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शिमला नगर निगम की मांग, वन क्षेत्र को लाया जाए MC के अधीन - उप महापौर शेलेन्द्र चौहान

नगर निगम के उप महापौर शेलेन्द्र चौहान का कहना है कि सरकार ने पहले वन क्षेत्र निगम से ले लिया और उसके बाद पानी के वितरण का अधिकार भी जल निगम को दे दिया. निगम के पास ज्यादातर आय इन्हीं से होती थी.

MC raised demand from government to return forest area
MC शिमला
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Published : Jul 3, 2020, 5:43 PM IST

शिमलाः कोरोना महामारी के चलते आर्थिक तंगी से जूझ रहे नगर निगम ने अब वन क्षेत्र वापस लेने को लेकर कसरत शुरू कर दी है. नगर निगम की ओर से मामले को लेकर प्रदेश सरकार को पत्र लिखा गया है, ताकि सरकार इसको लेकर जल्द कोई फैसला करे.

निगम ने पहले ही मामला सरकार को भेज दिया था, लेकिन सरकार ने वन विभाग को फाइल भेज दी थी. नगर निगम का तर्क है कि वन क्षेत्र पहले नगर निगम के पास ही था, लेकिन इसे सरकार ने वापस ले लिया है. जबकि शहर में जंगलों की देख-रेख सफाई व्यवस्था के साथ खतरनाक पेड़ काटने का काम भी निगम करता है.

वीडियो रिपोर्ट

निगम के वन क्षेत्र का वन विभाग के पास होने से खतरनाक पेड़ों को काटने में मुश्किल होती है. पेड़ भी जगह-जगह गिरे होते हैं. जिन्हें वन विभाग नहीं हटा रहा है. निगम अपने स्तर पर पेड़ों को काटने की अनुमति नहीं दे सकता है. वहीं, वन क्षेत्र नगर निगम के पास आने से निगम की आय बढ़ेगी.

नगर निगम के उप महापौर शेलेन्द्र चौहान का कहना है कि सरकार ने पहले वन क्षेत्र निगम से ले लिया और उसके बाद पानी के वितरण का अधिकार भी जल निगम को दे दिया. निगम के पास ज्यादातर आय इन्हीं से होती थी. वहीं, आय के स्त्रोत कम होने से आर्थिक स्थिति भी कभी-कभी खराब हो जाती है. उन्होंने सरकार से वन क्षेत्र को वापस नगर निगम को देने की मांग की.

बता दें कि कोविड-19 के चलते पहले ही नगर निगम की आर्थिक स्थिति डगमगाने लगी है. वहीं, कोरोना संकट को देखते हुए कई वर्गों को कूड़ा और किराए के साथ पार्किंग संचालकों को शुल्क में भी दो माह की छूट दे दी है. होटल मालिक भी प्रॉपर्टी टैक्स में राहत देने की मांग कर रहे हैं. ऐसे में निगम को आर्थिक तंगी से जूझना पड़ सकता है.

ये भी पढे़: HRD मंत्री से मिले अनुराग, NIT हमीरपुर पर लगे कथित भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच की रखी मांग

शिमलाः कोरोना महामारी के चलते आर्थिक तंगी से जूझ रहे नगर निगम ने अब वन क्षेत्र वापस लेने को लेकर कसरत शुरू कर दी है. नगर निगम की ओर से मामले को लेकर प्रदेश सरकार को पत्र लिखा गया है, ताकि सरकार इसको लेकर जल्द कोई फैसला करे.

निगम ने पहले ही मामला सरकार को भेज दिया था, लेकिन सरकार ने वन विभाग को फाइल भेज दी थी. नगर निगम का तर्क है कि वन क्षेत्र पहले नगर निगम के पास ही था, लेकिन इसे सरकार ने वापस ले लिया है. जबकि शहर में जंगलों की देख-रेख सफाई व्यवस्था के साथ खतरनाक पेड़ काटने का काम भी निगम करता है.

वीडियो रिपोर्ट

निगम के वन क्षेत्र का वन विभाग के पास होने से खतरनाक पेड़ों को काटने में मुश्किल होती है. पेड़ भी जगह-जगह गिरे होते हैं. जिन्हें वन विभाग नहीं हटा रहा है. निगम अपने स्तर पर पेड़ों को काटने की अनुमति नहीं दे सकता है. वहीं, वन क्षेत्र नगर निगम के पास आने से निगम की आय बढ़ेगी.

नगर निगम के उप महापौर शेलेन्द्र चौहान का कहना है कि सरकार ने पहले वन क्षेत्र निगम से ले लिया और उसके बाद पानी के वितरण का अधिकार भी जल निगम को दे दिया. निगम के पास ज्यादातर आय इन्हीं से होती थी. वहीं, आय के स्त्रोत कम होने से आर्थिक स्थिति भी कभी-कभी खराब हो जाती है. उन्होंने सरकार से वन क्षेत्र को वापस नगर निगम को देने की मांग की.

बता दें कि कोविड-19 के चलते पहले ही नगर निगम की आर्थिक स्थिति डगमगाने लगी है. वहीं, कोरोना संकट को देखते हुए कई वर्गों को कूड़ा और किराए के साथ पार्किंग संचालकों को शुल्क में भी दो माह की छूट दे दी है. होटल मालिक भी प्रॉपर्टी टैक्स में राहत देने की मांग कर रहे हैं. ऐसे में निगम को आर्थिक तंगी से जूझना पड़ सकता है.

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