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सेवा में सीनियोरिटी पाना कानूनी अधिकार, हिमाचल हाईकोर्ट ने दी अहम व्यवस्था

Himachal High Court, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि सेवा में सीनियोरिटी पाने का अधिकार मौलिक नहीं बल्कि कानूनी अधिकार है. अदालत ने अपने आदेशों में स्पष्ट किया कि सरकार प्रशासनिक निर्देशों के आधार पर वैधानिक नियमों में संशोधन नहीं कर सकती है. यदि नियम किसी खास मुद्दे पर स्पष्ट नहीं है तो उस स्थिति में सरकार इस कमी को अनुपूरक नियम बना कर पूरा कर सकती है. right to get seniority in service is a legal right.

right to get seniority in service is a legal right
सेवा में सीनियोरिटी पाना कानूनी अधिकार
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Published : Aug 31, 2022, 7:05 AM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (Himachal High Court) ने एक अहम व्यवस्था दी है. सर्विस में सीनियोरिटी मामले में हाईकोर्ट ने ये व्यवस्था दी है. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल ने अपने फैसले में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 309 के तहत बनाए गए नियम वैधानिक नियम हैं. इन नियमों को प्रशासनिक आदेश से निरस्त नहीं किया जा सकता. अदालत ने कहा कि सेवा में सीनियोरिटी पाने का अधिकार मौलिक नहीं बल्कि कानूनी अधिकार (right to get seniority in service is a legal right) है.

अदालत ने अपने आदेशों में स्पष्ट किया कि सरकार प्रशासनिक निर्देशों के आधार पर वैधानिक नियमों में संशोधन नहीं कर सकती है. यदि नियम किसी खास मुद्दे पर स्पष्ट नहीं है तो उस स्थिति में सरकार इस कमी को अनुपूरक नियम बना कर पूरा कर सकती है. ऊना जिले के कुलदीप और अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए अदालत ने यह निर्णय सुनाया और उक्त व्यवस्था दी है. अदालत ने 10 जुलाई 1997 को जारी उन कार्यकारी निर्देशों को निरस्त कर दिया जिसके तहत प्रतिवादियों को वरीयता का लाभ देते हुए कानूनगो के पद पर प्रमोट किया गया था.

अदालत ने प्रतिवादियों को कानूनगो के पद पर दी गई प्रमोशन को भी रद्द कर दिया. हाईकोर्ट ने राजस्व विभाग को दोबारा वरीयता सूची बनाने के आदेश दिए हैं. याचिकाकर्ता और अन्य वर्ष 1998 में राजस्व विभाग में पटवारी के पद पर नियुक्त हुए थे. भर्ती एवं पदोन्नति नियम 1992 के तहत उनकी वरीयता तय की गई. इस वरीयता के आधार पर उनकी प्रमोशन भी की गई. राज्य सरकार ने वर्ष 1997 में कार्यकारी निर्देश के तहत भर्ती एवं पदोन्नति नियम 1992 में संशोधन किया.

विभाग ने पटवारी के पद की वरीयता इन कार्यकारी निर्देश के आधार पर की गई. याचिकाकर्ताओं से कनिष्ठ को कार्यकारी निर्देश के आधार पर वरीयता का लाभ देते हुए वरिष्ठ बनाया गया. याचिकाकर्ताओं ने इस विसंगति को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी. अदालत ने मामले से जुड़े तमाम रिकॉर्ड का अवलोकन करते हुए यह निर्णय सुनाया और कहा कि ये कानूनी अधिकार (Legal Right to Seniority in Service) है.


ये भी पढ़ें: मंत्री के नाम का झांसा देकर बेरोजगारों से ठगे थे लाखों रुपये, हाई कोर्ट ने आरोपी को दी सशर्त जमानत

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (Himachal High Court) ने एक अहम व्यवस्था दी है. सर्विस में सीनियोरिटी मामले में हाईकोर्ट ने ये व्यवस्था दी है. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल ने अपने फैसले में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 309 के तहत बनाए गए नियम वैधानिक नियम हैं. इन नियमों को प्रशासनिक आदेश से निरस्त नहीं किया जा सकता. अदालत ने कहा कि सेवा में सीनियोरिटी पाने का अधिकार मौलिक नहीं बल्कि कानूनी अधिकार (right to get seniority in service is a legal right) है.

अदालत ने अपने आदेशों में स्पष्ट किया कि सरकार प्रशासनिक निर्देशों के आधार पर वैधानिक नियमों में संशोधन नहीं कर सकती है. यदि नियम किसी खास मुद्दे पर स्पष्ट नहीं है तो उस स्थिति में सरकार इस कमी को अनुपूरक नियम बना कर पूरा कर सकती है. ऊना जिले के कुलदीप और अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए अदालत ने यह निर्णय सुनाया और उक्त व्यवस्था दी है. अदालत ने 10 जुलाई 1997 को जारी उन कार्यकारी निर्देशों को निरस्त कर दिया जिसके तहत प्रतिवादियों को वरीयता का लाभ देते हुए कानूनगो के पद पर प्रमोट किया गया था.

अदालत ने प्रतिवादियों को कानूनगो के पद पर दी गई प्रमोशन को भी रद्द कर दिया. हाईकोर्ट ने राजस्व विभाग को दोबारा वरीयता सूची बनाने के आदेश दिए हैं. याचिकाकर्ता और अन्य वर्ष 1998 में राजस्व विभाग में पटवारी के पद पर नियुक्त हुए थे. भर्ती एवं पदोन्नति नियम 1992 के तहत उनकी वरीयता तय की गई. इस वरीयता के आधार पर उनकी प्रमोशन भी की गई. राज्य सरकार ने वर्ष 1997 में कार्यकारी निर्देश के तहत भर्ती एवं पदोन्नति नियम 1992 में संशोधन किया.

विभाग ने पटवारी के पद की वरीयता इन कार्यकारी निर्देश के आधार पर की गई. याचिकाकर्ताओं से कनिष्ठ को कार्यकारी निर्देश के आधार पर वरीयता का लाभ देते हुए वरिष्ठ बनाया गया. याचिकाकर्ताओं ने इस विसंगति को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी. अदालत ने मामले से जुड़े तमाम रिकॉर्ड का अवलोकन करते हुए यह निर्णय सुनाया और कहा कि ये कानूनी अधिकार (Legal Right to Seniority in Service) है.


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