शिमला: भाजपा हाईकमान ने राज्यसभा के लिए हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सिकंदर कुमार (HPU VC Dr Sikander Kumar) के नाम की स्वीकृति दे दी है. लेकिन हिमाचल भाजपा के इतिहास में ऐसा बहुत कम हुआ है कि चुनाव समिति की बैठक के बिना ही सीधा हाईकमान ने राज्यसभा का उम्मीदवार तय किया गया है. न तो भाजपा प्रदेश चुनाव समिति की बैठक हुई और न ही संभावित चेहरों के नाम दिल्ली भेजे गए यहां तक कि कल शाम तक तो प्रदेश भाजपा के आला नेताओं तक को यह ज्ञात नहीं की राज्यसभा किसे भेजा जा रहा है.
ऐसे में भाजपा केंद्रीय कार्यालय की तरफ से ट्वीट कर हिमाचल से राज्यसभा के लिए डॉ. सिकंदर के नाम की स्वीकृति जारी होने पर सब हैरान रह जाते हैं. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि प्रदेश में डॉ. सिकंदर का कोई बड़ा राजनीतिक रसूख नहीं है और न ही जनता में उनकी कोई पैठ है, जिसका भाजपा को लाभ मिल (Sikander Kumar BJP Rajya Sabha candidate) सके. राजनीति तौर पर डॉ. सिकंदर इससे पहले एससी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं. उस समय भी वह कोई बड़ा कार्य नहीं कर सके थे जिससे भाजपा को लाभ मिला हो या फिर बड़ी संख्या में अनुसूचित जाति के लोग भाजपा से जुड़े हों.
हमीरपुर जिले से रखते हैं संबंध: इसके अलावा वह हमीरपुर जिले से संबंध रखते हैं. वहां भी उनका राजनीतिक कद इतना बड़ा नहीं है. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार इस प्रकार के फैसलों से उन कार्यकर्ताओं पर असर पड़ता है जो वर्षों से बिना किसी लाभ के पार्टी की सेवा कर रहे (Sikander approved as Rajya Sabha candidate) हैं. आखिर क्यों दरकिनार हुई प्रदेश चुनाव समिति राज्य सभी सीट के लिए सीधे केंद्रीय चुनाव समिति का फैसला आना और प्रदेश में किसी भी प्रकार का चर्चा ना होना पार्टी में एक नया चलन देखा जा रहा है.
प्रदेश स्तर से न तो प्रदेश चुनाव समिति बैठक की खबरें आई और न ही राज्यसभा सीट को लेकर नेताओं में किसी प्रकार की बैठकों का दौर चला. इसके लिए पिछली बार राज्यसभा सीट के लिए हुए चुनावों पर एक नजर दौड़ानी जरूरी हो जाती है. दरअसल पिछली बार जब इंदु गोस्वामी राज्यसभा गई थी, उस वक्त पार्टी हाईकमान ने तीन बार प्रदेश चुनाव समिति के नाम मंगवाए थे और बाद में इंदु गोस्वामी के नाम भी हाईकमान की तरफ से ही भेजा गया था, जबकि इंदु गोस्वामी का नाम हिमाचल चुनाव समिति की तरफ से भेजा ही नहीं गया था.
हिमाचल से 4 वरिष्ठ नेताओं के नाम भेजे गए थे और ये नाम मीडिया में भी आ गए थे, लेकिन जब हाईकमान की तरफ से फाइनल नाम आया तो सब हैरान हो गए. ऐसे में अगर हाईकमान को ही सब तय करना है तो इस बार प्रदेश चुनाव समिति की मीटिंग ना करना ही बेहतर समझा गया. एक और कारण यह माना जा रहा है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी हिमाचल प्रदेश से हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कुछ समय तक हिमाचल में कार्य कर चुके हैं और प्रदेश के कार्यकर्ताओं को भली भांति जानते हैं. लेकिन इतने महत्वपूर्ण निर्णय से प्रदेश नेतृत्व को दूर रखना पार्टी के लिए कितना लाभदायक होगा यह तो भविष्य ही बताएगा.
राष्ट्रपति के बेहद करीबी माने जाते हैं डॉ. सिकंदर: डॉ. सिकंदर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का बेहद करीबी समझा जाता है. जानकारों के अनुसार डॉ. सिकंदर जितनी बार भी दिल्ली जाते हैं हमेशा राष्ट्रपति निवास जाना होता है. ऐसे में समझा जा रहा है कि उनको राज्यसभा भेजने के पीछे राष्ट्रपति की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. इसके अलावा उनके वीसी रहते हुए प्रदेश विश्वविद्यालय में भर्तियों का मामला भी काफी चर्चा में रहा है.
विधानसभा में विपक्ष ने हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी में भर्तियों के मामले पर प्रदेश सरकार को खूब घेरा था. नेता प्रतिपक्ष सहित विपक्ष के विधायकों ने भर्तियों पर सवाल उठाते हुए कहा था कि सभी वर्तमान कार्यकाल में सभी भर्तियां एक विशेष संगठन से जुड़े हुए लोगों की हो रही हैं. पहली बार दलित चेहरे को राज्यसभा भेज रही भाजपा हिमाचल से पहली बार किसी दलित चेहरे को राज्यसभा भेज रही है, इसका पार्टी को आने वाले चुनावों में कितना लाभ मिलेगा यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन वर्तमान में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप भी अनुसूचित वर्ग से ही आते हैं.
बावजूद इसके उपचुनावों में भाजपा अनुसूचित जाति के मतदाताओं को अपनी तरफ आकर्षित करने में असफल रही है. हालांकि सुरेश कश्यप ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत पंचायती राज चुनावों से की थी और विधायक भी जीत चुके हैं जिसके बाद अब सांसद हैं. इतना राजनीतिक अनुभव होने के बावजूद भी वह अनुसूचित जाति का वोट भाजपा की तरफ आकर्षित करने में नाकाम रहे हैं. अब डॉ. सिकंदर क्या कुछ कर पाएंगे यह तो वक्त ही बताएगा. राजनीति में रुचि रखने वाले भाजपा के इस फैसले को सही बता रहे हैं इनका कहना है कि राज्यसभा में शिक्षा और कला जगत से जुड़े लोगों का होना जरूरी है. इससे लोकतंत्र को मजबूती मिलती है.
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