शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (Himachal Pradesh High Court) ने राज्य सरकार के कार्मिक विभाग के सचिव और डीजीपी पर सख्त टिप्पणी की है. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि दोनों अफसर अज्ञानता का ढोंग नहीं कर सकते. दोनों ही अफसरों को कानून का पर्याप्त ज्ञान है और उनसे उम्मीद की जाती है कि वे अज्ञानी न बनें.
दरअसल हाईकोर्ट की ये कड़ी टिप्पणियां (Himachal Pradesh High Court on DGP) एक महिला पुलिसकर्मी से जुड़े मामले में आई है. एक महिला पुलिसकर्मी सुरक्षा रांटा के बेटे अमित ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर न्याय की गुहार लगाई थी. उसी याचिका की सुनवाई में हाईकोर्ट ने कार्मिक विभाग के सचिव और डीजीपी को डांटते हुए ये भी कहा कि उन्होंने याचिकाकर्ता को फिजूल में मुकदमेबाजी में घसीटा है.
न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान की अगुवाई वाली खंडपीठ ने महिला पुलिसकर्मी सुरक्षा रांटा के बेटे की याचिका को मंजूर करते हुए सरकार को आदेश दिए कि संबंधित कर्मी को वर्ष 2009 से 2015 तक की सेवा अवधि के सारे वित्तीय लाभ दिए जाएं. यही नहीं, अदालत ने कहा कि सुरक्षा रांटा को तय लाभ 30 दिन के भीतर देने होंगे. यदि सरकार तीस दिन के भीतर ये लाभ नहीं देती तो उसे नौ फीसदी ब्याज देना होगा. हाईकोर्ट ने इन सभी आदेशों की अनुपालना रिपोर्ट 27 अक्टूबर के लिए तलब की है.
याचिकाकर्ता अमित की माता सुरक्षा रांटा वर्ष 2000 से कॉन्स्टेबल के पद पर थी. वर्ष 2002 में उसे हेड कॉन्स्टेबल के रूप में प्रमोट किया गया था. वर्ष 2009 से उसे एएसआई की पोस्ट पर प्रमोट किया जाना था. इसी बीच, उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज होने की वजह से प्रमोट नहीं किया गया. वर्ष 2015 मेें सुरक्षा रांटा को आपराधिक मामले से बरी किया गया था. उसके बाद विभाग ने उसे वित्तीय लाभ से वंचित रखते हुए 2009 से ही प्रमोट कर दिया. अदालत ने कहा कि विभाग का यह निर्णय गलत है. याचिकाकर्ता को वित्तीय लाभ से वंचित नहीं रखा जा सकता है. सामान्य नियम काम नहीं तो वेतन नहीं उस मामले में लागू नहीं होता जहां कर्मचारी काम करने के इच्छुक हैं और उन्हें काम से दूर रखा जाता है.
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