शिमला: हिमाचल के पड़ोसी राज्य पंजाब में सरकार बदल चुकी है. कांग्रेस और अकाली भाजपा गठजोड़ को लंबे अर्से से बारी-बारी सत्ता में देखने के बाद पंजाब में बदलाव हुआ है. अब आम आदमी पार्टी सत्ता में है. इससे पूर्व पंजाब में बेशक भाजपा की सहयोगी पार्टी अकाली दल शासन में रहा हो, लेकिन हिमाचल को पंजाब पुनर्गठन के बाद अपना हक नहीं मिला है. हिमाचल के पानी से देश के कई राज्य रोशन हुए, लेकिन हिमाचल के हिस्से का खजाना अंधेरे में ही रहा है. हिमाचल को पंजाब से भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड की हिस्सेदारी में 2 हजार करोड़ से अधिक की रकम मिलनी है. सुप्रीम कोर्ट भी एक दशक पहले हिमाचल के हक में फैसला दे चुका है, लेकिन पंजाब के साथ-साथ हरियाणा भी देवभूमि के हितों को नजरअंदाज करता आ रहा है.
बीबीएमबी प्रोजेक्ट्स में हिमाचल को पूर्णकालिक सदस्य बनाने की मांग: इधर हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि चंडीगढ़ में अब पंजाब व हरियाणा के बजाय केंद्रीय कैडर के प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त होंगे. इस पर पंजाब के नेताओं ने कड़ी प्रतिक्रिया जारी की है. अकाली सांसद हरसिमरत कौर ने कहा है कि चंडीगढ़ पंजाब के लिए भावनात्मक मुद्दा है और पंजाब को उसकी राजधानी वापस मिलनी चाहिए. उधर, पीजीआई चंडीगढ़ में हिमाचल सरकार के भी प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त होते हैं. बीबीएमबी यानी भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड में भी हिमाचल अपना हक मांगता रहा है. यहां हम बीबीएमबी में हिमाचल के हकों और अन्य मसलों पर चर्चा करेंगे. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सितंबर 2019 में चंडीगढ़ में आयोजित नॉर्थ जोन काउंसिल की बैठक में मुद्दा उठाया था कि हिमाचल को बीबीएमबी प्रोजेक्ट्स में पूर्णकालिक सदस्य बनाया जाए.
हिस्सेदारी का मामला दशकों से लंबित है: सीएम जयराम ठाकुर ने केंद्र सरकार से आग्रह किया था कि हिमाचल की मांग को पूरा किया जाए, ताकि इन प्रोजेक्ट्स के हिमाचल से संबंधित लंबित मामलों का निपटारा हो सके. यह पहली बार नहीं था, जब हिमाचल सरकार ने नॉर्थ जोन काउंसिल में ये मांग उठाई हो. हिमाचल में सरकार चाहे भाजपा की रही हो या फिर कांग्रेस की, बीबीएमबी परियोजनाओं में हिस्सेदारी का मामला दशकों से लंबित है. वर्ष 2017 के आखिर में सत्ता में आई भाजपा सरकार ने बीबीएमबी मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू न करने पर अवमानना याचिका दाखिल करने की तैयारी कर ली थी. पंजाब सरकार दशकों से हिमाचल के साथ टालमटोल वाला रवैया अपनाए हुए है. जुलाई 2018 में हरियाणा ने तो देनदारी अदा करने के लिए संकेत दिए थे, लेकिन पंजाब का रवैया कभी भी सहयोग का नहीं रहा.
बिजली पर रॉयलटी: जुलाई 2018 की बात है शिमला में राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के ऊर्जा मंत्रियों का सम्मेलन हुआ था. उस सम्मेलन में हिमाचल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि राज्य से बहने वाली नदियों से पैदा हो रही बिजली पर रॉयलटी मिलनी चाहिए. भाखड़ा बांध और पौंग बाध जैसी बड़ी बिजली परियोजनाएं हिमाचल की धरती पर हैं, लेकिन हिमाचल प्रदेश को उसका जायज हक जो वैधानिक तरीके से तय है वो नहीं मिल रहा है. इसी तरह जनवरी 2018 में साल की पहली कैबिनेट बैठक में नई-नई सत्ता में आई जयराम सरकार ने भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड में एरियर के सैटलमेंट को लेकर कैबिनेट मंजूरी दी थी.
कुल 13066 मिलियन यूनिट ऊर्जा से हिमाचल को ढाई रुपए प्रति यूनिट की दर से 3266 करोड़ रुपए की राशि मिलनी है. हिमाचल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 27 सितंबर 2011 को राज्य के हक में दिए गए फैसले की अनुपालना में बीबीएमबी परियोजनाओं में बकायों के निपटारे को मंजूरी दी थी. ये एक तय शासकीय प्रक्रिया है. हिमाचल ने अपना हक पाने के तमाम प्रयास किए, लेकिन अभी तक ना तो पंजाब और ना ही हरियाणा और राजस्थान से हिमाचल के ड्यू हक मिले हैं.
मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने नरेंद्र मोदी के समक्ष हिमाचल के मुद्दे उठाए थे: भाजपा से पूर्व हिमाचल में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार थी. तब वीरभद्र सरकार के कैबिनेट मंत्री कौल सिंह ठाकुर ने तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के समक्ष भी बीबीएमबी परियोजनाओं में हिमाचल के हक की अदायगी की मांग उठाई थी. यही नहीं कौल सिंह ठाकुर ने पंजाब और हरियाणा के खिलाफ अंतरराज्यीय ऊर्जा समझौता की दर के अनुसार एरियर के दावे की गणना करने की मांग उठाई थी. अक्तूबर 2016 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार हिमाचल आए तो तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने नरेंद्र मोदी के समक्ष हिमाचल के मुद्दे उठाए.
उन्होंने प्रधानमंत्री को हिमाचल से जुड़ी 12 मांगों वाला ज्ञापन दिया था. तब वीरभद्र सिंह ने भी कहा था कि बीबीएमबी परियोजनाओं में प्रबंधन बोर्ड के पूर्ण कालीन सदस्य के रूप में हिमाचल को शामिल किया जाए. जब जयराम ठाकुर सत्ता में आए तब उन्होंने भी केंद्र सरकार से यही आग्रह किया था, लेकिन हिमाचल की इस मांग को निरंतर अनसुना किया जा रहा है. ना तो 27 सितंबर 2011 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार हिमाचल को एरियर मिला है और ना ही बीबीएमबी में पूर्ण कालीक सदस्य के तौर पर हिस्सेदारी.
भाखड़ा बांध परियोजना में हिमाचल ने बेशकीमती जमीन दी थी. तब 2017 में हिमाचल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि पंजाब और हरियाणा के खिलाफ एरियर दावों की गणना नेशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड की दरों पर की गई है, जो पूरी तरह से अनुचित है. इन दरों को अन्तरराज्यीय ऊर्जा समझौता दरों के अनुसार गणना में लाया जाए. पंजाब से इतर हिमाचल के हरियाणा के साथ भी कई लंबित मसले हैं. हिमाचल को बद्दी तक रेल लाने के लिए जमीन अधिग्रहण की जरूरत है. हरियाणा सरकार के साथ ये मसला भी चल रहा है. इस रेल लाइन के लिए हरियाणा के दायरे में 52 एकड़ जमीन है. इसमें से 27 एकड़ सरकारी जमीन है और बाकी निजी भूमि है. हिमाचल के राज्यपाल रहे बंडारू दत्तात्रेय जब हरियाणा के राज्यपाल नियुक्त होकर जा रहे थे तो उन्होंने भरोसा दिलाया था कि हिमाचल की देनदारी को लेकर हरियाणा सरकार से बात करेंगे.
पंजाब व हरियाणा से हिमाचल को 4200 करोड़ रुपए मिलने हैं: उल्लेखनीय है कि हिमाचल व पंजाब के पुनर्गठन के समय कुछ इलाके हिमाचल में शामिल हुए थे. भाखड़ा-ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड के तहत चल रही बिजली परियोजनाओं में हिमाचल का हिस्सा जो पहले ढाई फीसदी थी, पुनर्गठन के बाद 7.19 फीसदी तय हुआ था. अपने हक के लिए राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी और करीब एक दशक पहले 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल के पक्ष में फैसला दिया था. पंजाब व हरियाणा से हिमाचल को 4200 करोड़ रुपए मिलने हैं.
पंजाब पुनर्गठन कानून के तहत हिमाचल बीबीएमबी प्रोजेक्टों भाखड़ा, डैहर और पौंग में 7.19 फीसदी की हिस्सेदारी मांग रहा है. हिस्सेदारी के मुद्दे पर पड़ोसी राज्यों पंजाब व हरियाणा के साथ साथ राजस्थान के भी अड़ियल रवैये को देखते हुए हिमाचल सरकार ने करीब दो दशक पहले सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी. तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने ये याचिका दाखिल की थी. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने जब फैसला दिया तो हिमाचल में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी.
फिर वर्ष 2011 के बाद बीबीएमबी प्रोजेक्टों में प्रदेश को हिस्सेदारी मिल रही है, मगर हिमाचल सरकार को इससे पहले के करीब 42 सौ करोड़ के एरियर की देनदारी पंजाब व हरियाणा ने नहीं की है. वर्ष 1966 के पंजाब पुनर्गठन कानून के तहत प्रदेश सरकार भाखड़ा में 2724 करोड़, डैहर में 1034.54 करोड़ और पौंग प्रोजेक्ट में 491.89 करोड़ की हिस्सेदारी की मांग कर रही है.
पंजाब सरकार ने पहले ये प्रस्ताव किया कि बीबीएमबी परियोजनाओं से हिमाचल पंजाब को मिलने वाली बिजली से कुछ बिजली बेचे और दस साल में अपना बकाया पूरा कर ले. हिमाचल इस पर राजी होने की बात सोच ही रहा था कि बाद में पंजाब ने ये मियाद दस की बजाय बीस साल करने को कहा. अभी भी ये मसला सुलझा नहीं है. हिमाचल सरकार केे मंत्री जब भी दिल्ली दौरे पर जाते हैं तो संबंधित मंत्रियों से इस विषय पर चर्चा करते हैं.
पूर्व में हिमाचल सरकार के राजस्व मंत्री रहे डॉ. राजन सुशांत का कहना है कि पंजाब ने बीबीएमबी प्रोजेक्ट्स में हिमाचल के हकों को अदा करने में कोई रुचि नहीं दिखाई है. हिमाचल प्रदेश को करोड़ों रुपए के एरियर का नुकसान झेलना पड़ रहा है. हिमाचल ने अपने संसाधन खोए, लेकिन ना तो केंद्र सरकार और ना ही अन्य संबंधित सरकारों ने हिमाचल की मांग पूरी की. पूर्व आईएएस अधिकारी केआर भारती का कहना है कि यदि हिमाचल को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार बीबीएमबी परियोजनाओं में तमाम हक मिलते हैं तो राज्य की आर्थिक स्थिति के लिए यह बड़ा सहारा होगा.
भारती का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट तो हिमाचल के पक्ष में फैसला दे चुका है, लेकिन पड़ोसी राज्यों की खींचतान में हिमाचल का नुकसान हो रहा है. उन्होंने कहा कि इस मामले में हिमाचल को सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल करने के विकल्प पर विचार करना चाहिए. वहीं, राज्य के ऊर्जा मंत्री सुखराम चौधरी का कहना है कि केंद्र से तो हिमाचल को भरपूर सहयोग मिल रहा है. राज्य सरकार निरंतर पंजाब व हरियाणा सरकार से बीबीएमबी परियोजनाओं में प्रदेश के हक और देनदारियों को लेकर बात करती है. उन्होंने उम्मीद जताई कि इस विषय में जारी पत्राचार और अन्य मंचों पर उठाई गई आवाज का परिणाम सामने आएगा.
ये भी पढ़ें- SHIMLA: अब घर-घर आएंगे फोन, पूछा जाएगा आपके वार्ड में सफाई हुई है या नहीं