मात्र वामपंथी विधायक राकेश सिंघा (Rakesh Singha) भी राजपूत हैं.

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2011 की जनगणना के अनुसार हिमाचल की आबादी 68 लाख 56 हजार 509 है. शेड्यूल कास्ट की आबादी 17 लाख 29 हजार 252( 25.22 प्रतिशत) एसटी 3 लाख 92 हजार 126 (5. 71 परसेंट) ओबीसी 9 लाख 27 हजार 452 (13.52 प्रतिशत) सवर्ण 50.72 प्रतिशत और अल्पसंख्यक 4.83 प्रतिशत हैं. सवर्ण जातियों में राजपूत 32.72 प्रतिशत, ब्राह्मण 18 प्रतिशत हैं. हिमाचल प्रदेश की सियासत की बात करें तो यहां राजपूतों का आरंभ से ही दबदबा है.

बड़े नेताओं में डॉ. वाईएस परमार, वीरभद्र सिंह, रामलाल ठाकुर, प्रेम कुमार धूमल, कर्म सिंह ठाकुर, ठाकुर जगदेव चंद, जयराम ठाकुर, अनुराग ठाकुर, जेबीएल खाची, कौल सिंह ठाकुर, गुलाब सिंह ठाकुर, महेश्वर सिंह, गंगा सिंह ठाकुर, महेंद्र सिंह ठाकुर, कुंजलाल ठाकुर, गोविंद सिंह ठाकुर, मेजर विजय सिंह मनकोटिया, प्रतिभा सिंह, स्व. सुजान सिंह पठानिया, गुमान सिंह ठाकुर, हर्षवर्धन सिंह, रामलाल ठाकुर, सुखविंद्र सिंह ठाकुर का नाम शामिल है. भाजपा और कांग्रेस दोनों में ही राजपूत नेताओं की धमक रही है.

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हिमाचल प्रदेश में चूंकि सियासत के क्षेत्र में अगड़ी जातियों का दबदबा रहा लिहाजा अभी तक कोई मुख्यमंत्री अनुसूचित जाति या अल्पसंख्यक समुदाय से नहीं रहा. इसका कारण ब्राह्मणों और राजपूतों की आबादी का प्रतिशत अधिक होना है. सुखद बात यह है कि अल्पसंख्यक समुदाय या अनुसूचित जाति से संबंधित नेताओं का भी पूरा मान है. हिमाचल में इस समय सत्ताधारी दल भाजपा के मुखिया अनुसूचित जाति से हैं. राज्य में स्वास्थ्य मंत्री का महत्वपूर्ण विभाग संभालने वाले डॉ. राजीव सैजल (Dr. Rajeev Saizal) भी अनुसूचित वर्ग से आते हैं.

वहीं, कद्दावर महिला नेता सरवीण चौधरी (Sarveen Choudhary) ओबीसी वर्ग से आती हैं और दूसरी बार कैबिनेट मंत्री बनी हैं. इसके अलावा सुखराम चौधरी भी कैबिनेट मंत्री हैं. रमेश धवाला भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं और ओबीसी वर्ग से प्रभावशाली राजनेता माने जाते हैं. अलबत्ता डेढ़ लाख की कुल आबादी वाले अल्पसंख्यक वर्ग के मुस्लिम समुदाय से हिमाचल में अबतक एक भी विधायक नहीं रहा है. राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ मीडिया कर्मी हेमंत कुमार के अनुसार हिमाचल में मुसलिम आबादी छोटे-छोटे पॉकेट्स में है और इस वर्ग में कोई प्रभावशाली नेता भी उभरकर नहीं आया. अलबत्ता हिमाचल में जितनी भी सरकारें रही हैं, सभी ने अल्पसंख्यकों को अपने साथ जोड़ने का प्रयास किया है.

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Last Updated : Sep 9, 2021, 7:03 PM IST
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