शिमला: प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रधान सचिव गृह, निदेशक होमगार्ड और कमान्डेंट होमगार्ड को अदालती आदेशों की अवमानना से जुड़े मामले में बरी कर दिया. न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने तीनों प्रतिवादियों के खिलाफ अवमानना (case related to contempt of court orders) का आरोप न साबित होने पर अपने निर्णय में (Himachal Pradesh High Court) कहा कि अवमानना से जुड़े मामले में न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह ऐसे ही व्यक्ति को दंडित करे जो न्याय के मार्ग में बाधा डालने का प्रयास करता है या न्यायपालिका को बदनाम करने का प्रयास करता है. इस शक्ति का प्रयोग आकस्मिक या हल्के ढंग से नहीं, बल्कि बड़ी सावधानी से करें.
क्या था मामला: मामले के अनुसार याचिकाकर्ता धनी राम ने आरोप लगाया था कि प्रतिवादियों (defendants) ने अदालती आदेशों की अवहेलना करते हुए उसे नौकरी से निकाल दिया है. जबकि अदालत का आदेश था कि उसे नौकरी पर बहाल किया जाए. प्रतिवादियों की ओर से अदालत को बताया गया कि याचिकाकर्ता ने अदालत से जरूरी तथ्यों को छुपाते हुए अपने पक्ष में नौकरी बहाल करने बारे अंतरिम आदेश प्राप्त कर लिया, जबकि तथ्यों के अनुसार प्रतिवादियों ने अदालत के आदेशों की कोई अवहेलना नहीं की है.
याचिकाकर्ता के अनुसार हिमाचल हाई कोर्ट (Himachal Pradesh High Court) ने उसे नौकरी में बहाल किये जाने बारे वर्ष 2010 में फैसला सुनाया था और उसे विभाग ने नौकरी पर इस शर्त पर बहाल किया कि उसकी बहाली मामले पर होने वाले अदालत के अंतिम निर्णय पर निर्भर करेगी. इसके बाद विभाग ने याचिकाकर्ता को नौकरी में बहाल किये जाने बारे निर्णय को पुनर्विचार याचिका के माध्यम से चुनौती दी.
अदालत को बताया गया कि विभाग में पुनः बहाली बारे कोई नियम नहीं है. पुनर्विचार याचिका को स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट ने विभाग को स्वतंत्रता दी थी कि वे (case related to contempt of court orders) याचिकाकर्ता की पुनः बहाली बारे नियमानुसार निर्णय ले. इसके बाद विभाग ने उसकी सेवाएं समाप्त कर दी थी. हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि प्रतिवादियों ने अदालत के आदेशों की कोई अवहेलना नहीं की है.
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