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धरने पर बैठे HRTC पीसमील कर्मी, सरकार से अनुबंध नीति में लाने की मांग - एचआरटीसी प्रबंधन

एचआरटीसी पीस मिल कर्मचारियों ने शिमला में धरना प्रदर्शन किया. कर्मचारी प्रदेश सरकार से इन्हें अनुबंध नीति में लाने की मांग कर रहे हैं. मंच के महासचिव हरि कृष्ण शर्मा ने कहा कि सरकार की ओर से अनुबंध नीति में शामिल न करने की वजह से करीब 950 पीसमील कर्मचारी परेशान हैं.

धरने पर बैठे HRTC पीसमील कर्मी
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Published : Aug 3, 2021, 2:59 PM IST

शिमलाः हिमाचल पथ परिवहन निगम पीस मिल कर्मचारी धरने पर बैठ गए हैं. यह पीसमील कर्मचारी हिमाचल प्रदेश सरकार से इन्हें अनुबंध नीति में लाने की मांग कर रहे हैं. पीसमील कर्मचारियों का कहना है कि जब तक सरकार उनकी मांगें नहीं मानेगी, तब तक धरना प्रदर्शन इसी तरह जारी रहेगा. इन कर्मचारियों का कहना है कि यह लंबे समय से एचआरटीसी के लिए सेवा दे रहे हैं, लेकिन निगम इनकी सुध नहीं ले रहा है.


हिमाचल पथ परिवहन निगम पीस मील कर्मचारी मंच के महासचिव हरिकृष्ण शर्मा का कहना है कि साल 2015 में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की बैठक में पीस मील कर्मचारियों को अनुबंध नीति में लाने की बात कही गई थी. इसके बाद 450 कर्मचारियों को निगम की ओर से अनुबंध नीति में लाया गया लेकिन जुलाई, 2017 के बाद निगम ने पीसमील कर्मचारियों को नीति के तहत लेना बंद कर दिया.

वीडियो.

मंच के महासचिव हरि कृष्ण शर्मा ने कहा कि सरकार की ओर से अनुबंध नीति में शामिल न करने की वजह से करीब 950 पीसमील कर्मचारी परेशान हैं. उन्होंने कहा कि महंगाई के इस दौर में भी पीसमील कर्मचारियों को 3 हजार से 3500 रुपए का ही वेतन दिया जा रहा है. महंगाई के इस दौर में उनके लिए गुजर-बसर करना मुश्किल हो गया है.

महासचिव हरि कृष्ण शर्मा ने कहा कि इससे पहले सरकार ने पीसमील कर्मचारी के तौर पर 5 साल का कार्यकाल पूरा कर चुके आईटीआई होल्डर और 6 साल का कार्यकाल पूरा कर चुके गैर आईटीआई होल्डर को अनुबंध नीति के तहत लाया था. मंच ने हिमाचल सरकार और पथ परिवहन निगम के अधिकारियों से मांग की है कि उनके लिए जल्द से जल्द अनुबंध नीति को बहाल किया जाए. जिस तरह पहले कर्मचारियों को नमन नीति के तहत लाया गया, ठीक उसी तरह इन 950 कर्मचारियों को अनुबंध नीति के तहत लाया जाए.

बता दें कि पीसमील कर्मचारी हिमाचल पथ परिवहन निगम की कार्यशाला में टेक्निकल काम करते हैं. इसमें बस के टायर बदलने, सीट कवर लगाने, पेंट, इलेक्ट्रीशियन आदि का काम शामिल है. इस काम की बदले निगम की ओर से उन्हें प्रति काम के मुताबिक धन भुगतान किया जाता है. इन पीसमील कर्मचारियों को हर माह केवल तीन हजार से तीन हजार पांच सौ रुपये का ही भुगतान होता है.

वहीं, दूसरी ओर हिमाचल में एचआरटीसी और निजी बस ऑपरेटर एक बार फिर आमने-सामने आ गए हैं. हिमाचल परिवहन कर्मचारी संयुक्त समन्वय समिति के सचिव हेमेंद्र गुप्ता ने निजी बस ऑपरेटर पर मनमानी करने के आरोप लगाए हैं. उन्होंने कहा कि निजी बस ऑपरेटरों को प्रदेश परिवहन नीति 2004 और 2014 के प्रावधानों का उल्लंघन कर रूट परमिट दिए गए हैं. इसकी पुष्टि एजी हिमाचल प्रदेश ने 2016-17 में अपनी ऑडिट रिपोर्ट से होती है. उन्होंने कहा कि परिवहन नीति 2004 के अनुसार निजी बसों को 60 फीसदी ग्रामीण और 40 फीसदी राष्ट्रीय राजमार्ग और राज्य राजमार्ग की शर्त को पूरा करने वाले निजी बस ऑपरेटर को ही रूट परमिट दिए जा सकते हैं, लेकिन अधिकांश रूट संशोधन कर नीति के खिलाफ रूट दिए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि हिमाचल परिवहन कर्मचारी संयुक्त समिति यह मांग करेगी कि हिमाचल में भी उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और हरियाणा की तर्ज पर प्राइवेट बसों को परिवहन निगम के बस अड्डों में प्रवेश न मिले.


वहीं, मामले में हिमाचल प्रदेश निजी बस ऑपरेटर यूनियन के महासचिव रमेश कमल का कहना है कि एचआरटीसी के चालक-परिचालक निजी बस ऑपरेटरों को धमकी देने का काम कर रहे हैं. उन्होंने चुनौती देते हुए कहा कि एचआरटीसी के चालक-परिचालक 1 हफ्ते के लिए बसों का प्रवेश रोक कर दिखाएं. उन्होंने कहा कि एचआरटीसी के कर्मचारियों को इस तरह की गैर जिम्मेदाराना बयानबाजी नहीं करनी चाहिए. यह उन्हें शोभा नहीं देती. उन्होंने कहा कि कुछ कर्मचारी अपनी राजनीति चमकाने के लिए इस तरह की बयानबाजी करते हैं. उन्होंने कहा कि निजी बस ऑपरेटर बस अड्डे में प्रवेश के लिए बकायदा शुल्क चुकाते हैं. ऐसे में उन्हे बस अड्डे में प्रवेश करने से रोका नहीं जा सकता. उन्होंने एचआरटीसी प्रबंधन से भी मामले में हस्तक्षेप की मांग की है. रमेश कमल ने इस तरह की बयानबाजी करने वाले कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है.

ये भी पढ़ें- CITU-CPIM नेताओं पर कर्मचारियों से ठगी का आरोप, अनिल मनकोटिया ने एसपी को दी शिकायत

शिमलाः हिमाचल पथ परिवहन निगम पीस मिल कर्मचारी धरने पर बैठ गए हैं. यह पीसमील कर्मचारी हिमाचल प्रदेश सरकार से इन्हें अनुबंध नीति में लाने की मांग कर रहे हैं. पीसमील कर्मचारियों का कहना है कि जब तक सरकार उनकी मांगें नहीं मानेगी, तब तक धरना प्रदर्शन इसी तरह जारी रहेगा. इन कर्मचारियों का कहना है कि यह लंबे समय से एचआरटीसी के लिए सेवा दे रहे हैं, लेकिन निगम इनकी सुध नहीं ले रहा है.


हिमाचल पथ परिवहन निगम पीस मील कर्मचारी मंच के महासचिव हरिकृष्ण शर्मा का कहना है कि साल 2015 में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की बैठक में पीस मील कर्मचारियों को अनुबंध नीति में लाने की बात कही गई थी. इसके बाद 450 कर्मचारियों को निगम की ओर से अनुबंध नीति में लाया गया लेकिन जुलाई, 2017 के बाद निगम ने पीसमील कर्मचारियों को नीति के तहत लेना बंद कर दिया.

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मंच के महासचिव हरि कृष्ण शर्मा ने कहा कि सरकार की ओर से अनुबंध नीति में शामिल न करने की वजह से करीब 950 पीसमील कर्मचारी परेशान हैं. उन्होंने कहा कि महंगाई के इस दौर में भी पीसमील कर्मचारियों को 3 हजार से 3500 रुपए का ही वेतन दिया जा रहा है. महंगाई के इस दौर में उनके लिए गुजर-बसर करना मुश्किल हो गया है.

महासचिव हरि कृष्ण शर्मा ने कहा कि इससे पहले सरकार ने पीसमील कर्मचारी के तौर पर 5 साल का कार्यकाल पूरा कर चुके आईटीआई होल्डर और 6 साल का कार्यकाल पूरा कर चुके गैर आईटीआई होल्डर को अनुबंध नीति के तहत लाया था. मंच ने हिमाचल सरकार और पथ परिवहन निगम के अधिकारियों से मांग की है कि उनके लिए जल्द से जल्द अनुबंध नीति को बहाल किया जाए. जिस तरह पहले कर्मचारियों को नमन नीति के तहत लाया गया, ठीक उसी तरह इन 950 कर्मचारियों को अनुबंध नीति के तहत लाया जाए.

बता दें कि पीसमील कर्मचारी हिमाचल पथ परिवहन निगम की कार्यशाला में टेक्निकल काम करते हैं. इसमें बस के टायर बदलने, सीट कवर लगाने, पेंट, इलेक्ट्रीशियन आदि का काम शामिल है. इस काम की बदले निगम की ओर से उन्हें प्रति काम के मुताबिक धन भुगतान किया जाता है. इन पीसमील कर्मचारियों को हर माह केवल तीन हजार से तीन हजार पांच सौ रुपये का ही भुगतान होता है.

वहीं, दूसरी ओर हिमाचल में एचआरटीसी और निजी बस ऑपरेटर एक बार फिर आमने-सामने आ गए हैं. हिमाचल परिवहन कर्मचारी संयुक्त समन्वय समिति के सचिव हेमेंद्र गुप्ता ने निजी बस ऑपरेटर पर मनमानी करने के आरोप लगाए हैं. उन्होंने कहा कि निजी बस ऑपरेटरों को प्रदेश परिवहन नीति 2004 और 2014 के प्रावधानों का उल्लंघन कर रूट परमिट दिए गए हैं. इसकी पुष्टि एजी हिमाचल प्रदेश ने 2016-17 में अपनी ऑडिट रिपोर्ट से होती है. उन्होंने कहा कि परिवहन नीति 2004 के अनुसार निजी बसों को 60 फीसदी ग्रामीण और 40 फीसदी राष्ट्रीय राजमार्ग और राज्य राजमार्ग की शर्त को पूरा करने वाले निजी बस ऑपरेटर को ही रूट परमिट दिए जा सकते हैं, लेकिन अधिकांश रूट संशोधन कर नीति के खिलाफ रूट दिए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि हिमाचल परिवहन कर्मचारी संयुक्त समिति यह मांग करेगी कि हिमाचल में भी उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और हरियाणा की तर्ज पर प्राइवेट बसों को परिवहन निगम के बस अड्डों में प्रवेश न मिले.


वहीं, मामले में हिमाचल प्रदेश निजी बस ऑपरेटर यूनियन के महासचिव रमेश कमल का कहना है कि एचआरटीसी के चालक-परिचालक निजी बस ऑपरेटरों को धमकी देने का काम कर रहे हैं. उन्होंने चुनौती देते हुए कहा कि एचआरटीसी के चालक-परिचालक 1 हफ्ते के लिए बसों का प्रवेश रोक कर दिखाएं. उन्होंने कहा कि एचआरटीसी के कर्मचारियों को इस तरह की गैर जिम्मेदाराना बयानबाजी नहीं करनी चाहिए. यह उन्हें शोभा नहीं देती. उन्होंने कहा कि कुछ कर्मचारी अपनी राजनीति चमकाने के लिए इस तरह की बयानबाजी करते हैं. उन्होंने कहा कि निजी बस ऑपरेटर बस अड्डे में प्रवेश के लिए बकायदा शुल्क चुकाते हैं. ऐसे में उन्हे बस अड्डे में प्रवेश करने से रोका नहीं जा सकता. उन्होंने एचआरटीसी प्रबंधन से भी मामले में हस्तक्षेप की मांग की है. रमेश कमल ने इस तरह की बयानबाजी करने वाले कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है.

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