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बेसहारा मनोरोगियों का सहारा बन रही उमंग फाउंडेशन, पुलिस की सहायता से एक शख्स का किया रेस्क्यू - मनोरोगी का किया रेस्क्यू

उमंग फाउंडेशन के प्रयासों से पुलिस ने मनोरोगी को रेस्क्यू करके इंदिरा गांधी मेडिकल अस्पताल के मनोचिकित्सा विभाग में दाखिल कराया. डॉक्टरों का कहना है कि उसकी याददाश्त वापस आने की उम्मीद है. कुछ ही दिनों में उसे शिमला के राज्य मनोचिकित्सा अस्पताल में भेज दिया जाएगा.

फाइल फोटो
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Published : Aug 6, 2021, 7:24 PM IST

Updated : Aug 6, 2021, 7:31 PM IST

शिमला: बेतरतीब बढ़ी हुई दाढ़ी व बाल, बदबूदार कपड़े, बारिश में नंगे पैर दर-दर की ठोकरें. इस अनाम शख्स का कसूर सिर्फ यह था कि उसका मानसिक संतुलन बिगड़ा हुआ है. यह भी नहीं पता कि वह कहां से भटक कर ठियोग के पास जायस घाटी पहुंच गया.

उमंग फाउंडेशन के प्रयासों से उसे पुलिस ने रेस्क्यू करके इंदिरा गांधी मेडिकल अस्पताल के मनोचिकित्सा विभाग में दाखिल कराया. डॉक्टरों का कहना है कि उसकी याददाश्त वापस आने की उम्मीद है. कुछ ही दिनों में उसे शिमला के राज्य मनोचिकित्सा अस्पताल में भेज दिया जाएगा.

जायस घाटी के आशु चमन ने 2 दिन पहले उसे दयनीय हालात में बारिश में भटकते हुए देखा. उन्होंने इंटरनेट से स्टेट मेंटल हेल्थ अथॉरिटी के सदस्य और उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव का नंबर ढूंढ कर उन्हें फोन किया और उस व्यक्ति को बचाने के लिए अनुरोध किया.

ठियोग के डीएसपी लखबीर सिंह को फोन कर अजय श्रीवास्तव ने उस गुमनाम मनोरोगी को रेस्क्यू करने का अनुरोध किया. उन्होंने तुरंत कॉन्सटेबल गुलाब सिंह बिजटा को मौके पर भेजा. पुलिस के पहुंचने तक आशु चमन ने उस मनोरोगी को भगाने नहीं दिया. ठियोग पुलिस की संवेदनशीलता से एक बेसहारा मनोरोगी को बचा लिया गया.

प्रो. अजय श्रीवास्तव ने बताया कि मेंटल हेल्थ एक्ट 2017 में सड़कों पर घूमने वाले बेसहारा मनोरोगियों को रेस्क्यू करके अस्पताल में भर्ती कराने का प्रावधान है. कानून ने यह दायित्व पुलिस को दिया है. पुलिस ऐसे मनोरोगी को रेस्क्यू करके ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट से इलाज के लिए आदेश प्राप्त करती है. फिर उस का मुफ्त इलाज किया जाता है. प्रदेश हाईकोर्ट ने भी इस बारे में स्पष्ट आदेश दिए थे कि पुलिस इस कानून का सख्ती से पालन करें.

आईजीएमसी अस्पताल के मनोचिकित्सा विभाग के अध्यक्ष डॉ. दिनेश शर्मा ने कहा कि इस मनोरोगी के लक्षण देखकर लगता है कि इलाज के बाद इसकी याददाश्त वापस आ सकती है. उन्होंने कहा कि असली संतोष तो तब मिलेगा जब यह अपने घर वापस चला जाएगा.

उल्लेखनीय है कि उमंग फाउंडेशन द्वारा बेसहारा मनोरोगियों को बचाने का जन आंदलोन चलाने के बाद आम नागरिकों की सजगता से पिछले कुछ वर्षों में 300 से अधिक मनोरोगियों को रेस्क्यू किया जा चुका है. इनमें से कईयों को याददाश्त वापस आने के बाद अपने घर भी भेजा जा चुका है. किसी भी मनोरोगी को बेसहारा भटकता देख कोई भी व्यक्ति पुलिस को सूचना देकर उसे रेस्क्यू करवा सकता है.

ये भी पढ़ें: महंगाई के खिलाफ महिला कांग्रेस का विधानसभा के बाहर हल्ला बोल, केंद्र और प्रदेश की सरकार पर लगाए ये आरोप

शिमला: बेतरतीब बढ़ी हुई दाढ़ी व बाल, बदबूदार कपड़े, बारिश में नंगे पैर दर-दर की ठोकरें. इस अनाम शख्स का कसूर सिर्फ यह था कि उसका मानसिक संतुलन बिगड़ा हुआ है. यह भी नहीं पता कि वह कहां से भटक कर ठियोग के पास जायस घाटी पहुंच गया.

उमंग फाउंडेशन के प्रयासों से उसे पुलिस ने रेस्क्यू करके इंदिरा गांधी मेडिकल अस्पताल के मनोचिकित्सा विभाग में दाखिल कराया. डॉक्टरों का कहना है कि उसकी याददाश्त वापस आने की उम्मीद है. कुछ ही दिनों में उसे शिमला के राज्य मनोचिकित्सा अस्पताल में भेज दिया जाएगा.

जायस घाटी के आशु चमन ने 2 दिन पहले उसे दयनीय हालात में बारिश में भटकते हुए देखा. उन्होंने इंटरनेट से स्टेट मेंटल हेल्थ अथॉरिटी के सदस्य और उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव का नंबर ढूंढ कर उन्हें फोन किया और उस व्यक्ति को बचाने के लिए अनुरोध किया.

ठियोग के डीएसपी लखबीर सिंह को फोन कर अजय श्रीवास्तव ने उस गुमनाम मनोरोगी को रेस्क्यू करने का अनुरोध किया. उन्होंने तुरंत कॉन्सटेबल गुलाब सिंह बिजटा को मौके पर भेजा. पुलिस के पहुंचने तक आशु चमन ने उस मनोरोगी को भगाने नहीं दिया. ठियोग पुलिस की संवेदनशीलता से एक बेसहारा मनोरोगी को बचा लिया गया.

प्रो. अजय श्रीवास्तव ने बताया कि मेंटल हेल्थ एक्ट 2017 में सड़कों पर घूमने वाले बेसहारा मनोरोगियों को रेस्क्यू करके अस्पताल में भर्ती कराने का प्रावधान है. कानून ने यह दायित्व पुलिस को दिया है. पुलिस ऐसे मनोरोगी को रेस्क्यू करके ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट से इलाज के लिए आदेश प्राप्त करती है. फिर उस का मुफ्त इलाज किया जाता है. प्रदेश हाईकोर्ट ने भी इस बारे में स्पष्ट आदेश दिए थे कि पुलिस इस कानून का सख्ती से पालन करें.

आईजीएमसी अस्पताल के मनोचिकित्सा विभाग के अध्यक्ष डॉ. दिनेश शर्मा ने कहा कि इस मनोरोगी के लक्षण देखकर लगता है कि इलाज के बाद इसकी याददाश्त वापस आ सकती है. उन्होंने कहा कि असली संतोष तो तब मिलेगा जब यह अपने घर वापस चला जाएगा.

उल्लेखनीय है कि उमंग फाउंडेशन द्वारा बेसहारा मनोरोगियों को बचाने का जन आंदलोन चलाने के बाद आम नागरिकों की सजगता से पिछले कुछ वर्षों में 300 से अधिक मनोरोगियों को रेस्क्यू किया जा चुका है. इनमें से कईयों को याददाश्त वापस आने के बाद अपने घर भी भेजा जा चुका है. किसी भी मनोरोगी को बेसहारा भटकता देख कोई भी व्यक्ति पुलिस को सूचना देकर उसे रेस्क्यू करवा सकता है.

ये भी पढ़ें: महंगाई के खिलाफ महिला कांग्रेस का विधानसभा के बाहर हल्ला बोल, केंद्र और प्रदेश की सरकार पर लगाए ये आरोप

Last Updated : Aug 6, 2021, 7:31 PM IST
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